Ragini Pathak

Abstract Drama Inspirational

4.0  

Ragini Pathak

Abstract Drama Inspirational

मुझे शर्म नही आती।

मुझे शर्म नही आती।

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"चटाक ,चटाक घर का दरवाजा खोलते ही अजय ने अपनी पत्नी रमा के गालों पर जोरदार दो थप्पड़ मारा।


अचानक पड़े थप्पड़ से रमा जमीन पर नीचे गिर गयी, ये देखकर पास रमा की दो साल की बेटी उसे पकड़कर रोने लगी।

रमा ने गालों पर हाथ रखते हुए कहा, "अजय ऐसा क्या किया मैंने? "

फिर अजय ने दांत पिसते हुए गुस्से में कहा ,"रमा तुम्हें मैंने मना किया था ना कि तुम पार्टी में किसी के सामने अपना मुंह नहीं खोलोगी। किसी से भी बात नहीं करोगी। जाहिल गंवार कहीं की। जरा भी शर्म नहीं आती तुम्हें"

अचानक पड़े थप्पड़ से रमा सकपका गयी थी। उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर गलती क्या हुई?

रोते हुए कांपती आवाज में उसने दुबारा कहा, "लेकिन मैंने किया क्या?"

अजय ने गुस्से में तम्मतमाते हुए कहा, "अच्छा किया क्या? क्यों कहा कि मुझे अंग्रेजी में आपकी बात समझ नहीं आयी। आप हिंदी में पूछिए तो मैं आपको बता सकती हूँ।"

तब रमा को ध्यान आया कि उसने अजय के साथी अफसर की पत्नी के साथ हिंदी में बात की थी। क्योंकि रमा को अंग्रेजी बोलने नहीं आती थी। गांव के कॉलेज से बीए पास रमा की शादी उसके बड़े पापा ने अपने नजदीकी मित्र के बेटे अजय से करा दी जो एक सरकारी अफसर था। रमा के पिता एक किसान थे और मां एक सामान्य गृहणी। रमा अपने माता पिता की इकलौती सन्तान थी।

अजय के घर वाले भी मोटे दहेज की लालच में आकर शादी के लिए तैयार हो गए। रंग रूप और गुण से सुंदर रमा बहुत ही व्यवहारिक और सामाजिक स्त्री थी। इसके विपरीत अजय व्यवहार हीन और अहंकारी व्यक्तित्व का पुरुष था। उसे अपने पद और प्रतिष्ठा का इतना अभिमान था कि उसके आगे वो किसी को कुछ नही समझता था। खासकर अपनी पत्नी रमा को तो वो हमेशा से अपने पैर की जूती समझता था। उसके लिए पत्नी का मतलब ही सिर्फ उसकी शारीरिक जरूरतों को पूरा करना और घर में दबा कर रखना था।

तीन साल की शादी में ऐसा कोई दिन नहीं था जब अजय ने रमा को उसके पढ़ाई और नौकरी पेशा ना होने पर तंज ना कसा हो या उसके साथ हिंसा ना कि हो। बात बात पर रमा को थप्पड़ मारना तो उसके लिए आम बात थी।

रोज रोज की मारपीट से रमा परेशान हो चुकी थी। लेकिन आज उसने तय किया कि वो अब चुप नहीं रहेगी। उसने खुद को संभालते हुए, आंखों से बहते आंसुओं को पोंछते हुए अजय से कहा, "हाँ मुझे नहीं आती शर्म इस बात को स्वीकारने में की मुझे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनी नहीं आती। लेकिन इस वजह से मेरा कोई वजूद नहीं इस बात को भी मैं नहीं मानती।"

