नाकाम कोशिश
नाकाम कोशिश
जानती हो शुभा - आखिर वहीं हुआ जिसका डर था! तीन बार शिरीष की ब्रेन सर्जरी हुई, दो बार तो यमराज को भी मात देकर वो लौट आया था! याद है ना, पिछली बार तो पूरे एक महीने कोमा में रहा। डाॅक्टरों ने, हम सबने उम्मीद छोड़ दी थी, हर वक्त मुझे डर लगा रहता था लेकिन मेरे मन ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। वो एकदम निश्चिंत था, अक्सर मुझसे कहता - अरी, कुछ नहीं होगा! चिंता मत कर तेरा शिरीष सही सलामत घर लौट आएगा! लेकिन मैं अनजाने डर से घिरी हुई इधर-उधर होती रहती। और सच में शिरीष मौत को मात देकर घर लौट आया था, जब अस्पताल से मैं और शिरीष घर के लिए निकल रहे थे, मेरी खुशी का पारावार न था!
लेकिन अबकी एक साल पहले जब तीसरी बार सर्जरी हुई, सर्जरी के बाद दो दिन तो बिल्कुल ठीक रहा,?बातें भी की थी पर धीरे-धीरे तबीयत बिगड़ने लगी और कोमा में चला गया। फिर भी जाने क्यों डर नहीं था लेकिन मेरा मन बहुत ही घबरा रहा था एक अनजाने डर के शिकंजे में कसा हुआ, हालांकि यह डर अनजाना नहीं था। वो जानता था कि कहीं शिरीष, ओ नो, वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। सारे बंधन तोड़ कर एक हफ्ते में ही शिरीष चला गया! मुझे तो अंत तक यही लगा था कि शिरीष पिछली बार की तरह इस बार भी सही सलामत लौट आएगा इसलिए मन से कहती - क्यों परेशान होता है और मुझे भी करता है!
सच में मन जो जितनी शिद्दत से महसूस करता है वहीं होता है! इसलिए लाख समझाने पर भी मन का डर खत्म नहीं हुआ और शिरीष बिना बताए चुपचाप इस दुनिया से कूच कर गया, पता भी नहीं चला!
मुझे कितना दुख-दर्द हुआ था, पीड़ा ने घेरा था, पर तुम नहीं समझोगी!
क्यों, मैं नहीं समझूंगी जिसने अपने जिगर का टुकड़ा खोया है अभी सात महीने पहले! जानती हो इन्सान का सबसे बड़ा डर क्या होता है? रेणु ने अपनी सवालिया निगाहें शुभा के चेहरे पर टिका दी। ऐसे क्या देख रही है? यह तो तू भी अच्छी तरह से जानती ही है - अपनों को खोने का डर ही सबसे बड़ा डर है!
हां यार, खूब समझती हूं, महसूस भी करती हूं फिर भी भुलाने की नाकाम कोशिश में, बस, यूं ही तुमसे बहस कर लेती हूं!