मिट्टी के दीये
मिट्टी के दीये
मौन मिट्टी का दीया, क्या हुआ जो सिर्फ थोड़ा सा जिया, रोशनी की एक नन्ही किरण नाप आई अंततः सारा गगन !!
युग बदले सदियां बदली मौसम बदले रहन-सहन के तौर तरीके बदले पर नहीं बदला छोटे से मिट्टी के दीए का महत्व। बदला तो सिर्फ इतना कि दीये धातु के भी बनने लगे !
मिट्टी का दीया सिर्फ दीया नहीं बल्कि युगों से चलती आ रही परंपरा का नाम है। आज तरक्की के इस युग में बल्ब है लाइट है दूधिया रोशनी है चीनी झालरों की भरमार है पर दीयों की रोशनी मन को शांति और गहन आस्था से भर देती है। दीपमाला आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सतयुग में राम के वापस आने पर अयोध्या में की गई दीपमाला।
क्या दीये के बिना कोई पूजा या त्योहार या कोई शुभ काम की कल्पना की जा सकती है? नहीं ना! दूर वीराने में जलता मिट्टी का दीया मन को आश्वासन से भर देता है। मौन शांत सुनहरी आभा फैलाता दीया।
यही नहीं इन दीयों को बनाने वाले जो लोग हैं उन्हें कुम्हार कहा जाता है। उनका भी एक अलग स्थान है। हिंदू परिवारों में शादी के अवसर पर महिलाएं बाजों के साथ गीत गाती जाती हैं और चाक की पूजा करती हैं। कुम्हार से आशीर्वाद लेती हैं और मिट्टी के बर्तन खरीदते हैं।
आज लोग देवों की जगह लाइट और मोमबत्ती लगाने लगे हैं। मिट्टी के बर्तनों का प्रचलन भी कम हो गया है और कुम्हारों के सामने रोटी का संकट आ गया है। हमें अपने जड़ों की ओर लौटना होगा उससे हम इन कलाकारों का रोजगार भी बचा सकते हैं और मिट्टी के दीया जलने से होने वाला लाभ भी ले सकते है। मिट्टी के दीया मैं जब तेल डालकर जलाया जाता है आरोग्य भी देता है और नकारात्मकता भी दूर करता है। एक पंथ दो काज।
हां सुखद बात यह है आजकल फिर मिट्टी के बर्तनों और दीया की लोकप्रियता बढ़ी है। तो आइए और इस दीवाली पर कदम बढ़ाए मिट्टी के दीये की तरफ और रोशनी, खुशियां फैलाएं अपने घर आंगन में।
