चाय

चाय

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कई दिनों से मैं अक्सर सोचती रही हूं - तुमसे बात करूं मगर जब भी बात करनें की कोशिश करती तो तुम्हारी चुप्पी कुछ कहने ही नहीं देती ! तुम्हें इस तरह गुमसुम और चुपचाप देख कर कुछ कहने की हिम्मत ही जवाब दे जाती है ! भला इस तरह कोई करता है क्या ! काश तुम मेरे मन की बात समझ पाते पर तुम्हें क्या पड़ी है सारी की सारी प्रोब्लम तो मेरी है यह भी तो तुम ही दर्शाते रहते हो !

चल झूठी कहीं की खुद ही तो बोलती नहीं हो हरदम मुंह फुलाये रहती हो एकदम गोलगप्पे की तरह बात करती है ! 

हां बात ही तो करती हूं मगर तुम तो वो भी नहीं करते तो बताओ - झूठा कौन ?

 अरे यार तुम भी ना बाल की खाल निकालने से बाज नहीं आती सच में तुम पक्की वो हो !

 अच्छा तो तुम ?

 मैं क्या यह आदत तो तुम्हारी ही है कहते हुए जोर का ठहाका लगाता है ¡

 मेरी नहीं तुम्हारी।

 मेरी वाह जी वाह  चित भी तेरी पट भी तेरी ! चलो ठीक है बड़ी-बड़ी बातें कौन करता हैं वो भी लच्छेदार है ना‌ ?

अब मुझे क्या पता कि वो बातें लच्छेदार होती है या वो तो तुम कहते हो ! 

 अच्छा-अच्छा यह तोहमत भी हमीं पर  हां तुम थोड़े ही ना करती हो यह बंदा ही तो करता रहा है क्यों मैं सही कह रहा हूं ना ? अब तो खुश ? 

 अपने राम तो हर हाल में हमेशा ही खुश रहते हैं बस आप ही इन सबसे अनजान रहते हैं ! तभी तो

 अच्छा यार अब बोर ना कर ! कबसे बातें छमकाये जा रही है कम से कम एक कप चाय ही पिलादे । 

लो अभी तो पी थी हाय राम फिर से चाय ?

 अभी ? अरे अभी कहां वो तो एक घंटे से भी पहले पी थी ! तुम भी ना आलसी और कंजूस होती जा रही हो !

 वो भला कैसे ? आलसी भी और कंजूस भी ! एक ही खिताब काफी था आपने तो दो - दो दे डाले तो आपको भी एक खिताब तो मिलना ही चाहिए !

 भई कौनसा ? हम भी जाने !

 खडूस ! 

 क्या कहा  खडूस ? 

 खडूस ही तो कहा है फिर इसमें तो आपका दबंगपना झलकता है । आपकी तरह थोड़े ही ना कहती हूं -- आलसी कंजूस ! चलो जाने दो चाय तो पिला ही देती हूं फिर से ! 

अच्छा बना ही रही हो तो लगेहाथ पकौड़े भी बना लो वैसे तुम बनाती बहुत अच्छे हो ।

 क्या ? 

 औपकौड़े और क्या !

 फिर ठीक है पर

 अब यह बीच में पर कहां से आ गया ? 

 यहीं से ! और कहां से ! शर्माजी के घर से तो आया नहीं होगा !

अच्छा - अच्छा तो तुम शर्माजी के वहां से आ रही हो !

मैं वहां से या आप वहां से आ रहे हैं शर्माइन ने भी चाय तो पिलाई होगी ?

?अरे - अरे वो कंजूस भी भला कभी चाय पिलाती है जो आज पिलाती ! 

इतने में मिसेज शर्मा भीतर आते हुए बोली - वाह भाई साहब चाय पीते - पीते तो बड़ी तारीफ कर रहे थे और आधे घंटे में ही सब भूल गये और हंस पड़ी आप भी कमाल है भाई साहब !

नहीं- नहीं भूला तो बिल्कुल भी नहीं ! वो तो आपकी सहेली को यूं ही मोटीवेट कर रहा था वरना आपके हाथों की चाय ओहोहो क्या स्वाद है आपके हाथों में ! आपकी चाय के स्वाद के चलते ही तो आपकी सहेली से कह रहा था कि भागवान  भाभीजी जैसी चाय बना दो पर लगी बेकार के सवाल करने ! अच्छा हुआ आप आ गई अब आप ही बना दीजिए ।

अरे आज आपको हुआ क्या है ? चाय पीनी है या बातें बनानी है ?

