मुस्कुरातें हम
मुस्कुरातें हम


सच होने वाले कभी सपने नहीं होते है और सपने कभी सच नहीं होते है। क्योंकि जिंदगी बड़ी बेरहम है । रसाली जर्रे - जर्रे पर रोना लिखती हैं। कहीं कोई खड़ा ना हो जाये पैरों पर दिन ब दिन हराम होती जाती है।
दिमाक को दीमक लग चुकी है। ना ढंग से सोच पाता है। और ना कभी खाली रहता हैं। जिसको देखो किसी न किसी की काट ही रहा है।
इंसान की आंखों में एक बूंद भर ही सच्चा आँसू नहीं है। क्योंकि सच्चा रोज सिर्फ दिल रोटा है आंखे नहीं।
पर हमें क्या हम तो खुद हरामी है। जिंदगी का सत्यानाश हो।
जैसे चाहेंगे वैसे जियेंगे। चाहे कितनी ही प्रॉबलम्स क्यों न हो।