रमा के जवाब को सुनकर अजय ने फिर रमा के बालों को खींचते हुए कहा, “अच्छा बड़ी जुबान चलने लगी है कान खोलकर सुन लो, दो कौड़ी की औकात नहीं है तुम्हारी । ना ही तुम्हारा अपना कोई वजूद है। जिस दिन मैंने तुम्हें छोड़ दिया ना उस दिन लोगों के घर घर जाकर नौकरानियों की तरह झूठे बर्तन धूलोगी और झाड़ू पोंछा करोगी। तब जाकर मुश्किल से पेट भर पाओगी। लेकिन सम्मान और इज्जत तो भूल ही जाओ। क्योंकि तलाकशुदा स्त्री को समाज में कभी सम्मान नहीं मिलता समझी सिवाय तिरस्कार के"

"तुम मेरी पत्नी हो। एक सरकारी अफसर की पत्नी इसलिए लोग तुम्हारी इज्जत करते हैं। और यही तुम्हारी पहचान है।"

दो साल की बेटी को गोद में लेकर रमा ने कहा “ ओह ! तो मैं पिछले तीन सालों से धोखे में थी कि तुम मुझसे प्यार करते हो। और एक ना एक दिन तुम मेरे प्यार को समझोगे और मैं तुम्हें अपने प्यार से बदल दूंगी। क्योंकि पति पत्नी मिलकर एक दूसरे के पूरक बनते है। लेकिन मैं गलत थी। मुझे क्या पता था कि प्रतिस्पर्धा पति-पत्नी में भी होती है।”

ठीक है अजय मैं जा रही हूं हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से ... अब तुम अपने स्टैंडर्ड की दूसरी पत्नी ले आना अपने लिए। मैं तलाक के पेपर भेज दूंगी। कहकर रमा वापिस अपने गांव अपने माता पिता के पास चली गयी। विकट परिस्थितियों में भी रमा ने कभी हार नहीं मानी समाज के ताने उलाहने सहती रमा अब सामाजिक कार्यों में जुट गई। और अपने दर्द को कलम से सहायता से डायरी के पन्नों में समेटने लगी।

लेकिन कहते है ना कि सूर्य की तेज रोशनी को काले घनेरे बदल भी नहीं ढक सकते। उसकी प्रकार रमा की प्रतिभा भी कब तक समाज से छिपी रह सकती थी। रमा को भी प्रसिद्धि मिली।

पूरे 20 साल बाद अथक कड़े परिश्रम के बाद आज जब रमा और अजय का आमना सामना हुआ। तो पुरानी सारी कड़वी बातें याद आ गयी।

भीड़ से पूरा सभागृह तालियों से गूँज रहा था आज रमा की उपलब्धियों के सम्मान में आज उसे महामहिम राष्ट्रपति से समाज में महिला के सामाजिक सुधार एवं उनके लिए स्वरोजगार पैदा करने , के साथ साथ घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाने एवं उनकी शिक्षा के लिए जागृत करने के लिए पुरस्कार मिलना था।

हिंदी में सबसे मिलजुलकर बात करती भीड़ में आज अजय भी हाथ बांधे पीछे लाइन में खड़ा हुआ था. नजरें झुकाये अजय को आज समझ में नहीं आ रहा था कि जिसे वो गंवार समझता था दरअसल वो तो बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। रमा आज समाज में प्रसिद्ध लेखिका और समाज सुधारक थी जिसका सब सम्मान करते थे। आज उसे आगे बढ़कर बधाई देने में भी संकोच हो रहा था।

तभी एक पत्रकार आगे बढ़कर रमा से अंग्रेजी में सवाल पूछा ,

तो रमा ने आज फिर नम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर कहा, "महोदय कृपया अपना प्रश्न हिंदी में पूछे, मुझे अंग्रेजी नहीं आती।"

तब पत्रकार ने कहा, "जी माफी चाहूंगा, मैं अपना सवाल हिंदी में पूछता हूं।

"मैडम, आपके मन में सामाजिक सेवा का ख्याल कैसे आया, आपनी सफलता का श्रेय आप किसे देना चाहेंगी। आज जहाँ लोग इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चों को पढ़ा रहे है, बात कर रहे है। वहाँ आप हिंदी में लिखती है। क्या आपको कभी असफलता का डर नहीं लगा।"

