नदी हूँ या नारी
नदी हूँ या नारी
मैं हूँ नदी शांत, सुंदर ओर शीतल अविरल बहती हुई। कभी कभी सोचती हूँ कि नारी ओर मेरी कहानी कितनी मिलती जुलती है।
सब कितना प्यार करते है मुझे मेरे किनारे बैठ कर सुुख दुख सभी सुनाते है।
मेरा भी अस्तित्व है,अगर कभी मैं गुस्सा हो जाती हूँ अपना रोद्र रूप दिखाती हूँ तो मुझे भी कितनी गालिया पड़ती हैं।
एक नारी की तरह सब मुझे भी शांत ,कोमल, शीतल रुप मे ही स्वीकार करते है। प्रकृति के साथ बुरे बर्ताव करने के कारण ही बाढ़ जैसी स्थिति पैदा होती है।ऐसी ही किसी नारी के साथ हुआ दुर्व्यव्हार उसे कठोर बना देता है।
मैं बहती रहती हूँ कभी ना मिलने वाले दो किनारों के बीच ओर वो मायके ओर ससुराल दोनों के बीच।
हमेशा संतुलन बनाती है। कभी कोई नहीं सोचता उसके बारे में। बस जिम्मेदारियों के चलते बहती रहती हैं। हम नादान।