नाला-नाला जिंदगी
नाला-नाला जिंदगी
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"जीवन में बड़े खतरों से बचाव के लिए छोटे मोटे जोखिम तो लेने ही पड़ते हैं लेकिन हमारी कोशिश यही रहनी चाहिए कि अधिकतम सावधानी के साथ सतत् अपने लक्ष्य की ओर योजनानुसार बढ़ते रहना चाहिए और जैसे- जैसे नई समस्याएं आती जाती हैं उनके लिए ने समाधान भी निकलते हैं। जहां इतनी समस्याओं के समाधान हुए हैं तो स्वास्थ्य और शिक्षा के बेहतर विकल्प भी अवश्य मिलेंगे।"-सुबोध ने अपनी पत्नी जिज्ञासा को इसी गांव में स्वास्थ्य और शिक्षा को भी व्यवस्थित करने का अपना दृढ़ इरादा जताते हुए कहा।
"तो क्या तुमने सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री के बाद इसी गांव में ही बसने का इरादा कर लिया है? अभी तक तो ठीक है लेकिन बच्चों की आगे उच्च शिक्षा के लिए क्या और कैसे होगा?"- जिज्ञासा ने भविष्य से जुड़े दो प्रश्न सुबोध के सामने रख दिए।
"मैं अपनी इस सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री का सदुपयोग अपने उस क्षेत्र को बेहतर करने में कर रहा हूं जिसका मेरे कौशल पर पहला हक है। हमारे गांव के साथ बहने वाला नाला जो सिवाय गर्मियों के आठ महीने तक एक समस्या ही बना रहता था। जिससे कारण हमारा जिला स्तर शहर तो बहुत दूर तहसील स्तर के कस्बे तक से सीधा संपर्क नहीं हो पाता था। हमारे पांचवीं कक्षा पास करने के बाद इस नाले के कारण उस ओर के आधा किलोमीटर की दूरी वाले जूनियर स्कूल में जाने की बजाय तीन किलोमीटर दूर स्थित जूनियर स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे। उसके बाद कक्षा नौवीं से बारहवीं तक इण्टर कॉलेज के लिए सात किलोमीटर के बजाय तेरह किलोमीटर साइकिल चलाते थे। सोचो आज़ादी के बाद हमारे गांव जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में विकास का पहिया कितनी धीमी गति से घूमा। अगर मेरी जगह यह इंजीनियर का कार्यभार दूसरे के पास होता तो अब तक जो काम हुआ है इसका एक चौथाई भी न हुआ होता और इसकी गुणवत्ता भी वैसी ही होती जैसी दूसरे पुलों, भवनों और सड़कों की होती है। तुम्हारे पिताजी के गांव का पंचायत घर हमारे गांव के पंचायत घर के बाद बना है और उसकी हालत देखकर लगता है कि उसे श्री जसपाल जी भट्टी के 'फ्लाप शो' के कई कमीशन खोरों ने ईमानदारी को किसी गहरे गड्ढे में दफ़न करके बनाया हो। दादाजी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण असमय स्वर्ग सिधारे तभी से मेरा लक्ष्य था कि हम इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को भी शिक्षा के समान ही बेहतर केंद्र के रूप में विकसित करेंगे। इसमें तुम्हारा साथ हमेशा ही मेरा मनोबल बढ़ाता रहा।"- सुबोध ने जिज्ञासा के सामने अपने और आसपास के गांवों के लोगों की जटिल समस्याओं का सजीव शाब्दिक चित्र वर्णन प्रस्तुत किया।
