Ravi Ranjan Goswami

Children Stories Inspirational

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Ravi Ranjan Goswami

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सुसंगति

सुसंगति

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बहुत समय पहले भारत के एक छोटे से राज्य हरिनगर पर मानेन्द्र सिंह नामक राजा का शासन था। वह एक कुशल और प्रजा वत्सल राजा था । उसकी आयु 50 वर्ष हो गयी थी और वह वानप्रस्थ को जाना चाहता था । उसका एक ही पुत्र था जिसका नाम था नीलाभ । उसका पालन पोषण बड़े लाड़ प्यार से हुआ था । नीलाभ ने किशोर वय को पार कर युवावस्था में प्रवेश किया था। उसमें एक राजा बनने के योग्य सारे गुण थे । राजा उसे राज्य सौंप कर वानप्रस्थ के लिये वन में जाना चाहता था। किन्तु उसे एक दिन खयाल आया कि वह अपने पुत्र की योग्यता को पुत्र मोह के कारण अधिक तो नहीं आंक रहा है। उसको भावी राजा जानकर दरबार के चाटुकार लोग अवसर मिलने पर उसकी अनावश्यक अतिश्योक्ति में प्रशंसा करते थे।

 राजा ने राज गुरु से सलाह ली। राजगुरु ने कहा, "मुझे राजकुमार की योग्यता पर संशय का कारण नहीं दिखता। आप चाहे तो परीक्षा ले लें । "

राजा ने कहा, "मैं चाहता हूँ आप परीक्षा लें।"

राज गुरु ने कहा, "ठीक है महाराज।"

राज गुरु ने राज्य के एक काबिल गुप्त चर को राज कुमार के मित्रों की जानकारी करने की आज्ञा दी। उन्होंने इस कार्य के लिए एक माह का वक्त दिया । 

एक माह बाद गुप्तचर ने सूचना दी कि राजकुमार के अनेक मित्र थे किन्तु घनिष्ठ मित्र चार ही थे । 

वे चारों अध्ययन शील, मधुभाषी, वीर और चरित्रवान थे । राज गुरु ने यह जानकारी राजा को दी । 

राजा ने पूछा, "आपने गुप्तचर द्वारा राजकुमार के बारे में कोई आसूचना प्राप्त नहीं की।"

राजगुरु ने कहा, "वैसे तो राजकुमार को मैं बचपन से जानता हूँ । उनमें कोई दोष नहीं । अगर होगा भी तो सुसंगति से परिमार्जित हो चुका होगा अथवा हो जायेगा। 

राजा यह सुनकर आश्वस्त और प्रसन्न हुआ । उसने बेहिचक प्रसन्नता पूर्वक नीलाभ को राजा घोषित किया । नीलाभ को राज्य सौंपकर वह निश्चिंत होकर वानप्रस्थ के लिए चला गया । 



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