चारों तरफ लिपटा हुआ प्यार
चारों तरफ लिपटा हुआ प्यार
"मम्मी इतनी साड़ियां पड़ी हैं अब मैं तो नहीं खरीदूंगी। जब शादी में जाना होता है मैं साड़ी खरीद लेती हूं और बहुत साडी रखी हैं"।
"हां तो मत खरीदो तुम कौन सा रोज पहनती हो मेरी कोई साड़ी ले जाना"।
"हां मम्मी इस बार कोई ससुराल की तरफ का फंक्शन होगा तो आप ही के साड़ी पहन लूंगी,"
"अरे!!!क्या ससुराल और मायका आजकल तो फेसबुक और व्हाट्सएप के जमाने में सभी देख लेते हैं सब कहेंगे पुरानी साड़ी पहनी है"।
"मुझे किसी से कुछ लेना देना नहीं मुझे आपकी साड़ी पहन कर बहुत अच्छा लगता है।हां लेकिन आप यह मत कहना कि यह साड़ी तू ही रख ले"।
"हां हां नए-नए नाटक हैं,यह मम्मी साड़ी खरीदते रहे और तुम लेती जाओ और जीजा जी के इतने पैसे कहां लेकर जाओगी?"
"देखो मम्मी भाई क्या कह रहा है.,"....
"बोलने दो इसे जब इसकी मैडम आ जाएगी जब इन से पूछूंगी"
"हां ..एक दो मेरी मिसेज के लिए भी रखना कहीं सारी साड़ी तू ही ले जाए भुक्कड़ कहीं की, "
",चल भाग यहां से,
"मैं तो इसको बोल रही हूं कि बाजार से नई साड़ी दिला देती हूं लेकिन यह है कि पुरानी साड़ियों पर ही अटकी रहती है, " सब समझती हूं मैं भी तेरी नानी की साड़ियां इसी तरीके से लेकर आ जाती थी... कोई भी युग क्यों ना आ जाए????मां बेटी का रिश्ता ऐसा ही होता है बेटा
और मां की आंखों में आंसू आ गए....आज देखो कितनी महंगी से महंगी साड़ी ले लेती हूं लेकिन मैं प्यार नहीं ढूंढ पाती हूं काश ....कभी मां से जुदा होना ही नहीं पड़ता, "
शोभा भी मां के गले लग गई और बोलीतू नहीं समझेगा भाईजब अपनी मां से दूर रहते हैं तो कैसा लगता है? ???कितना सोचकर मिलने भी नहीं आ पाते ...
सब कुछ सही होते हुए भी अगर किसी मुश्किल दौर से गुजरते हैं तो साड़ी को बाहों में भर कर मां के करीब आ जाते हैं........,".हां सही तो कह रहा है भाई एक बार पहनती हूं और साड़ी अच्छी लगती है तो मम्मी भी कह देती है तू ही रख ले"मुझे तो बहुत अच्छा लगता है मां की साड़ी में लिपटा हुआ प्यार माँ को अपने पास महसूस कर पाती हूं ।