मनहूस बहू
मनहूस बहू
गिरधारी लाल जी के यहां उनके बेटे शेखर की तेरहवीं संस्कार था। उस गमनीम मौहल में सगे-संबंधी, नाते-रिश्तेदार अड़ोसी-पड़ोसी इकट्ठे हुए थे। पूरे घर में मायूसी छाई हुई थी, हो भी क्यों ना घर का इकलौता लड़का वो भी 32 साल की उम्र में बेमौत गुजर गया था। शेखर की बहन और माँँ का तो रो-रो कर बुरा हाल था। उन दोनों को संभालना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। शेखर की पत्नी कंचन तो एकदम से बुत बन गई थी। उसके आंसू सूख चुके थे।
कितना गहरा प्यार था दोनों के बीच। दोनों की अरेंज मैरिज थी पर जो भी देखता तो यही कहता आप दोनों की लव मैरिज है क्या? जो भी देखता यही कहता यह जोड़ी तो ऊपर से बनकर आई है। दोनों यह सुनकर हंस देते। पर कहते हैं ना खुशियों को भी नजर लग जाती है। 1 दिन शेखर ऑफिस के काम से अपनी कार से गुड़गांव गया था वहां से लौटते वक्त उसकी कार एक ट्रक से टकरा गई और उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और टक्कर जबरदस्त थी और डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया । विधि का विधान कौन जाने। वह हंसता-खेलता परिवार उजड़ गया।
उधर शेखर को अगले हफ्ते ही कंचन के साथ घूमने के लिए साउथ जाना था। वह कह कर गया था कि कंचन तुम तैयार रहना हम लोग कुछ शॉपिंग करने शाम को चलेंगें। कंचन शेखर का इंतजार कर रही थी पर जब वह आया तो ऐसा आया कि वह हैरान रह गई। कंचन तो एकदम पत्थर की मूरत बन गई। बस बार-बार कह रही थी तुम झूठे हो शेखर। देखो मैं तैयार खड़ी हूँ। चलो न उठो न। धीरे-धीरे उसके आँसू भी सूख गए। बस पत्थर बनी बेसुध बैठी रहती थी। उसके छः माह के बेटे को भी नहीं पता था कि उसके सिर से उसके बाप का साया उठ गया है। 12 दिन तो ऐसे ही बीत गए।
आज तेरहवीं वाले दिन सभी रिश्तेदार आए थे। गिरधारी लाल जी की बुआ भी आई थी। कंचन को बेसुध और रोते ना देख कर बुआ जी बोली,"बहू के पैर ही ऐसे पड़े हैं। इसकी शादी में ही मैरिज हॉल में आग लग गई थी। वह सबसे बड़ा अपशगुन था और फिर गृह प्रवेश करते ही शेखर की जॉब छूट गई थी और आज हमारा शेखर भी चला गया। कंचन बेसुध होकर सब सुन रही थी और वह करती भी क्या। बुआ जी क्या कह रही थी उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। फर्क पड़ता ही क्यों क्योंकि उसका फिक्र करने वाला ही उसको छोड़ कर चला गया था। गिरधारी लाल जी की चाची और मामी ने भी बुआ की बात में हाँ में हाँँ मिला रही थी ।
गिरधारी लाल पहले तो चुप बैठे रहे जब देखा कि बुआ,चाची चुप नहीं हो रहे हैं तब गिरधारी लाल जी ने बोला-"बुआ जी भगवान के लिए आप चुप हो जाइए। आप कंचन बहु के बारे में ऐसा मत बोलिए। किसी की बेटी है और हमने भी उसको बेटी के तरीके से स्वीकारा है। हम हर चीज के लिए कंचन को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। यह सब नियति का खेल है। हम किसी की मौत के लिए किसी दूसरे को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। हमारा बेटा शेखर इतनी ही उम्र लिखा कर लाया था। आप कह रही हैं कि शादी की वक्त मैरिज हॉल में जो आग लगी थी तो क्या कंचन लगाई थी?जी नहीं वह आग मैरिज हॉल वालों की गलती से लगी थी ना कि कंचन की वजह से। आप कह रही हैं कि शेखर की शादी के एक हफ्ते बाद ही शेखर की जॉब छूट गई थी इसके लिए भी कंचन उत्तरदाई नहीं है बल्कि उस कंपनी से शेखर को छंटनी कर दिया गया था। और अब आप कह रही हैं कि कंचन की वजह से शेखर की मौत हुई है तो आप कैसे कह सकती हैं शेखर की मौत कंचन की वजह से हुआ ,उस वक्त कंचन शेखर के साथ ही नहीं । यह दुर्घटना ट्रक ड्राइवर की गलती की वजह से हुई है।
बुआ जी और चाची जी अरे कंचन के आने से तो खुशियां आ गई हैं। कंचन के आते ही शेखर की सरकारी नौकरी लग गई। कंचन के आते ही घर में किलकारियां गूंजने लग गई। कंचन के आते ही बेटी रिद्धिमा का आईआईटी में सिलेक्शन हो गया। कंचन के आते ही मेरा पेंशन का अटका हुआ काम पूरा हो गया। आप खुद एक औरत है और औरत होकर ही उसका दर्द नहीं समझ रही हैं बुआ जी माफ कीजिएगा छोटे मुंह बड़ी बात बुआ जी आप भी तो एक विधवा है। आप तो कम से कम यह बात समझती। हमें अपने बेटे के खोने का बहुत गम है पर उससे ज्यादा है अपनी बहू की यह मायूसी, उसका यूँँ बेसुध होना मन को कचोट रहा है। आप ऐसी बातें करके उसको दोषी ठहरा रही है। अगर आप किसी का गम ना बाँट सके तो उसका दर्द भी न बढ़ाएं। यह कहकर अपनी आँखें पोंंछते हुए गिरधारी लाल जी वहां से चले और छोड़ गए पीछे कई सवाल....।
दोस्तों, हमारे साथ समाज की यह बहुत ही कटु बुराई है जिसमें हर गलती के लिए एक औरत को जिम्मेदार माना जाता है मगर क्यों ?यह आज तक समझ से परे है। अगर कोई दुखद घटना होती है तो क्यों औरत को जिम्मेदार माना जाता है ?