कुछ क्षण ठहर कर सुबोध फिर बोला - ये हमारे गांव से सटा नाला जो आज वरदान है पहले एक अभिशाप था क्योंकि यह प्रतिवर्ष बरसात के दिनों में हमारे अपने गांव या आसपास के गांवों के एक दो छोटे बच्चों को निगल जाता था। लोगों की लाख सतर्कता के बावजूद असावधानी के कारण डूबने से उनकी मृत्यु हो ही जाती थी।नाले पर बने पुल और हर वर्ष इसके किनारों की मरम्मत, इसके किनारे मछली पालन केंद्रों,पादप नर्सरियों, इसके पानी का कृषि और बागवानी के कार्यों में उपयोग हमारे क्षेत्र के छोटी-बडी जोत वाले किसानों को तो हुआ ही है साथ ही साथ भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भी हुआ है।इस पुल के बनने से हमारे जिले का शहर और सीमावर्ती जिले के शहर के साथ कई कस्बे भी इस चौड़े सड़क मार्ग के कारण जुड़ गये हैं।इस आधारभूत ढांचे के विकसित होने के कारण ही तो हमारे गांव सहित कई गाँवों में बैंकिंग , बाजार, होटल-रेस्टोरेंट-ढाबे,अनाज-फल-सब्जी मंडियों का विकास हो पाया है।जो लोग पहले गांव में अपने मां- बाप,बीबी-बच्चों को छोड़ दूर-दराज शहरों में मजदूरी करने चले जाते थे और शहरों की गन्दी बस्तियों में नारकीय परिस्थितियों में जीवन यापन करते थे। आज वे अपने गांव में रोजगार उपलब्ध हो पाने के अपने मां -बाप की सेवा और बीबी-बच्चों की देखभाल कर पा रहे हैं।यह देखकर हमें भी अतीव हर्षानुभूति होती है और तुम्हें भी अवश्य होती होगी। आखिर शिक्षा भी तो वही सार्थक है जो समस्याओं से मुक्ति प्रदान करे जिससे हमारे अपनों का जीवन सुखमय और आसान बने। इससे अत्यंत आत्मिक सुख की अनुभूति होती है ।"
"हम सदा दूसरे की चिंता करते रहें और अपने बच्चों के भविष्य के बारे में कुछ न सोचें।अगर तुम्हें अपनी पढ़ाई के लिए इन गांवों की बजाय शहर में रहकर पढ़ाई का मौका मिला होता तो शायद तुम और बेहतर तरीके से पढ़ाई कर पाते।"- जिज्ञासा ने अपने मनोभावों को प्रकट करते हुए कहा।
"बच्चों की पढ़ाई का जब तक सही समय आएगा तब तक और सुधार होगा और आने वाले कल की चिंता में सोच-सोच कर अभी से क्यों स्वास्थ्य खराब करें।हम सबको यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि बीते समय का पश्चाताप और आगामी भविष्य की चिंता वह घुन है जो बिना आवश्यकता के हमारे समय और स्वास्थ्य दोनों को बर्बाद करता है। पढ़ाई बड़े शहरों में रहकर बेहतर ही होगी तो यह भ्रम है। दिल्ली में ही अपने घर के साथ वाले शर्माजी को देखो।उनका अपना घर है, आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं तो कमजोर भी नहीं लेकिन इकलौता बच्चा भी ठीक ढंग से नहीं पढ़ पाया। सामने वाले वर्माजी जो किराये के मकान में रहते हैं शायद शर्माजी से उनकी आय भी कम ही है ।उनके तीन के तीनों बच्चों ने मोहल्ले में ही नहीं अपने स्कूल और कॉलेजों तक में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। हमारे पिताजी भी उनके सद्व्यवहार और कुशाग्रबुद्धि की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं।"-सुबोध ने जिज्ञासा को पूर्णरूपेण आश्वस्त करते हुए कहा।
"तुम्हें तो एक बात समझाने की कोशिश की जाए तो लेक्चर शुरू कर देते हो।"- जिज्ञासा झल्लाती हुई उठ खड़ी हुई।
"मैडम, तभी तो स्कूल और कॉलेज स्तर की सभी भाषण प्रतियोगिताओं में मैं सदैव प्रथम स्थान पाता था। यह तो तुम बड़े अच्छे समय पर खड़ी हुईं , लगता है मेरे चाय पीने के मनोभाव को तुमने पढ़ लिया।अग्रिम रूप से एक अच्छी चाय के लिए धन्यवाद।"-सुबोध मुस्कुराते हुए बोला।
जिज्ञासा की झल्लाहट मुस्कुराहट में बदल गई और वह रसोई घर की ओर चल दी।