अरे यार कहां बातें और कहां मैं फिजूल की बातें तो करता नहीं सिर्फ काम की बातें ही करता हूं !

अच्छा तो जनाब चाय पीना भी कोई काम है ? बहुत खूब ! 

काम ही तो है चाय पीना भी वो भी तुम्हारे हाथ की !

 क्या मैं चाय अच्छी नहीं बनाती ? 

अरे मेरा मतलब है जब तुम गुस्से में उबलते हुए बनाती हो तो चाय भी खौलने लगती है और उस चाय में तुम्हारा पावर समा जाता है तो चाय माशा अल्ला ! यार ज़बान ही जल जाती है बाप रे बाप ! 

सच में आपके लिए कभी चाय नहीं बनानी चाहिए ।

अरे-अरे भागवान ऐसा जुल्म मत करना । मैं तो यूं ही कह रहा था और तुम हो कि  

 हां-हां आप तो यूं ही अब भला चाय उबलेगी नहीं तो बनेगी कैसे ! 

गैस पे और कैसे वैरी सिम्पल बनाओगी तो बन जायेगी ! बस मुंह न जले ।

मुंह जलता है तो थोड़ी ठंडी करके आराम से पीयो कौनसी भागी जा रही है ! 

 अरे यार बातों में एक घंटा बर्बाद कर दिया पर चाय नहीं बनाई तुम भी ना जल्दी बनाओ सच में तुम्हारी चाय का स्वाद अब तक मुंह में घुल रहा है ! अब बना भी दो खाली-पीली टाइम पास कर रही हो । ऐसा नहीं कि पति परमेश्वर की इच्छा पूरी कर दो । भाभीजी के यहां चाय पीये हुए भी कितना वक्त हो गया है सच में बहुत आलसी होती जा रही हो ! चलो ठीक है चाय पी थी पर पकौड़े थोड़े ही ना खाये थे !

 देखा  मैं न कहती थी - आप चाय पीकर ही आये होंगे चाय के कितने लालची हैं ! 

 मेरी जान लालची नहीं रसिया उपमा तो सही दिया करो एम ए होकर भी एंवैई हो !

एंवैई हूं तो जाओ नहीं बनाती चाय !

 अरे-अरे ऐसा अत्याचार मत करो भाभीजी को तो पिला दो साथ में इस बंदे को भी एक कप दे देना बड़ा पुण्य होगा !

 चलिए आज पाप ही सही ।

अरी भागवान ऐसा भी क्या अभी कहूंगा तो भाभीजी बना देंगी बनायेंगी ना भाभीजी ?

 जी नहीं भाई साहब ! लगता है आज हम दोनों सखियों को लड़वा कर ही दम लेंगे !

लगता है आज चाय नसीब नहीं होगी !

 बना दो ना रमा मुझे भी बड़ी तलब हो रही है  फिर तुम्हारे ये हमें बैठने भी नहीं देंगे ।

 हां भाभीजी यह तो है अब लगेहाथ मेरी भी बना दीजिए क्यों मेहता मैं सही कह रहा हूं ना ?

   बिल्कुल यार तू बड़े मौके पर आया ।

  हां अब तो बनानी पड़ेगी वरना भाई साहब भी मुझे कंजूस कहेंगे !

 नहीं-नहीं भाभीजी मेरी ऐसी मजाल ! सबका ठहका एक साथ ! इसी के साथ रमा और शान्ति किचिन में गई । बीस मिनट में चाय - पकौड़े के साथ लौटी । हंसते - खिलखिलाते चाय- पकौड़े का दौर समाप्त हुआ । उस दिन डिनर भी एक साथ हुआ ऐसा अक्सर होता रहता था कभी इधर तो कभी उधर !

