Ravi Ranjan Goswami

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जाने भी दो यार

जाने भी दो यार

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एक समय आगरा में कोशी,लारेंस और माया कालेज में एक साथ पढ़ते थे। वे पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे थे। उनकी दोस्ती भी थी । किन्तु लॉरेंस माया को चाहता था और माया स्वभाव से बिंदास थी। उसके पिता सेना में रहे थे अतः उसने भारत के अनेक छोटे बड़े शहरों में रहकर शिक्षा पायी थी। माया की लारेंस में वैसी रुचि नहीं थी जैसा वह समझता था। कोशी और लारेंस की अच्छी मित्रता थी। हालाँकि, जीवन के क्रूर मोड़ ने उन्हें अलग अलग कर दिया। माया के पिता का ट्रान्सफर झाँसी हो गया। जिससे, वह भी वहाँ चली गयी । कोशी का कालेज के बाद दिल्ली में एक न्यूस चैनल में चयन हो गया। माया को भी एक अखबार के दफ्तर में नौकरी मिल गयी। उनके अचानक अलगाव ने लॉरेंस का दिल तोड़ दिया था । कुछ दिनों उनका संपर्क रहा । उसने माया से संपर्क बनाये रखने की कोशिश की किन्तु माया ने अपेक्षित व्यवहार नहीं किया समय के साथ वे अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त होते गये। 

लॉरेंस ने अपना एक साध्यकालीन पत्र निकालना शुरू किया था। 

संयोग बस दिल्ली जाते समय रेलगाड़ी में कोशी और माया का आरक्षण 2एसी डिब्बे के एक ही केबिन में था ।

माया झाँसी से ट्रेन में चढ़ी थी । बाद में आगरा स्टेशन से कोशी चढ़ा और जब वह अपनी बर्थ पर पहुंचा। तो माया और राकेश दोनों को आश्चर्य जनक प्रसन्नता हुई।

कोशी के मुंह से निकला,”अरे माया तुम कहाँ जा रही हो ?”

माया ने कहा, “दिल्ली, और तुम?

कोशी ने कहा,”मैं भी दिल्ली जा रहा हूँ।“

फिर माया ने पूछा , “तुम दिल्ली किस लिए जा रहे हो ।“

कोशी ने कहा, “मेरी नेशनल न्यूज़ चैनल में नौकरी लग गयी है। जॉइन करने जा रहा हूँ।’’

माया ने चहकते हुए कहा, “कोङ्ग्रट्स, मैं भी रोजनामचा पत्र में नौकरी करने जा रही हूँ ।“

“कोङ्ग्रट्स “ कोशी ने भी बधाई दी। 

कोशी और माया की बर्थ आमने सामने थीं । दोनों यात्रा मे अधिकांश समय बातें करते रहे ।

पुरानी यादों के बारे में ,परिवार के बारे में, नौकरी के प्रकार और उनकी संभावनाओं के बारे में ।

दिल्ली में उनके रहने की व्यवस्था उन संस्थाओं की ओर से की गयी थी जिनके लिये वो काम करने वाले थे । संयोग बस उनके निवास एक ही कालोनी में थोड़ी दूरी पर थे ।

नये शहर में अजनबियों के बीच वे पूर्व परिचित दोनों और नजदीक आ गये।

कोशी एक लंबा, सुगठित व्यक्ति था, उसकी बड़ी बड़ी आंखे सामने वाले के अंदर तक देखती मालूम होती थीं । और उसका व्यक्तित्व ऐसा था कि किसी का भी दिल धड़क सकता था।

माया एक खूबसूरत, जीवंत महिला थी जो अपने आकर्षण से जिस किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकती थी । माया और कोशी की नज़दीकियाँ बढ़ती गयी और वे दोनों एक दूसरे के प्रेम में पड़ गये।

एक दिन इंडिया गेट पर घूमते हुए कोशी ने माया को प्रपोस किया तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया। दोनों ने अपने परिवार जनों को अपने निर्णय से अवगत कराया।