तब रमा ने कहा," जी नहीं मुझे हिंदी बोलने लिखने में शर्म नहीं आती। और जैसा कि हम सब जानते है कि परिस्थितियों से बड़ा गुरु कोई नहीं होता, कठिन परिस्थितियां हमें मजबूत बनाती है, इसलिए आज मैं उस व्यक्ति का दिल से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ जिसने मुझे अपने जीवन और घर से मुक्त कर मेरे स्वाभिमान को जगाया। वो व्यक्ति मेरे जीवन के ऐसे गुरु हैं जिनके दिए घावों ने मेरे अंदर दबे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को जीवन में नई दिशा एवं कुछ कर गुजरने के जुनून को जगाया.

जिन्होंने मुझे अपने सामाजिक रिश्ते से आजाद करके बाहर समाज मे आकर सांस लेने का और समाज के लिए कुछ करने का मौका दिया।

बेशक आशीर्वाद और साथ मेरे माता पिता का मुझे मिला। लेकिन परिस्थितियों का ठोकर उसी व्यक्ति से मिला। इस लिए मै उनका आपके माध्यम से धन्यवाद करती हूँ। साथ ही हर महिला पुरुष से कहना चाहूंगी कि हमारी सफलता में हमारी भाषा कभी बाधक नहीं बन सकती। और हिंदी तो हम सभी भारतवासियों के दिल की भाषा है। सफलता के लिए बस सच्ची लगन और जुनून की जरूरत होती है।


थोड़ी देर बाद मौका मिलते ही रमा को अकेला देखकर अजय उसके सामने आकर खड़ा हो गया। और उसने कहा ,"रमा अपनी गुड़िया कैसी है? अब तो बड़ी हो गयी होगी।"

रमा ने कहा, "मेरी बेटी बिल्कुल ठीक है। और अब पढ़ाई के साथ साथ मेरे ही सामाजिक कार्यों में मेरी मदद करती है।"

अजय ने कहा," रमा तुम ऐसा क्यों कह रही हो... वो मेरी भी बेटी है मुझे माफ़ कर दो, मैं तुम्हारी अहमियत नहीं समझ पाया। तुम्हारे जाने के बाद मैंने अपने ही ऑफिस के महिला साथी अफसर से शादी की। दो बेटे भी है। लेकिन मेरी कोई इज्जत नहीं। ना ही मेरी कोई अहमियत है। मेरी पत्नी मुझे बात बात में बदनाम करने और मेरा कैरियर खत्म करने की धमकी देती है। और मैं चुपचाप सुनता हूँ। क्योंकि मैं कुछ नहीं कर सकता।"

चुपचाप खड़ी अजय की बातों को सुनती रमा ने आखिर में हाथ जोड़कर कहा, "महोदय मैं असहाय लोगों की मदद करती हूं, लेकिन आप तो खुद सक्षम है, मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकती।"


तभी रमा की बेटी वहाँ आ गयी और वो अपनी बेटी के साथ वहाँ से चली गयी। अजय आज नजरें झुकाये चुपचाप सब कुछ सुन रहा था लेकिन आज कुछ भी कहने की स्थिति में वो बिल्कुल नहीं था। और अपनी तिरस्कृत किए रिश्ते को जाते देख रहा था क्योंकि वो आज मजबूर था और कुछ नहीं कर सकता था लेकिन रमा आज मजबूत थी।


प्रियपाठकगण उम्मीद करती हूँ कि मेरी ये रचना आप सबको पसन्द आएगी। कहानी पसन्द आये तो कृपया शेयर और कमेंट करना ना भूले। कहानी का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि हम अक्सर कहते है कि ऐसा सिर्फ कहानियों में हो सकता है। लेकिन हम ये भूल जाते है कि कहानियां बनती ही तभी है जब ऐसी घटनाएं होती है। उन घटनाओं से प्रेरित होकर ही कहानियां लिखी जाती है। और महिलाएं तो शक्ति स्वरूपा होती है। अगर वो कुछ करने की ठान ले तो फिर कोई शक्ति उन्हें कभी हरा नहीं सकती



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