Moumita Bagchi

Abstract Drama Fantasy

4.0  

Moumita Bagchi

Abstract Drama Fantasy

ओह, वह सपना!

ओह, वह सपना!

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"आरव। आरव। नहीं, नहींऽ तू अपनी बुआ को छोड़कर कैसे जा सकता है? वापस आ जा-- --"

और इससे आगे कुछ कह पाने की शक्ति रूहानी में नहीं बची थी। उसकी आवाज़ उसी के क्रंदन से दब गई थी।

रूहानी का एक प्यारा सा आठ साल का भतीजा था-- आरव , जिसकी आज सुबह मृत्यु हो गई थी। वह उसका बड़ा ही लाडला था। हर रात को उसी के साथ चिपक कर वह सोया करता था। बुआ से कहानी सुनने के बाद ही कहीं जाकर उसे नींद आया करती थी। कल रात को भी उसने ऐसा ही किया था। परंतु आज सुबह उसका नन्हा सा शरीर हलचल रहित पाया गया था। नींद में ही वह गुज़र गया था।

तब से रूहानी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थी। उसने जबसे यह जाना कि उसका प्यारा लडड्डूगोपाल नहीं रहा तब से जोर जोर से वह रोए जा रही थी। और रोए भी क्यों न? भले ही उसने आरव को जन्म न दिया हो, परंतु उसे पाल -पोसकर आठ साल का उसी ने तो बनाया था।

भाभी तो जाॅब करती है। अतः आरव को स्कूल के लिए तैयार करना, उसका टिफिन पैक करना, जूते के लेस बाँधना, फिर उसे समय से पहले बाॅसस्टाॅप तक पहुँचाना, रात को उसका होमवर्क करवाना सब उसी की जिम्मेदारी थी।

बुआ और भतीजे में बनती भी खूब थी। रूहानी आरव के साथ कभी-कभी अपने बचपन में वापस चली जाया करती थी। जो शरारतें लड़की होने के कारण वह स्वयं न कर पाई थी, अब दोनों मिलकर किया करते थे। दोनों घर में खूब धमालचौकड़ी मचाया करते थे।

आरव भी अपनी बुआ से बहुत प्यार करता था। अपनी स्कूल के सारे किस्से वह सबसे पहले बुआ को आकर सुनाया करता था, फिर दोनों खूब हँसते थे।

रूहानी साईकोलाॅजी में ऑनर्स कर रही थी। वह भी अपने काॅलेज में दिन भर की घटित घटनाएँ आरव से शेयर किया करती थी। आरव को ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आता था, परंतु हर बात के अंत में वह किसी बड़े की भाँति अपनी राय देना न भूलता था। उसकी बातें सुनकर रुहानी को बहुत मज़ा आता था, वह खिलखिलाकर हँसा करती थी।

रुहानी अबतक रोए जा रही थी, जोर-जोर से चिल्ला चिल्लाकर--

" आरव आ ऽऽ जा ऽऽ बेटा-- अपनी बुआ के पास वापस आ जा! तेरी माँ मुझसे पूछेगी तो मैं उनको क्या जवाब दूँगी?"

रोते हुए उसकी घिघ्घी बंध गई थी और उसके गले से एक अजीब किस्म की आवाज़ निकल रही थी। तभी उसने सुना,

" क्या हुआ रूहानी बेटा, क्यों रो रही है ?"

माँ की आवाज़ लगती थी। क्या माँ को अब तक न मालूम पड़ा था कि उनका पोता इस दुनिया में नहीं है? इसी हैरानी में उसने अपनी दोनों आँखें खोल दी थी।

देखा तो माँ सिरहाने बैठकर उसके सिर पर हाथ फेर रही थी। और उसे जगा देखकर उन्होंने पूछा ,

" कोई बुरा सपना देख रही थी, क्या रुहानी बेटा? क्यूँ रो रही है तू ?"

" ओह। ऐसा क्या ?"

"तो फिर क्या वह एक सपना था।"

"माँ तो बिलकुल नाॅर्मल सी दिख रही है ! हे प्रभु। ऐसा कभी सच में न हो !" रुहानी ने मन ही मन पहले अपने इष्टदेव को स्मरण किया। फिर प्रकट रूप में माँ से पूछी-

" माँ, आरव कहीं दिखाई नहीं दे रहाहै, कहाँ है वह ?"

" अरे, वह तो स्कूल चला गया।"

"अच्छा तो फिर वह सपना ही था। धन्य हो प्रभु !"

रुहानी बोली,

" इतनी जल्दी ? आज मुझसे बताकर नहीं गया !"

" अरे, एकबार नहीं कई बार उस बेचारे ने तुझे जगाने की कोशिश की थी। पर तू तो ऐसी गहरी नींद में सो रही थी।

फिर मुझसे आकर वह किचन में बोला था--' दादी, बुआ तो आज कुंभकर्ण बन गई है। आप ही तब आज मुझे बस तक छोड़ दीजिए'। "

" अच्छा ? पता नहीं, माँ, मैं कैसे आज इतनी देर तक सोती रह गई।"

" ठीक है, अब उठ जा और जल्दी से तैयार हो जा। दस बजे तेरी क्लास है न ?"

स्कूटी लेकर जब रुहानी क्लास के लिए निकली तो उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात चल रही थी, उसने ऐसा भयानक सपना क्यों देखा? जिस भतीजे को वह अपने दिलो- जान से चाहती है, उसी की मृत्यु की कल्पना भी उसके लिए असंभव था। फिर यह सपना क्यों देखा, उसने? क्यों, क्यों, क्यों ?

