Ira Johri

Abstract

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मुंबई यात्रा संस्मरण

मुंबई यात्रा संस्मरण

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हमने बचपन से लेकर बड़ होने तक बहुत यात्राएं की हैं हर यात्रा जिन्दगी मे नया अनुभव ले कर आई पर जिन्दगी की कुछ बातें इन्सान कभी नहीं भूलता । बात १९९९-२००० की है हम लोग नयी शताब्दी वर्ष के आगमन की ख़ुशियाँ मनाने मुम्बई गोवा गये थे पूरी यात्रा बहुत बढिया आनन्ददायक गुज़री । मुम्बई मे हमलोग अपनी नन्द के घर पर ठहरे थे हम चार लोग थे हम दोनो और हमारे आठ व दस वर्ष के दोनो बेटे ।

वापसी के समय हम लोग निर्धारित समय पर कल्याण से वापस मुम्बई वी टी पँहुचे और वहाँ से मुम्बई सेन्ट्रल जाने के लिये जब स्टेशन से बाहर निकले तो पता चला कि आज टैक्सी ड्राइवरों की हड़ताल है तो किसी तरह क़ुली की मदद से हम लोग वहाँ पँहुचे वहाँ पँहुच कर देखा कि जिस गाड़ी से हमें वापस लखनऊ आना है वह टाटा बाय बाय करती जा रही है । हताश मन से हम वापस हो लिये । वापसी के लिये हम जिस लोकल ट्रेन मे चढ़े उसे दादर मे बदलना था वहाँ उतर कर हम दूसरी ट्रेन मे चढ़ कर कल्याण वापस पँहुचे ।वहाँ उतर कर हमने श्रीमान जी से बड़े बेटे के बारे मे पूछा कि वह कहाँ है और यही बात उन्होने हमसे पूछी उसके ना मिलने पर वो फौरन ही हमारे नन्दोई जी के भाई जो हमे छोड़ने हमारे साथ गये थे उनके साथ नन्दोई जी के पास दौड़े जो उस समय वहाँ रेलवे मे नियुक्त थे और हमारा भी दिमाग घूम गया।

हम अपने छोटे बेटे को अच्छी तरह समझा कर कि हिलना नही वहाँ से कह कर बड़े बेटे को वापस लाने वापसी की ट्रेन मे बिना टिकट बैठ गये । अब रास्ते भर तरह तरह के लोग और उनकी बातें घबराहट के मारे दिल बैठा जा रहा था माँ दुर्गा को याद कर रही थी दो घंटे का सफर काटे नहीं कट रहा था किसी तरह जब वहाँ पँहुची तो वहाँ लाउडस्पीकर पर घोषणा आ रही थी हरे रंग की चेक की शर्ट पहने लड़का मिला है सुन कर चैन आया और जब मैं वहाँ पँहुची तो पुलिस ने पहले तो हमे उससे मिलने ही नही दिया और जब मिला तो बता नही सकते कितनी खुशी मिली पीछे दूसरी गाड़ी से ये नन्दोई जी के साथ आ गये पता चला कि ये लोग तो यह सोंच सोच कर घबरा गये कि बेटे के साथ मै भी खो जाऊँगी । इस भीड़ मे वो पल कैसे गुज़रे हम जिन्दगी भर नहीं भूल सकते लम्बे समय तक बेटा बाजार मे हमारा हाथ ही नही छोड़ता था लोगों ने कहा कि मुम्बई मे और वह भी दादर मे खोया बेटा दो घंटे बाद मिल गया यह बहुत बड़ी बात है इसमे उसकी अक़्लमन्दी भी काम आई उसे जब पता चला कि वह छूट गया है तो वह सीधे वहाँ की पुलिस के पास गया और बुआ को फोन कर के सारी बात बताई जिससे वह किसी गिरोह के चंगुल में फँसने से बच गया और नन्दोई जी ने भी वहीँ कल्याण से दादर फोन करके सारी बात बता कर घोषणा करवा दी थी मै अपने जीवन की यह यात्रा कभी नहीं भूल सकती।



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