भूतनाथ !

भूतनाथ !

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“अनु क्या कर रही हो तुम? कबसे फोन कर रही थी मैं तुमको, मगर तुम थी कि उठाने का नाम ही नहीं ले रही थी! इसलिए मुझे आना पड़ा यार। चिंता के मारे मेरी तो जान सूख गई और इस महारानी को देखो - बाबा आदम के जमाने की किताब में खोई हुई बैठी है और मैं लाटसाहब के लिए बेकार ही परेशान हो रही थी! सब काम-धाम छोड़कर भागी-भागी आई मॅडम के लिए, सच में बहुत गुस्सा आ रहा है तुम पर!”


“अरेरेरेरे मेरी मां, थोड़ा आराम से, यूं धाराप्रवाह गुस्सा करेगी तो तेरी ब्यूटी खराब हो जाएगी मेरी जान!”


“रहने दे-रहने दे अपनी मस्केबाजी को! इस भूतनाथ में ऐसा क्या है? कितनी अच्छी-अच्छी साहित्यिक और श्रेष्ठ किताबें है, ये भूतनाथ?”


“मेरे लिए तो यही श्रेष्ठ किताब है! जब मैं पांचवीं कक्षा में थी पहली बार तब पढ़ी थी, वो भी हमारी दुकान पर रद्दी में आई थी! पापा घर लेकर आए थे, खुद के पढ़ने के लिए... घर में पड़ी थी तो मैंने भी पढ़ ली। तब मुझे इतनी समझ नहीं थी, फिर भी यह भूतनाथ मेरे दिलो-दिमाग पर कुछ इस तरह अंकित हो गई कि चालीस सालों बाद भी एकदम तरोताजा थी, जैसे हाल ही में पढ़ी हो! अबकी घर गई भैया की शादी की सालगिरह पर। पापा की किताबों को देख रही थी कि भूतनाथ पर नज़र गई। मेरी तो खुशी का पारावार न रहा! बस, कुछ किताबों के साथ मेरी ‘भूतनाथ’ भी ले आई। इसलिए पढ़ रही थी, लाने के बाद दो बार तो पढ़ ली फिर भी!”


“फिर भी, यह तीसरी बार क्यों? क्या है ऐसा इसमें?”


“यह तो पढ़ कर ही समझ में आएगा! यार, हर बार कुछ नए तथ्य सामने आते है साथ ही इंटरेस्टिंग भी! ओहोहो, मत पूछो, पढ़ो! सच में बहुत अच्छी किताब है और भी बहुत सारी अच्छी और श्रेष्ठ किताबें है, इससे मुझे कतई इन्कार नहीं है लेकिन जिस किताब ने मुझपर इतना गहरा असर किया मेरे लिए तो वही श्रेष्ठ है! काफी सालों बाद फिर से पढ़ने को मन किया, वाकई क्या लिखा है! लेखक की कल्पना का कमाल तो देखो - कहां-कहां नहीं पहुंची! क्या-क्या और कैसे-कैसे अद्भुत, अनोखे, भीतर की गहराइयों में पैठने वाले चित्रण, वाह! बहुत खूब! लेखक की लेखनी को सलाम!”


“क्यों? देवकीनंदन खत्री इसके लेखक हैं इसलिए?”


“नहीं यार, तू भी ना कैसी बकवास कर रही है!”


“बकवास नहीं कर रही हूं बल्कि मैं तुमसे भूतनाथ भी लेने आई थी! तुमसे इतनी तारीफ सुनी है कि दिल कर रहा है - मैं भी पढूं!”


“सच्ची?”

 

“मुच्ची!”

 

“ये ले, पर संभालकर रखना और पढ़कर वापस कर देना!”


“यस बाॅस, आज्ञा शिरोधार्य!”


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