नहीं, वह कोई अंधविश्वासी न थी। एक आधुनिक लड़की होने के नाते किसी अनहोनी का विचार भी उसके मन में न आया था। वह दरअसल अपने इस बेसिर पैर सपने का एक विश्लेषण करना चाह रही थी। मनोविज्ञान की छात्रा जो ठहरी थी !

कल ही प्रोफेसर विश्वास ने "ड्रीम अनालिसीस " के बारे उन लोगों को पढ़ाया था। प्रोफेसर साहब का कहना था कि हर एक सपने के पीछे हमारी कोई न कोई थट प्रोसेस जरूर होती है । कुछ विचार कभी- कभी हमारे अवचेतन मन में दबी रह जाती है। और वही सपने के रूप में बाहर निकलकर आती हैं।

हमारी दिनचर्या का प्रभाव भी कई बार हमारे सपनों पर पड़ता है।

आज भी फर्स्ट पिरियड उन्हीं प्रोफेसर का था। रुहानी ने तय किया कि कक्षा के बाद आज प्रोफेसर साहब से जरूर अपने इस सपने के बारे में पूछेगी। जब तक उसे अपने सपने का एक सम्यक विश्लेषण न मिल जाता है, वह चैन से नहीं बैठ पाएगी।

काॅलेज तो वह समय पर पहुँच चुकी थी, परंतु आज पार्किंग में उसे बड़ा समय लग गया। घड़ी देखी तो दस बजकर दस मिनट बीत चुके थे। वह जल्दबाजी में कूद-कूद कर काॅलेज की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। इस कसरत के कारण कक्षा तक पहुँचते- पहुँचते रुहानी बुरी तरह हाॅफने लगी थी।

प्रोफेसर साहब बड़े पंक्चुयल थे। घड़ी में दस बजते ही वे कक्षा में दाखिल हो जाया करते थे। अतः जबतक रुहानी वहाँ पहुँची उनका लेक्चर प्रारंभ हो चुका था।

सर, आज सिगमंड फ्राॅयड का ड्रीम एनालीसीस पढ़ा रहे थे-----

" फ्राॅयड साहब ने साईकोएनालीसीस पर बड़ा गहन शोध किया है। अपने दो शिष्यों -- एडलर और युंग के साथ मिलकर उन्होंने जो थियरियाँ दी थी उसे-- " स्कूल ऑफ साईकोएनालीसीस" कहा जाता है। आज हम सपने के बारे में उनकी थियरी को समझने की कोशिश करेंगे।"

"इस विषय पर उन्होंने एक केस स्टडी किया था जिसके बारे में मैं अब आपसे चर्चा करने जा रहा हूँ। इस उदाहरण से आप उनके इस आइडिया को भलीभाँति समझ पाएंगे---

' एक कुँवारी लड़की एक दिन सुबह यह सपना देखती है कि उसका प्यारा भतीजा मर गया है। उसका सारा परिवार उस बच्चे की फ्यूनरल पर इकट्ठा होते हैं।'

" अरे यह तो मेरे सपने जैसा है-"- रुहानी अंदर तक हिल उठी थी। कहानी में आगे क्या हुआ यह जानने के लिए वह बड़ी उत्सुकता से लेक्चर को सुनने लगी।

" जब फ्राॅयड साहब ने इस लड़की से बातचित की और उन्हें उसके अवचेतन से रूबरू होने का मौका मिला तब वे इस नतीजे पर पहुँचे कि उस लड़की का एक बाॅय फ्रेन्ड था, जिसके साथ उसका अभी ब्रेक ऑप हो चुका है। परंतु यह लड़की आज भी उसे बहुत मिस किया करती है। उसके अवचेतन में उस लड़के से मिलने की चाहत विद्यमान है।"

"इत्तेफाक की बात है कि जिस दिन वह उस लड़के से आखिरी बार मिली थी उसदिन उस लड़की के पिता का फ्यूनरल हो रहा था। बारिश हो रही थी। सबलोग जब शववाहिनी गाड़ी पर उसके पिता का शव रख रहे थे, तो दूसरे लोगों के बीच में उसे अपना वह प्रेमी भी दिखा था।"

"अतः फ्राॅयड साहब का यह अनाालीसीस था कि अब उस लड़की के अवचेतन में यह एक घटना बिलकुल कैमरे से खींची हुई एक साफ तस्वीर की तरह बैठ गई थी। उसे पिता का फ्यूनरल याद रह गया था। और कहीं न कहीं उसके अवचेतन को यह लगता था कि हो न हो उसके परिवार में यदि किसी की मृत्यु हो जाए तो वह उस लड़के से दुबारा मिल पाएगी।"

कक्षा समाप्त हो चुकी थी। सर और अन्य बच्चे कक्षा से बाहर जा चुके थे। परंतु रुहानी अपनी सीट पर स्तब्ध होकर निःशब्द बैठी थी। फ्रायडन ड्रीम एनालीसीस के तर्ज पर अपने सपने का भी वह अनालीसीस करने की कोशिश कर रही थी।

उसे जवाब मिल चुका था। याद आया, वह भी कुछ दिन से उस लड़की की तरह ही चेतन को बहुत मिस कर रही थी।

चेतन उसका मंगेतर, भारतीय सेना में कप्तान था। इस समय लद्दाख में उसकी तैनाती है। पिछले एक महीने से जब से सीमा पर चीनी घुसपैठ आरंभ हुआ है, उसका कोई अता-पता न मिल पाया था !


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