Dilip Kumar

Romance

4  

Dilip Kumar

Romance

नाटक का अंतिम दृश्य

नाटक का अंतिम दृश्य

4 mins
279


संकरी गली सी, जर्जर भवन और विद्यालय प्रांगण के उस हिस्से में, जहाँ कोई जाना नहीं चाहता है, ये अक्सर मिलते हैं। पीली पुताई पर, पानी रीसने के कारण यह स्थान थोड़ा असुरक्षित है, लेकिन हमारी कथा नायिका के लिए यह मिलन स्थल है। यह मिलन स्थल भी वैसा ही है -जैसे सायं काल में आकाश- धरती का मिलन स्थल, वह रंगीन परीदृश्य । कैसे इस रहस्य का पता लोगों तक पहुंचा और किसी न किसी बहाने लोग इस रंग को अपने आँखों में भर लेना चाहते हैं। बात केवल इनके पकड़े जाने तक ही सीमित नहीं, बात तो बात है । बात दूर तक जाएगी । इसके बाद रायता फैलाने का काम भी सरल हो जाता है। लोग चटखारे ले लेकर एक अठारह वर्षीय बारहवीं का किशोर छात्र और उसकी तीस वर्षीय विवाहित संस्कृत साहित्य शिक्षिका के सम्बन्धों की चर्चा का रस्सास्वादन करते हैं । बात कालोनी तक फैल गयी है। इस नाटक को न जाने किसका श्राप लगा है कि अपने प्रथम दृश्य से ही यहाँ अनेक आपतिजनक घटनाएँ घटती रही हैं। प्रत्येक दृश्य में एक' प्रेम कहानी' है। इसे 'प्रेम कहानी' कहने में भी मुझे शर्म आ रही है। मैं इसे परिभाषित नहीं कर पा रहा हूँ। कहानी के प्रारम्भ में, मसलन साक्षात्कार के समय पति- पत्नी कोई और होता है, नियुक्ति के समय दोनों में से कोई एक बदल जाता है। अविवाहित जोड़ों की तो बात ही निराली है। उनके दिन की शुरुआत कहीं से होती है और शाम में अंत कहीं होता है। इनकी तलाश कभी खत्म नहीं होती और ये प्रेमी जोड़े बदलते ही रहते हैं। पता नहीं, इनकी आसुरी प्रवृति का अंत कब होगा! ख़ैर, विद्यालय प्रबंधन ने शिक्षिका और हमारी कथा नायिका को तत्काल प्रभाव से सेवा मुक्त कर दिया है। 

डबडबाई लाल-लाल आंखे, गोरा-पीला चेहरा, खनकती चुड़ियाँ पहने आज नाटक के अंतिम दृश्य के लिए मेरी कथा नायिका तैयार हो कर आई थी। इस नाटक की कहानी का नायक उसका विद्यार्थी और प्रेमी दोनों है। ये प्रेम में इतने मगन हैं कि इनको दुनिया की कोई परवाह नहीं। जमाने से बेफिक्र, हमारी कथा नायिका समय और स्थान ढूंढ ही लेती है। अचानक वह चिल्ला उठती है- नहीं जाने दूँगी तुम्हें यहाँ से!! मुझे भी अपने साथ ले चलो। मैं तुम्हारे लिए अपने पति का परित्याग करती हूँ, अपनी संतान का भी- जो मुझे अति प्रिय है। लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती हूँ। वह फूट-फूटकर रोने लगी। रो लो –जी भर कर रो लो। रोने से जी हल्का होता है। मैं तुम्हें अपने साथ अवश्य ले जाऊँगा। तुम्हें थोड़ा इंतज़ार करना होगा। दोनों का प्रेमालाप कॉरीडोर में चल रहा था, इस बात से अनभिज्ञ- कि आस पास लोगों का एक बड़ा समूह उनकी हरकतों पर हतप्रभ था। सबके चेहरों से अलग-अलग रंग छिटक रहा रहा था। लेकिन हमारे नाटक के खलनायक जिनका रंग भी काला और बोली भी कड़वी- के वहाँ अचानक आ जाने से भगदड़ सी मच गयी। इन्होंने दोनों को बड़ी निर्दयता से एक दूसरे से अलग कर दिया।

गुस्से मे आ गयी हमारी नायिका- कहा- मैं तो बस अनुभव प्रमाण पत्र लेने आई थी। लेकिन मुझे अब वह भी नहीं चाहिए। मैं आपके प्रमाण पत्र को ठुकराती हूँ। मैं अपने दिल में, अपनी साँसों में इस अनुभव रूपी इंद्रधनुषी रंगों को, अपने में समेटे लिए जा रही हूँ। यदि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो ये मेरे पास अवश्य आ जाएँगे। अचानक उसके शब्दों में अपने प्रिय छात्र-सह- प्रेमी के लिए सम्मानसूचक शब्द फूट पड़े थे। आज जो इस विद्यालय में होली खेली जा रही थी- उसमे गुलाल न थे, रंग बिरंगे फूल भी नहीं थे, लेकिन सबके चेहरों के भाव एक न एक रंग बयां कर रहे थे। कोई इन्हें निर्लज तो कोई इन्हें सच्चा प्रेमी समझ रहा था। सबसे अलग रंग में थे- हमारी कथा नायिका के पति- जो इन बातों से अनभिज्ञ, विद्यालय की देहरी पर मैडम के वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे। मैडम ने तो उन्हें बताया था कि विद्यालय से कुछ आवश्यक कागजी कारवाई पूरी कर वे जल्द ही वापस आ रही हैं।

आ रहीं हैं मैडम - चेहरे का रंग उड़ा हुआ है। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं। अब इनका चेहरा सावित्री-सम प्रतीत होता है, पवित्र नहीं !

यह नाटक का अंतिम दृश्य था। काला पर्दा धीरे-धीरे बंद हो रहा है। लेकिन नाटक अभी जारी है। एक नयी अविवाहित शिक्षिका ने आज ही ज्वाइन किया है, जिसके चेहरे पर निर्दोष मासुमियत झलक रही है -पता नहीं- पुराने पात्र नई भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। भूरी आँखें, लाल चेहरा गौर वर्ण -इसे ही अगले नाटक के लिए फिर से अभिनेता चुनता हूँ। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance