माला
माला
अमेरिका से सालों बाद अपने गांव लौटी गौरा ने जब अपनी बचपन की सहेली माला को देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। दोनों सहेलियों के ढ़ेर सारी बातों में समय का पता ना चला...
"अमेरिका तो बहुत दूर है ना यहां से, तुम तो रानी जैसी रहती होगी गौरा। बोलो सही है ना.."
"अरी मेरी प्यारी सखी माला, दूर तो बहुत है अमेरिका लेकिन वहां मैं रानी जैसी नहीं रहती। एक अच्छी कंपनी में काम करती हूं साथ में घर बाहर के सभी काम खुद करती हूं। वहां अमेरिका में सभी को अपने काम खुद ही करने पड़ते है, थोड़ा सहयोग के लिए मशीनें है बस।”
"अरे वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है कि मेरे बचपन की सहेली अमेरिका में काम करती है।"
"अरे माला, तुम बताओ तुम्हारी जिंदगी कैसी चल रही है?"
"अरे गौरा, यह अमेरिका थोड़ी ना है। गांव है, तो बस जिंदगी कट रही है। घर वालों ने जल्दी शादी कर दी फिर दो बच्चे, लड़के का पढ़ने में मन नहीं लगता तो सोच रही कुछ सालों में उसे किसी काम-धंधे में लगवा दूंगी।"
"और तुम्हारी बेटी ??"
"अरे गौरा, बिटिया तो भगवान ने बहुत अच्छी दी है। मेरी सारी बात मानती है, पढ़ने में भी बहुत तेज है लेकिन मेरे पति के शराब पीने की आदत से पूरे घर की स्थिति खराब हो गई है। अब मुझे नहीं लगता कि फटे हुए जेब के साथ बिटिया आगे पढ़ पायेगी, तो जैसे ही कोई अच्छा लड़का दिखेगा तो उसकी शादी कर दूंगी।"
"माला ऐसा बिल्कुल मत करना। अगर बिटिया अच्छे से पढ़ती है तो उसे खूब पढ़ाना। जब वो खूब पढ़-लिख लेगी तो उसकी शादी भी बहुत अच्छे से हो जायेगी। तुम्हारी बिटिया की पढ़ाई की जिम्मेदारी मैं लेती हूं। समझी।"
"ये तुम क्या कह रही हो गौरा ?"
"हां, मैं बिल्कुल सही कह रही। देखना एक दिन तुम्हारी बिटिया भी पढ़-लिखकर नौकरी करेगी और अमेरिका में रानी बनकर रहेगी।"
यह सुनकर माला के आंखो में खुशी के आंसू आ गए।