Radha Gupta Patwari

Inspirational

4.4  

Radha Gupta Patwari

Inspirational

मैं हूँँ न

मैं हूँँ न

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"जब तक सूरज-चांद रहेगा,मेजर भूपसिंह राठौर तेरा नाम रहेगा।"पूरे नागौर शहर में यह वीरपूर्ण शब्द गुंजाएमान हो रहा था।फ्लैग मार्च करते हुए आर्मी की एक टुकड़ी और उनके कंधों पर रखा लकड़ी का ताबूत जो झंडे से लिपटा था।ताबूत के एक तरफ लिखा था-

रैंक-मैजर

नाम-भूपसिंह राठौर


सेना की टुकड़ी ने शहीद मेजर के पार्थिव शरीर को उनके घर के सामने आर्मी गाड़ी से उतारा।समाचार,टीवी, रेडियो के माध्यम से पूरे शहर को पहले ही सूचना मिल चुकी थी।जैसे ही यह खबर मिली शहीद का पार्थिव शरीर आने वाला है तो पूरा शहर इकठ्ठा हो गया।हो भी क्यों न उनके शहर का सपूत जो अपनी जान की परवाह किए आंतकवादियों को अपनी अंतिम साँस तक ढ़ेर करके आया था।


जवानों ने अपने कंधों से ताबूत उतारकर एक साथ एक स्वर में सलामी देकर, पंक्तिबद्ध एक तरफ खड़े हो गए।घर के दरवाजे पर मेजर की पत्नी ज्योति,माता-पिता और दो बच्चे खड़े थे।माता-पिता को अपने इकलौते बेटे भूप के जाने का गम था।आँखों में मानों आँसुओं ने बहने से मना कर दिया हो और गर्व से उनका चेहरा भरा हुआ था कि उनका लाल की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई।


पत्नी ज्योति की माँग भरी और चेहरे पर बिंदी थी मानों यह श्रृंगार अभी भी मेजर का इंतजार कर रहे हों।बच्चे इतनी भीड़ देखकर सहम भी रहे थे और उन्हें कौतूहल भी हो रहा था कि उन्हें तो भीड़ देखकर आज पता पड़ा कि उनके पिता एक जाबांज सिपाही थे।


ताबूत को खोलने पर मेजर का शरीर तिरंगे से लिपटा था।आर्मी के एक जवान ने आकर मेजर की घड़ी,कैप,रूमाल,डायरी,पेन और बॉलेट उनकी माँ को थमा दिए।बेटे की घड़ी देखकर माँ-पिताजी के आँसू छलक पड़े पर अगले ही पल वे अपने आँसू छुपा लेते हैं और सोचने हैं कि बहुत अच्छे कर्म किए होंगे हमारे बेटे ने जो मरने के बाद भी अपना नाम रोशन कर गया बेटा।कहाँ नसीब होती है इतनी अच्छी मौत।


मेजर के माता-पिता,पत्नी वहीं जमीन पर ताबूत के पास बैठ जाते हैं।पत्नी ज्योति अपने सामने मृत शहीद पति को देखकर,चेहरे पर मिश्रित भाव उभरते हैं पर वह एक शहीद की वधू है,यह सोचकर अपने भावों को चेहरे पर आने से रोक देती है।अपने एक हाथ से अपना गाल पर हाथ रखे हुए तो दूसरे हाथ से अपने पति के बालों पर हाथ सहलाती हुई कहती है-"हमेशा गुस्से में रहते हो।कभी तो बात कर भी लिया करो ढंग से।अच्छा तुम गुस्सा रहो मुझसे पर उठकर अपने बच्चों से तो बात कर लो।होली पर कहकर गये थे मैं जल्दी आऊँगा।परसों फोन पर भी यही कहा था कि जून में आऊंगा।एक नंबर के झूठे हो।ऐसे भी कोई आता है क्या?अच्छा सुनो तुम कश्मीर से जो कढ़ाई वाला सूट लाये थे न वो सिल गया।बताओ अब कब पहनूं?"यह कहकर ज्योति ने अपना सिर ताबूत पर रख दिया।


आर्मी के जवानों ने मेजर के शव को निकाल कर एक तख्त पर रख दिया।शहर के विधायक,

मंत्री,संत्री,छोटे बड़े आते शहीद मेजर को श्रद्धांजलि अर्पित करते और शहीद के परिजन को सांत्वना देकर चले जाते।कुछ देर बाद शहीद मेजर शहीद के अंतिम संस्कार की तैयारी की जाने लगी।


ज्योति उठकर अपने कमरे में चली गई।सभी उसे बुलाने लगे।काफी देर बाद ज्योति वही कश्मीरी सूट पहनकर आई जो भूपसिंह उसके लिए लाया था।ज्योति ने सोलह श्रृंगार कर रखे थे।सास-ससुर ने जैसे ही ज्योति को देखा वह तड़प उठे।इस बच्ची को अपने घर की बहू बना कर लाए थे।क्या सुख मिला इसे?भरी जवानी में विधवा हो गई।दोनो बच्चे अभी बहुत छोटे हैं।तभी उन्होंने देखा ज्योति भूप को छिंछोड़ते हुए कहती है देखो मैं आ गई।बताओ न कैसी लग रही हूँ?बच्चे अपने पापा से कहते कहते रो पड़े-"पापा,आप कुछ तो बोलो।एक बार आँख खोलो।"यह देखकर वहां का माहौल गमनीम हो गया।थोड़ी देर बाद मेजर का अंतिम संस्कार कर दिया गया।जवानों ने बंदूकों से सलामी दी।यह देखकर सूर्य भी अस्ताचल हो रहा था।सभी लोग अपने अपने घर चले गए थे।


अगले दिन पत्रकारों की टीम भूपसिंह के घर आई।पत्रकारों ने इंटरव्यू लेना चाहा पर ज्योति ने माना कर दिया।हारकर ज्योति हारकर इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गई।पत्रकारों ने दनादन प्रश्न पूछने शुरू किए।तभी एक पत्रकार ने भूप सिंह के पिता से पूछा-"आपका बेटा इस देश के खातिर शहीद हो गया।कहते हैं बेटा ही बुढ़ापे का सहारा होता है।अब आपका सहारा इस दुनिया से जा चुका है।"इस पर शंभू सिंह के पिता बोले- "मेरा बेटा तो शुरु से ही मेरी बहू रही है मेरा बेटा तो भारत माता की सेवा के लिए आया था।तब भी मेरी बहू ही बेटा बनकर ख्याल रखती थी और अब भी।"


पत्रकारों ने अब ज्योति से सवाल पूछा-" आपके पति शहीद हो गए आपके सामने अभी पूरा जीवन बड़ा है।बच्चे भी छोटे हैं। आप कैसे अपने सास-ससुर का ध्यान रखेंगी?इस ज्योति बोली-"मेरे पति अमर हो गए हैं मुझे उन पर बहुत गर्व है रही बात मेरे सामने जीवन पड़ा है तो अपने सास-ससुर की सेवा करने के लिए और बच्चों को सम्भालेने के लिए मैं हूं न।अपने पति के पदचिन्हों पर चलते हुए मैं भी सेना में भर्ती होऊँगी।यही मेरे पति के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।"यह सुनकर सभी पत्रकार एक साथ खड़े होकर ज्योति के साहस को सलामी देने लगे।

जय हिंद



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