उड़ान
उड़ान
मांँ के लगभग पांँच बार फ़ोन करने के बाद रमेश घर पहुंँचा।
"मांँ, जल्दी से खाना लगा दो, मुझे लेट हो रहा।"
"हांँ हांँ, लगा रही हूंँ।"
फिर दीवार घड़ी की तरफ इशारा करते हुए मांँ बोली...
"चार बजने जा रहे, क्या यह लंच का टाइम है? मैं तुम्हे बारह बजे से कॉल कर रही, कभी तुम फ़ोन नहीं उठाते तो कभी फ़ोन उठा के कहते हो कि बस, थोड़ी देर में आ रहा।"
"क्या करूंँ मांँ, शोरूम में इतना काम होता है कि खाने का समय ही नहीं मिलता। कल से आप मुझे टिफिन दे दिया करो, मुझे जब समय मिलेगा मैं शोरूम में ही खा लिया करूंँगा, इससे आपको मेरी वजह से परेशानी नहीं होगी।"
"अरे बेटा, इसमें परेशानी की कोई बात नहीं, जब शोरूम, घर से इतना पास है कि तुम आराम से घर आकर मेरे हाथों से गर्म फुल्के खा सकते हो, तो फिर टिफिन क्यों देना। क्या, तुम मेरे लिए एक काम कर सकते हो ??"
"हां, मांँ बोलिए"
"अब तुम शादी कर लो, नई दुल्हन आएगी तो मेरी जिम्मेदारी अपने आप कम हो जाएगी।"
"अरे मांँ आप फिर शुरू हो गए, शोरूम से ही फुर्सत नहीं मिलती तो आपकी बहू के लिए कहांँ से समय मिलेगा??"
"जा, मैं तुझसे बात नहीं करती, तू मेरी कोई भी बात नहीं मानता।"
"अरे मेरी प्यारी मांँ, मैं तुम्हारी हर मानता हूंँ। उस दिन जब मैंने तुम्हे बताया था कि मुझे नौकरी नहीं मिल रही तो घर का खर्च चलाने के लिए मैंने कार वॉश करने का काम स्टार्ट किया है, तो मांँ तुमने ही कहा था कि बौनी उड़ान ही ऊंँची उड़ान भरने में मदद करती है। काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता। मांँ तुम्हारी हिम्मत से ही आज मैं इस मुकाम पर पहुंँचा हूंँ कि आज मेरी खुद की कार वॉश करने की शोरूम है। मांँ यह सब तुम्हारे आशीर्वाद से ही संभव हो पाया।"
"अरे बेटा, इस सब में तुम्हारी दिन -रात की मेहनत शामिल है। जैसे उस दिन तुमने मेरी बात मानी उसी तरह शादी वाली भी बात मान ले बेटा। हर चीज की सही उम्र होती है।"
"ठीक है मांँ, जैसे तुम्हे सही लगे।"
खाना खाते हुए रमेश ने अपनी मांँ से कहा,
तो खुशी से मांँ ने दो गर्म फुल्के रमेश की थाली में डाल दिए।