मृत्यु भोज
मृत्यु भोज


सुबह हो गई थी, चिड़िया चहक रही थीं, मुर्गा बांग दे रहा था। सूरज के आने का समय हो गया था। कौवा जागा ,चोंच से हाथ मुंह साफ किए हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना की हे प्रभु आज का दिन शुभ रहे, सब खुश रहें।,
बच्चों को उठाते हुए बोला "चलो चुन्नू मुन्नी उठो बेटे सुबह हो गई।" सूरज दादा निकल पड़े हैं अपने सफर पर, हम भी घर से निकलें।
बच्चों को तैयार करते हुए कौवे ने कहा,"याद है ना आज हमें मृत्युभोज में खाना खाने जाना है, पत्तलों में छोड़ी गई झूठन से हमारा आज अच्छी तरह से पेट भर जायेगा।"
चुन्नू ने सवाल किया "पापा मृत्यु भोज किसे कहते हैं।" बेटे जब कोई बुजुर्ग मर जाता है तब मरने वाले की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ किया जाता है, सबको भोजन खिलाया जाता है। उसे मृत्यु भोज कहते हैं।
"वहां क्या खाने को मिलेगा पापा" मुन्नी ने पूछा। बेटों की श्रद्धा, सामर्थ्य के अनुसार भोजन बनता है। अच्छा ही मिलेगा।
कौवा अपने बच्चों के साथ गंतव्य की ओर उड़ चला। कुछ दूर जाकर बच्चे थक कर बोले पापा थोड़ा आराम कर लेते हैं। वे एक पेड़ पर बैठ कर विश्राम करने लगते हैं। पेड़ की छांव में एक बुजुर्ग को बैठे हुए देखते हैं।
महिला विलाप करते हुए कह रही थी "मैंने आप को कहा था, मकान बेटे के नाम मत करो किंतु आपने मेरी बात नहीं मानी,
मुझे क्या पता था भागवान आज नहीं तो कल सब उनका ही तो है। पूरी जिंदगी दफ्तर में कट गई। सोचा था बुढ़ापे में चैन से
रहेंगे किंतु..... इतनी बेइज्जती के बाद घर जाने का भी मन नहीं कर रहा है।
"पापा ये आंटी क्यों रो रही है, मुन्नी ने पूछा।"
बेटे इनके बच्चों ने इनका अनादर किया है, दोनों घर छोड़ कर आ गए हैं। इसलिये रो रहे हैं। बच्चों ने जीते जी इन्हें मार डाला है।
कौवा सोच रहा है बच्चे कितने खुद गर्ज हो गये हैं, जन्मदाता जीवन भर बच्चों पर अपनी ख़ुशियाँ क़ुर्बान करते रहते हैं। बुढ़ापे में जब उन्हें सेवा की जरुरत होती है, अपना मुंह मोड़ लेते हैं। उन्हें अकेला छोड़ देते हैं, उनका दिल दुखाते हैं, उन्हें जीते जी मार डालते हैं। और दुख की बात यह है कि, जब मर जाते हैं तो बेटे उनकी आत्मा की शांति के लिए मृत्युभोज करते हैं।