नॉट विद कंपास
नॉट विद कंपास
कितना कठिन होता होगा किसी स्त्री का अपने घर को छोड़ना जिसे उसने बनाया था...मन से सजाया था...बहुत अरमानों से सँवारा था।
सिद्धार्थ गौतम ज्ञान की खोज में अकेले ही निकल पड़े थे...एक निश्चित पथ पर.. सिद्धार्थ गौतम का घर छोड़ने वाला निर्णय यकीनन बड़ा था....लेकिन वह? वह तो जैसे किसी अनिश्चित राह पर निकल पड़ी है...अपने मासूम बच्चों के साथ......सिर्फ़ अपनी ज़ात के लिए... अपने स्व के लिए...
क्योंकि पति ने उसे जता दिया था की मेरे बग़ैर तुम क्या हो? मेरे बग़ैर तुम कुछ भी नहीं हो....
बग़ैर मंज़िल के वह निकल पड़ती है..... एक अनजान राह पर....वह जानती है की उसकी राह आसान नहीं है.... सिद्धार्थ गौतम की राह से भी ज्यादा कठिन....
मन ही मन वह तौलती रहती है अपने इस निर्णय को....एक बाट में वह रखती जाती है घर परिवार की बातें...और दूसरे बाट में समाज की बातें......समाज के भारी पलड़े को देख वह उस तराजू को ही कही दूर फेंक देती है...और एक ज़िद और बेपरवाही से फिर वह निकल पड़ती है....एक निश्चिंत मन से अनिश्चितता की राह पर....
वह जानती है की इस घर में नौकरों की फ़ौज़ है लेकिन आगे उसे अपनी राह खुद बनानी पड़ेगी....खुद उसे लोगों के घरों में काम करना पड़ सकता है...अपने कोमल हाथों की परवाह किये बग़ैर...उन गन्दी नज़रों से भी लड़ना होगा जो उसे अकेली जानकर अवलेबल समझेंगे... सिर्फ अपनी ज़ात के लिए....अपने स्व के लिए...
न जाने वह कितनी बार सोचती है.... कैसे मैनेज होगा होगा? क्या मैनेज होगा भी? वे ढेर सारी बातें जिसमें शामिल होती है घर की कुछ बातें....परिवार की तरह तरह की बातें...समाज की बातें.... फिर भी वह जिद करके घर से निकल पड़ती है। समाज के सवालों से जूझते हुए....वह लड़ लेती है पेट की लड़ाई....
बच्चों के वे अनगिनत से सवाल....पापा क्यों नहीं है हमारे साथ? क्यों वे हमसे अलग रहते है? बेहद दुरूह होता है नासमझ बच्चों को समझाने वाला यह काम....लेकिन फिर भी वह जुट जाती है नए सिरे से जिंदगी की भागदौड़ में... अपने मासूम बच्चों के साथ........... और जूझती जाती है ढेर सारे सवालों से। सिर्फ अपनी ज़ात के लिए....अपने स्व के लिए....
