Mridula Mishra

Abstract

5.0  

Mridula Mishra

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मज़हब

मज़हब

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अरशद बेहद परेशान था, नजाने किसने अब्बू के दिमाग में यह भर दिया था कि हिंदूओ को कत्ल करने से अल्लाह बहुत खुश होते हैं और मरने के बाद जन्नत में बहत्तर हूरों का साथ मिलता है। वह कैसे समझाये कि यह सब बकवास है।नेकी से ही अल्लाह खुश होते हैं। किसी भी धर्म में किसी को मारने या तंग करने की इजाज़त नहीं होती। सब अल्लाह के ही बंदे हैं। पर उसकी आवाज नकारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह जाती। 

उसकी अम्मी उसके विचारों से सहमत तो थी पर अब्बू के डर से चुप ही रहती थीं। वैसे भी उसके अब्बू ने किसी की कभी मानी ही नहीं थी। 

अरशद की तकदीर अच्छी थी जो वह पढ़ने में होशियार निकला। वजीफ़े की बदौलत उसने साइंस में ग्रेजुएशन किया था। उसकी आंतरिक इच्छा थी कि कोई नौकरी पकड़कर वह अपनी अम्मी और अपने भाई -बहनों को थोड़ा सुख दे सके। अब्बू की विचार- धारा से वह सहमत नहीं था।

अन्य भाई-बहन शिक्षा के अभाव में जाहिल बनकर रह गए थे। अब्बू के बहकावे में आकर वे भी काफ़िरों को मारकर, तंग कर अपने को पक्का मुसलमान समझते थे। वह उन्हें बहुत समझाने की कोशिश करता पर, वे सब इसकी हँसी उड़ाते। 

एक दिन वह आर्मी में भरती होने चला गया घर में सिर्फ 

उसकी अम्मी को ही यह ख़बर थी। उसके डील-डौल और विचार को जानकर उसकी भर्ती आर्मी में हो गई। जब तक ट्रेनिंग चली किसी को कुछ पता नहीं चला लेकिन, जब वह आर्मी जवान की वर्दी में  घर आया तो सब हक्के -बक्के रह गये। सब सोच रहे थे कि इंडियन आर्मी में भर्ती होकर यह काफ़िर बन गया। उसकी अम्मी लेकिन बहुत खुश थी, वह बार-बार अल्लाह को शुक्रिया अदा कर रही थीं। उस दिन उन्होंने उसकी नज़र भी उतारी और उसकी मनपसंद खीर भी बनाया। 

अरशद मन में नये सपने लेकर सोने जाही रहा था तो उसके अब्बू ने उसे समझाने की कोशिश की, कहा बेटा आर्मी में शामिल होकर भी इसलाम न भूलना,अपने मुस्लिम भाइयों को न भूलना और अपना धर्म न भूलना। वह हर बात की हामी भरता गया क्योंकि वह जानता था कि अब्बू  को कुछ भी समझाना टेढ़ी खीर है। वह अपने भारत माँ की सेवा करना चाहता था। 

अचानक कश्मीर समस्या को देखते हुए उसका तबादला कश्मीर कर दिया गया। वह अपने पूरे परिवार के साथ वहाँ चला गया। एक दिन ड्यूटी के समय उसपर आतंकवादियों ने गोली चला दी फौरन उसे अस्पताल ले जाया गया। अब्बू ने आकर अस्पताल में खूब हंगामा मचाया और कहा देखी काफ़िरों की करतूत? 

अरशद ने हंसते हुये कहा,' अब्बू वे सब मुस्लिम थे एक भी उसमें काफ़िर नहीं था। और अगर मैं मर जाता तो सचमुच मुझे जन्नत में बहत्तर हुरें मिलती अब्बू मैं चूक गया, कहकर हँसने लगा। साथ-साथ उसकी अम्मी भी ठठाकर हँस पड़ी। 

उसके अब्बू की आँखों से भी मज़हब का धुंधलका छंट रहा था।


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