अधूरी सच्चाई
अधूरी सच्चाई
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राकेश और बीना की जोड़ी सोसाइटी में काफी लोकप्रिय थी । एक अच्छे दंपति के रूप में उनकी मिसाल दी जाती थी ।
सोसाइटी के सालाना जलसे में उन्हे सर्वश्रेष्ठ विवाहित जोड़ी का खिताब भी मिला था । उनसे जब किसी ने उनकी सफलता का रहस्य पूछा तो उनका शानदार जवाब था, 'हम हमेशा ईमानदारी से सम्बन्धों को निभाने और सच बोलने में विश्वास रखते है , चाहे वह कितना भी कठिन या असुविधाजनक क्यों न हो।" उनके दोस्त और परिवार अक्सर उनकी ईमानदारी और भरोसेमंदता के लिए उनकी प्रशंसा करते थे।
राकेश और बीना दोनों ही नौकरी करते थे । इसलिये घर और बाहर के सारे काम दोनों ही आपसी सुविधानुसार कर दिया करते थे । किन्तु कुछ दिनों से दोनों अपने अपने आफिस में कुछ अधिक व्यस्त रहे थे । किन्तु जलसे के एक दिन बाद रविवार था । दोनों की छुट्टी थी । वे एक-दूसरे के सामने बैठे, पिछले सप्ताह की घटनाओं पर चर्चा कर रहे थे, तो बिजली का बिल .याद आ गया । दोनों में से कोई भी इसे जमा कर सकता था । लेकिन किन्हीं कारणों से दोनों ही ने बिल का भुगतान नहीं किया। अब दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे ।
यह सब एक साधारण बहस से शुरू हुआ कि कौन बिजली बिल का भुगतान करना भूल गया है। कहासुनी बढ़ गयी ।
राकेश ने बीना से कहा , "तुम भुलक्कड़ होती जा रही हो ",
बीना ने कहा ,"तुम घर के प्रति लापरवाह होते जा रहे हो।"
बहस तेजी से बढ़ गई, दोनों ने पिछली घटनाओं को खोदना शुरू कर दिया और विभिन्न बातों के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया।बहस बढ़ती गयी । टीवी चल रहा था जिस पर उनका ध्यान ही नहीं था । अचानक स्थानीय न्यूज़ चैनल ने सोसाइटी के जलसे की विडियो क्लिप चला दी । उनकी सोसाइटी के जलसे की विडियो देखकर दोनों खामोश रह गये। अगर वे झगड़ नहीं रहे होते तो इस समाचार को देख कर बीना खुशी से उछल पड़ती और राकेश के गले लग जाती और राकेश उसे आलिं
गन बद्ध कर रहा होता और एक दूसरे को बधाइयाँ देकर उत्सव सा मना रहे होते ।
अब उन्हें अहसास हुआ कि उनकी सामाजिक छवि की सच्चाई पूर्ण नहीं है ।
वे एक-दूसरे के प्रति पूरी तरह से ईमानदार नहीं थे। राकेश वास्तव में बिल का भुगतान करना भूल गया था, लेकिन वह यह तथ्य भी छिपा रहा था कि वह काम में संघर्ष कर रहा था और उसे अपनी नौकरी खोने का खतरा था। और बीना, अपना बचाव करने के अपने प्रयासों में, यह उल्लेख करने में विफल रही थी कि वह उनकी वित्तीय स्थिति से चिंतित महसूस कर रही थी और गुजारा करने के बारे में चिंतित थी।
वे कुछ देर तक मौन बैठे रहे और इस तथ्य पर विचार करते रहे कि उनकी सच्चाई पूर्ण नहीं है। अब उन्हें एहसास हुआ कि सच्चाई का उनका संस्करण उनके अपने पूर्वाग्रहों और असुरक्षाओं से दूषित था।
आख़िरकार राकेश ने चुप्पी तोड़ी. 'मुझे क्षमा करें, बीना। मुझे आपको अपनी कार्य स्थिति के बारे में बताना चाहिए था। मैं आपको चिंतित नहीं करना चाहता था।'
बीना ने सिर हिलाया, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। 'और मुझे भी खेद है. मुझे अपने डर और चिंताओं के बारे में आपके साथ ईमानदार होना चाहिए था।'
उन दोनों ने माफी मांगी और एक-दूसरे को गले लगाया, ।
उस दिन से, राकेश और बीना ने एक-दूसरे के साथ अधिक खुलकर और ईमानदारी से संवाद करने का सचेत प्रयास किया। उन्होंने सीखा कि कमजोरियों और डर को स्वीकार और साझा करने के लिए पर्याप्त साहस की आवश्यकता होती है ।उन्हें अपने संबंधो की सच्चाई के अधूरेपन को स्वीकार किया और मिलकर इसका सामना करने का निश्चय किया । फलस्वरूप उनके संबंधो की ईमानदारी और गहराई ,बढ़ती गयी और जब उन्होंने उस तर्क पर पीछे मुड़कर देखा, तो उन्हें एहसास हुआ कि कभी-कभी, हमारी सच्चाई में खामियां पहचान कर उनका निराकरण हमें ईमानदारी और समझ के गहरे स्तर तक ले जा सकती हैं।