रात जितनी खुशी के साथ आई थी सुबह उतनी ही ग़मी के साथ ! सुबह सात बजे शर्माजी को दिल का दौरा पड़ा अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही भगवान को प्यारे हो गये ! यह मिसेज शर्मा के लिए बहुत बड़ा असहनीय आघात तो था ही मगर मेहता फैमली के लिए भी उतना ही तकलीफदेह था ! मिसेज शर्मा के ग़म में सब शरीक थे ! दोनो परिवारों का दुख साझा था । समय सबसे बड़ा मरहम है घाव भर ही देता है । रमा शांति व बच्चों का पूरा खयाल रखती मिस्टर मेहता भी किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने देते बच्चों पर जान छिड़कते थे । दोनो बच्चे बहुत छोटे थे बेटी चार साल की और बेटा डेढ़ साल का । मेहता फैमली का कोई बच्चा नहीं था सो शर्माजी के बच्चों को दिल से अपना लिया । शांति को मिस्टर मेहता अपनी सगी बहन की तरह मानते थे । धीरे-धीरे शांति ने भी खुद को सम्भाल लिया था ।

 होनी जो न कराये थोड़ा एक साल में शांति भी चल बसी । बच्चे बिन मां-बाप के हो गए पर मेहता दम्पति ने ऐसा होने नहीं दिया ! पूरी तरह से अपना लिया बच्चों को तो याद ही नहीं दीपू को तो नहीं हां रिया को जरूर थोड़ा बहुत याद था खासकर मां ! वैसे तो जब मां को याद करती तो रमा बहुत प्यार से समझाती - मम्मा चिजी लेने गई है अभी आयेगी । धीरे-धीरे रिया भी भूलने लगी ।

   दिन गुजरते रहे बच्चे भी बड़े होते गये । बेटी रिया ने दसवीं पास कर ली और बेटे दीपू ने आठवीं ! मेहता दम्पति को कोई संतान नहीं थी उनके लिए ये बच्चे ही उनकी संतान थे ! इन्हें बड़े नाजों से पाला-पोसा । अभी तीन साल पहले ही एक बेटे का जन्म हुआ घर में खुशियों की बहार आ गई फिर भी उनके लिए पहले तो रिया और दीपू ही थे गुड्डू तो तीसरा बच्चा था ! रिया को कुछ-कुछ याद था फिर भी वह मेहता दम्पति को ही अपने माता-पिता मानती और उन्हें मम्मी - पापा कहती थी । अपने बच्चे के बाद भी उनका व्यवहार नहीं बदला उन्होंने अपनी दोस्ती को बड़ी शिद्दत से और पूरे दिल से निभाया ! एक दिन भरे गले से रिया ने कहा -- आप दोनों मेरे सगे मम्मी-पापा से भी बढ़कर हैं !

  यह सुनकर मेहता दम्पति को बड़ा दुख हुआ - बेटे यह किसने कहा कि हम तुम्हारे सगे मम्मी-पापा नहीं हैं ! कहते-कहते रमा फफक पड़ी तो रिया को अहसास हुआ कि यह उसने क्या कह दिया हालांकि वो अपनेपन और प्यार को व्यक्त करना चाहती थी ! बस बच्ची थी शब्दों को नहीं समझ पाई । अपने मम्मी-पापा से ज्यादा तो वह इनके साथ रही है इनकी बेटी बनकर तो फिर आज यह खयाल क्यों आया ! उसे बहुत रोना आ रहा था रोते-रोते माफी मांगी -- आय में सौरी मम्मा मेरा मतलब यह नहीं था मैं तो अपना प्यार जताना चाहती थी पर सौरी सौरी मम्मा-पापा प्लीज मम्मा और सिसकते हुए अपनी मम्मा को बाहों में भर लिया और रमा ने उसे पूरी तरह से समेट लिया तो मिस्टर मेहता ने उन दोनों को अपने में बांध लिया और भरे गले से बोले - यार तुम दोनों मां-बेटी मिलकर मुझ गरीब को रुलाये जा रही हो ना खुद चुप होती हो ना ही मुझे चुप होने देती हो !

 ओह सौरी पापा

 ओए तू क्यूं सौरी होती है तेरी मां को होने दे ना तू तो मेरी जान है मेरा जिगर है मेरी गुड़िया !

अच्छा -अच्छा अच्छा बाबा मैं सौरी अब तो बाप-बेटी खुश खुद सौरी मत होना खुश ! 