विवाह आगरा से होना निश्चित हुआ ।

जब यह खबर आई कि माया और कोशी शादी कर रहे हैं, तो लॉरेंस को अत्यधिक क्रोध आया और दुख भी हुआ । उसने उनके मिलन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उनके विवाह समारोह को बाधित करने का फैसला किया।

जैसे-जैसे दिन करीब आता गया, लॉरेंस ने विभिन्न योजनाओं के बारे में सोचा। फिर भी,माया के प्रति उसका अंतर्निहित प्रेम उसे लगातार उसके द्वारा किये गये वादे की याद दिलाता रहा जो उसने कभी अपने मन में किए थे ; माया की ख़ुशी हमेशा सुनिश्चित करने के लिए। इस के बावजूद, लॉरेंस विवाह को रोकने के लिए समारोह में हंगामा करने पर आमादा था।

शादी का दिन आ गया. राजसी चर्च ताजे फूलों की खुशबू से भर गया था और मधुर विवाह भजनों की ध्वनि हवा में छा गई थी। माया दुल्हन की तरह सजी धजी गलियारे से नीचे उतरी । वह बेहद सुंदर लग रही थी और सबका मन मोह रही थी । लॉरेंस ने उसे देखा तो उस का क्रोध बढ़ गया। उसे कोशी पर क्रोध आ रहा था । वह कभी उसका दोस्त था, फिर भी वह माया से शादी कर रहा था जिसे वह चाहता था। विडम्बना ये भी थी कि उसका प्रेम एक तरफा था और उसने कभी किसी को कुछ बताया नहीं था ।

वह पसीना पसीना हो रहा था और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी थी , जैसे ही कोशी माया की नाजुक उंगली पर अंगूठी पहनाने वाला था, लॉरेंस अचानक खड़ा हो गया और उसने शैंपेन का गिलास गिरा दिया, जिससे शोर मच गया।

वह हकलाते हुए बोला, "मैं... मैं... इस पर आपत्ति करता हूं...", हर आंख उसकी ओर घूम गई, लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, उसने माया की आंखों को देखा, आश्चर्य से भरी हुई। उसकी नज़र में किसी चीज़ ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया। उसने उसकी आँखों में खुशी की झलक देखी, और एक संतुष्टि भी।उसे महसूस हुआ माया उस विवाह से बहुत अधिक खुश है ।

अपने ऊपर एक आश्चर्यजनक शांति महसूस करते हुए, उसने अपने शब्दों को निगल लिया, "मैं... मुझे आशा है कि तुम दोनों... हमेशा खुश रहोगे।" इस बीच, कमरे में उपस्थित लोगों की आश्चर्य से सांसें तेज चलने लगीं और बड़बड़ाहट तेज़ हो गई। लॉरेंस ने अपनी एड़ी घुमाई और बाहर चला गया, अपने पीछे सदमे और फुसफुसाहट का निशान छोड़ गया।

विवाह समारोह को बाधित करने के अपने प्रयास में, लॉरेंस ने सच्चाई को गहराई से समझ लिया था। कि प्यार का मतलब छोड़ देना भी है, उसने एक नया अध्याय शुरू करने के लिए अपने पुराने दोस्त कोशी और अपनी प्यारी माया को छोड़कर चले जाने का फैसला किया। उसने खुद से कहा ,'जाने भी दो यार 'और अपने घर चुपचाप लौट गया । 

इस कथित रूप से बाधित विवाह समारोह में, लॉरेंस को मानसिक शांति मिली। माया के प्रति उसके प्रेम ने कोशी के प्रति उसके क्रोध को प्रतिस्थापित कर दिया। लॉरेंस की कहानी एक मूल्यवान सबक सिखाती है ; सच्चे प्यार का मतलब कभी-कभी जाने देने की ताकत भी होना होता है।



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