नो शॉर्टकट
नो शॉर्टकट
आराध्या, सातवीं क्लास की स्टूडेंट थी। पढ़ने- लिखने के साथ-साथ खेलकूद में भी आगे, सभी टीचर्स की चहेती। लेकिन वह कहते हैं ना सफल होने से ज्यादा जरूरी, सफलता को लंबे समय तक बनाए रखना होता है, कुछ ऐसा ही आराध्या के साथ भी होने लगा।
अब उसे लगने लगा था कि मुझसे ज्यादा समझदार और इंटेलिजेंट स्टूडेंट इस स्कूल में है ही नहीं। अब आराध्या का समय दोस्तों और इंटरनेट के बीच ज्यादा गुजरने लगा। वह सोचती थी थोड़ा सा भी पढ़ने से उसको अच्छे मार्क्स तो मिल ही जाएंगे और जहां तक रही बात बैडमिंटन की तो उसकी प्रैक्टिस स्कूल के बाद हर रोज हो जाती हैं। कुछ नए दोस्तों की कंपनी में आराध्या को यह महसूस होने लगा कि पढ़ाई सब कुछ नहीं होता जिंदगी जीने के लिए कुछ मजे भी करना चाहिए, आज स्कूल से वापस आते ही आराध्या ने अपनी मम्मी से पूछा
"मम्मी, क्या आज रात मैं पूजा के घर स्लीप- ओवर के लिए जा सकती हूं, उसके घर मेरी कुछ और सहेलियां भी आ रही है, हम सभी रात में थोड़ा खाना-पीना करेंगे फिर पढ़ाई करके सो जाएंगे। कल तो वीकेंड है ही तो स्कूल जाने की कोई टेंशन नहीं।"
"नहीं आराध्या तुम पूजा के घर नहीं जा सकती, तुमको जो पढ़ाई करनी है वह अपने घर पर कर सकती हो।"
"ओहो मम्मी, आप तो कुछ समझते ही नहीं। आजकल स्लीप- ओवर बहुत कॉमन है, प्लीज मम्मी जाने दो।"
"आराध्या टू वीक्स में तुम्हारे मंथली टेस्ट स्टार्ट होने वाले हैं और तुम्हारा मन पढ़ाई की जगह मस्ती करने में लगा हुआ है।"
मम्मी की बातें सुनकर आराध्या मुंह बनाते हुए अपने कमरे में चली गई। अपना मूड सही करने के लिए उसने लैपटॉप ऑन किया और मूवी देखने लगी। मूवी खत्म होने के बाद आराध्या ने अपने सभी दोस्तों को मैसेज करके बताया कि वह स्लीप ओवर के लिए नहीं आ पायेगी।
नए दोस्तों की चटपटी बातें और स्क्रीन देखने की लत ने आराध्या को पढ़ाई से दूर कर दिया था, साथ ही अब उसे बैडमिंटन प्रैक्टिस में भी मजा नहीं आता था। देखते ही देखते आराध्या के मंथली टेस्ट भी शुरू हो गए, किसी तरह उसने अपने सारे टेस्ट कंप्लीट किये।
आराध्या का रिजल्ट देते हुए उसकी क्लास टीचर ने पूरे क्लास के सामने आराध्या से कहा
"इतने कम नंबर। आराध्या तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।"
अपना टेस्ट का रिजल्ट देख कर आराध्या के होश ही उड़ गये इतना बेकार नंबर तो आज तक उसके कभी नहीं आए थे।
अपना रिजल्ट मम्मी को दिखाते हुए आराध्या रोने लगी,
"सॉरी मम्मी, पता नहीं यह सब कैसे हो गया, मैंने पढ़ाई तो की थी लेकिन फिर भी नंबर अच्छे नहीं आये। कोई बात नहीं मम्मी, मैं बैडमिंटन टूर्नामेंट में बहुत अच्छा करूंगी।"
"आराध्या पहले तुम रोना बंद करो, दूसरी बात टूर्नामेंट में अच्छा करने के लिए भी तुम्हे मेहनत करनी पड़ती है जो कि तुमने किया नहीं है। लाइफ में कुछ अच्छा करने के लिए सीरियस होना पड़ता है चाहे वह पढ़ाई हो या गेम। पिछले कई हफ्तों से मैं देख रही हूं कि तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है और ना ही बैडमिंटन प्रैक्टिस में, तुम अपने नए दोस्तों के साथ इतना बिजी हो गई हो कि तुम्हें कुछ पता ही नहीं चल रहा है कि तुम्हारे लाइफ में क्या हो रहा है। तुम टॉप पोजीशन से लगातार नीचे गिरती जा रही हो लेकिन इसका एहसास तुम्हें नहीं हो रहा है।"
"प्लीज मम्मी ऐसा मत कहो, मुझे फील हो रहा है कि मैंने क्या गलती की है। सॉरी मम्मी।"
"आराध्या तुम मुझे सॉरी मत कहो, तुम खुद से सॉरी कहो तुमने जो गलती की है वह तुम्हें खुद ही सही करनी पड़ेगी। किसी भी फील्ड में सक्सेस होने के लिए तुम्हें बहुत हार्ड वर्क करना पड़ेगा। जिंदगी कोई खेल नहीं है, यहां कोई शॉर्टकट नहीं चलता। बैडमिंटन मैं भी नाम कमाने के लिए हर दिन एक्सरसाइज और प्रैक्टिस करना पड़ेगा। तब जाकर कामयाबी तुम्हारे कदम चूमेगी।"
"एम सो सॉरी मम्मी, अब आगे कभी नहीं ऐसा होगा।"
"मेरा बच्चा, सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है, अगर तुम्हें अपनी गलती का एहसास है, तो तुम उसे सही भी कर लोगी। दोस्ती हर उम्र में हो सकती है लेकिन पढ़ाई और तुम्हारा बैडमिंटन प्रैक्टिस हर एज में नहीं हो सकता। समझी.."
"यस मम्मी"
यह कहते हुए आराध्या अपनी मम्मी से लिपट गई।