मुश्किल मुश्किल
मुश्किल मुश्किल
दफ्तरों में तीन प्रकार के लोग होते है कर्मी, अकर्मी, यदाकदा कर्मी। कर्मी हमेशा काम में लगे रहते हैं इनके पास कभी काम कम नहीं होता, अकर्मी हर समय फुर्सत में रहते हैं। यदा कदा कर्मी कभी कभी व्यस्त देखे जा सकते है ।
किन्तु बड़े बाबू का पाला एक ऐसे कर्मचारी से पड़ गया जो इन सबसे अलग किसी और वर्ग का था वल्की थी। वह हर समय व्यस्त रहती थी और उसका काम कभी पूरा नहीं होता था। कोई फ़ाइल उसके पास पहुँचती तो फिर वापस पाना मुश्किल होता।आजकल तो स्त्री पुरुष का भेद नहीं है । किन्तु बड़े बाबू स्त्रियॉं का थोड़ा लिहाज करते थे । पुरुष होता तो डांट डपट से, धमका कर किसी तरह काम निकालते । किन्तु उससे ये सब नहीं कर सकते थे । बड़े बाबू उसे नहीं डांट पाते किन्तु बड़े साहब से खुद उसकी वजह से डांट खाते । आखिर काम करवाने की ज़िम्मेदारी तो उनकी थी ।बड़े बाबू ने मोहतरमा का नाम मुश्किल रख छोड़ा था । बड़े बाबू के सितारे भी शरारती तबीयत के थे ।बड़े साब और मुश्किल मोहतरमा एक साथ बाहर से स्थानांतरित होकर आए थे। साहब को काम से मतलब था और मुश्किल का काम बेमतलब था। और दोनों से दो तीन साल बचना मुश्किल था।
बड़े बाबू का एक संकट मोचक था चेलाराम दफ्तरी। एक दिन बड़े बाबू ने उससे मुश्किल की चर्चा की। उसने कहा,”काम में मन न लगता होगा। कोई वजह होगी। जॉइन करने के साथ ही तो उसने ट्रान्सफर के लिए एप्लीकेशन लगा दी थी।बड़े बाबू की बांछे खिल गयी। उन्होंने मुश्किल को बुलाकर पूछा, “तुम ने स्थानांतरण के लिए आवेदन किया है।”
मुश्किल ने कहा, “किया तो है, सर । पता नहीं कब तक होगा। कोई सोर्स तो है नहीं अपना।”
बड़े बाबू ने पूछा, “मैं कोशिश करूँ?”
मुश्किल ने प्रसन्न होकर कहा, “आपकी मेहरबानी होगी।”
बड़े बाबू ने सोचा, “कंटेक्ट मुश्किल से छुटकारा दिलाने के नहीं तो किस काम आयेंगे।”
बड़े बाबू ने मुख्यालय में भल्ला साहब को फोन लगाया और ज़ोर देकर कहा, “मेरा निजी मामला है। कृपया शीघ्र करा दें। लगभग एक सप्ताह में आदेश आ गये। पंद्रह दिन बाद वह बड़े बाबू को बहुत धन्यवाद देकर चली गयी। बड़े बाबू ने भी राहत महसूस की ।
बड़े बाबू ने ध्यान दिया इसबीच मुश्किल ने काम अच्छा किया था उन्हें किसी और मुश्किल में नहीं डाला था।