ठीक है तुम कहती हो तो हम बाप-बेटी भी सौरी हो जाते हैं पर चाय-पकौडे खिलाने होंगे !

आप भी ना जब-तब चाय-पकौडे की रट लगाते रहते हैं !

कहां यार ज़माना बीत गया !

पापा परसों तो खाये थे ! 

अच्छा परसों खाये थे ? चल झूठी

बेटा नहीं खायेंगे तो बेचारों के पेट में दर्द होगा कहते हुए रमा किचिन में जाने लगती है तो रिया ने कहा - मम्मा आप भी बैठो आज मैं चाय - पकौड़े बनाकर लाती हूं ।

अरे मेरा बच्चा तुम्हें कहां पकौड़े बनाने आते हैं !

पापा यही तो सीक्रेट है फिर कई बार मम्मा को बनाते देखा है ।

ना बच्चा सिर्फ देखा ही तो है  इट इज वैरी रिस्की आय विल नोट अलाउ यूं । देखा ही तो है प्रेक्टीकली तो नहीं बनाया ना !

पापा प्लीज मैं बड़ी हो गई हूं बना सकती हूं । मम्मा आप बोलो ना पापा को‌।

 ओके बेटा तुम ही बनाओ  मेरा तो बनाने का बिल्कुल मूड नहीं है ।

 नहीं रमा यह तो बच्ची है पर तुम तो

 तुम्हार लाडली के हाथों के पकौड़े मैं भी तो खा लूं ।

 नो नोट एट आल

 प्लीज पापा बनाने दीजिए ना नहीं तो सीखूंगी कैसे ? बहुत टेस्टी बनाऊंगी !

 ओके माय डार्लिंग प्रिंसेस और रिया ने वाकई पकौड़े बहुत अच्छे बनाये थे सबने चटखारे ले लेकर खाये साथ में चटनी भी बहुत स्वाद बनी थी !

 पापा मुझे होटल मैनेजमेंट करना है ।

 अच्छा तो यह मस्का पोलिसी थी पर तू रोज़ अच्छे-अच्छे खाने बनाकर खिलायेगी ? 

 येस पापा

 सिर्फ पापा को मम्मा को नहीं ?

 बिना कुछ कहे अपनी मम्मा से लिपट गई इतने में दीपू स्कूल से आया आते ही बोला - अच्छा तो दीदी से प्यार मुझे नहीं !

 ले आजा मेरा बच्चा आ गले लग जा तुझसे क्यों नहीं ? तुम दोनों तो मेरे जिगर के टुकड़े हो मेरी दोनों आंखें हो ! 

और पापा छोटू ? 

तुम दोनों का  सिम्पल वैरी सिम्पल ! 

येस बट नोट सिम्पल इट्स वेरी डिफीकल्ट पापा ! 

वाट ? 

छोटू !

ओके कहते जोर का ठहाका लगाया साथ में सब हंस पड़े मगर छोटू रोने लगा तो फिर सब हंसने लगे । रिया ने छोटू को गोद में उठा लिया और प्यार से चुप कराने लगी चोकलेट दी तो रोना भूल गया और बोला - एक औल !

 ले लालची कहीं का दांत खराब हो जायेंगे !

ये सब देख मेहता दम्पति की आंखें आनंद के अतिरेक में गंगा-यमुना हो रही थी मगर रिया कहीं खो गई थी इस वक्त यहां पर नहीं थी ! सबकुछ होते हुए कहीं खालीपन - सा लग रहा था पर किस चीज़ का ? ये सब मैहता दम्पति बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे थे मगर अनजान बन रहे थे काश ! और एकाएक मुस्कराते हुए मिस्टर मेहता ने कहा - कोई आज की चाय पिला दो भाई ! इतने में रिया किचिन में जाकर दो कप चाय बना लाई !

 देखा मेरी गुड़िया अपने पापा के लिए दो कप चाय बनाकर लाई और तेरी मम्मा एकदम  

नो चीटिंग यह दूसरा कप मम्मा के लिए है आप पहले भी चार कप पी चुके हैं !

ओह तो तूने भी पार्टी बदल ली मम्मा की चमची ! चल दे भागते भूत की लंगोटी ही सही !  


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