अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy Action Thriller

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy Action Thriller

मीरज़ा

मीरज़ा

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आज मीरज़ा न्याय चाहती है तो सिर्फ इसलिए कि उसकी तरह कोई और न्याय के लिए मारा तितारा ना फिरे वो भी तब जब न्याय के लिए मंच लगते हों,अदालतें लगती हों संगठन, लोग,सरकार और लोकतंत्र चलता हो, तब मीरज़ा की आवाज न्याय के लिये एक अभिशाप बन ही जाती है जब चाह कर भी न्याय की बात न हो और वो भी तब जब हमारा समाज एक जातिय धर्मी होकर अपना स्टेटस बनाने के लिए स्वार्थपरता का दौर जी रहा हो। तब नारी शक्ति उत्थान की बातें धरातल पर मिथ्या ही साबित होती हैं जिनकी सच्चाई हम समझना नहीं चाहते और मीरज़ा जैसे लोग न्याय की आवाज उठाकर समझाना चाहते हैं कि उनके साथ न्याय के नाम पर जो हुआ वह एक हतप्रभ करने वाली बात है जो समाज को असुरक्षित करती है के बीच एक अशिक्षित महिला अपना दामन न्याय की भीख से भरना चाहती हो और उसकी न्याय क्षमता से समाज बचता हो तब यह 

मीरजा समाज को एक बुलंदी बन ही जाती है जोकि समाज को जरूरत है।

सन 2006 में मीरज़ा का विवाह एक सामूहिक विवाह समारोह में होता है और मीरज़ा अपनी ससुराल में आती है तब वह अपने पति जलालुद्दीन की सेवा में जुट जाती है। जलालुद्दीन बहुतायत एक सीधा-साधा नेक बंदा था जो अपनी मेहनत मजदूरी से अपनी पत्नी को खुश रखने की कोशिश करके जीवन गुजार रहा था। इसी बीच मिरजा 5 बच्चों की मां बनी तो जलालुद्दीन का घर भी खुशियों से भर गया। धीरे-धीरे मिर्जा की शादी के 15 साल गुजर गए और एक दिन नियति को मंजूर मीरजा के पति जलालुद्दीन को अपने ही घर के ऊपर से गुजर रही ग्यारह हजार विद्युत लाइन करंट लग जाता है और इलाज के दौरान मीरज़ा का पति गरीब लाचार इलाज के अभाव में 17 जनवरी 2019 को मर जाता है जिसका क्लेम (मुआवजा) पाने को अशिक्षित सीधी साधी मीरज़ा अपने चचेरे देवर जहरूद्दीन के साथ एक वकील के माध्यम से पैरवी करने लगी। एक दिन ऐसा आया कि क्लेम फाइनल हुआ और चेक बनने के लिए सर्किट हाउस में बाबू समीरउददीन को कोर्ट का आदेश होता है तब मीरज़ा का वकील बाबू से मुलाकात करवाता है। पति की मृत्यु के बाद क्लेम पाने के लिए लगातार 1 साल तक मीरज़ा अपने वकील के चैंबर पर दौड़ती रही और दिसंबर माह सन 2020 की शुरुआत में दिसंबर को एक दिन अचानक मीरज़ा का वकील मीरज़ा को तारीख पर फोन करके बुलाता है और इसी बीच मीरजा का केस फाइनल होता है और सर्किट हाउस के एक बाबू समीरउददीन से वकील के द्वारा मुलाकात कराई जाती है। तब बाबू मीरजा से मिलता है और मिर्जा के साथ आने वाले उसके चचेरे देवर जहरुद्दीन के बारे में मीरज़ा को यह कहकर गुमराह करता है कि मीरज़ा तुम्हारा देवर अच्छा आदमी नहीं है। तुम्हें मिलने वाले चेक का पैसा खा जाएगा तथा अपने देवर जहरूद्दीन को साथ मत लाया करो मतलब अकेले आया करो। इस तरह बाबू समीरउददीन ने मीरजा को अपनी बातों में फंसा लिया और मीरजा को यह कहकर यकीन दिला दिया कि ना तुम्हारा देवर ना तुम्हारा वकील क्लेम कभी दिला पायेगा। इसलिए हमारी बात मानो हम तुम्हें क्लेम दिलायेंगे।

अपनी चिकनी चुपढ़ी छल भरी बातों से अशिक्षित गरीब मजबूर एक लाचार महिला को बाबू शमरुद्दीन अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो जाता है। 

जब 5 दिसंबर 2020 को पहली बार बाबू मीरज़ा के वकील से साठ गांठ करके मीरज़ा को फोन करके तारीख़ पर बुलाता है और अकेले ही आने को कहता है। एकदिन जब मीरज़ा अकेले ही अपने देवर को भी बिना बताए वकील की बताई जगह सर्किट हाउस पहुंच जाती है और सर्किट हाउस के बाहर खड़े होकर के मीरज़ा जब अपने वकील को फोन करती है और फोन पर सर्किट हाउस बरेली पहुंचने की बात करती है, तभी मीरज़ा का वकील किसी दूसरे काम में व्यस्त बताकर देर से आने का बहाना बनाकर फोन काट देता है। इसी बीच सर्किट हाउस के बाहर खड़ी मीरज़ा अपने वकील के इंतजार में जमीन पर बैठ जाती है। तभी अचानक बाबू समरुद्दीन बाहर आता है और सीधे मीरज़ा से मिलता है और मीरज़ा से हाल चाल पूछकर उसे कचहरी छोड़ने व वकील से काम होने की बात कहकर मीरज़ा को वकील के चेम्बर पर चलने को कहता है।बाबू की बातों में गुमराह मीरज़ा के मना करने के बाबजूद मीरज़ा को वकील से मिलवाने की बात कहकर अपनी बाइक पर बैठाए लेता है और कचहरी न ले जाकर वह अपने आवास रामपुर गार्डन बरेली स्थित ले जाता है। जहां पर मीरज़ा नई जगह देखकर चौंकती है और झट से बाबू की चाल के बारे में पूछ बैठती है कि हमें यह कहाँ ले आए हैं। फिर भी बाबू यह कहकर मीरज़ा को गुमराह करता है कि डरो मत यह मेरा आवास है और अंदर चलो थोड़ी देर रुक कर चलते हैं तबतक चैंबर में तुम्हारा वकील भी आ जायेगा। इस तरह जैसे ही मीरज़ा बाबू समीरउददीन के आवास में प्रवेश करती है की चालक हवसी बाबू अंदर से दरवाजा बंद करके ताला डाल देता है और जिसे देखकर एक बार को गुमराह मीरज़ा डरी सहमी वेदना से बाबू समीर उददीन से पू़ंछ ही लेती है कि आप यह क्या कर रहे हो मगर जल्दी से ताला डालकर फ्री हुए बाबू ने मीरज़ा से कहा कि देखिए अगर तुम मेरी बात न मानोगी तो तुम्हें क्लेम उलेम कुछ नही मिलेगा न तुम्हारा वकील दिलवा पायेगा। मजबूर लाचार एक कमजोर महिला पर बलात्कारी बाबू ने अपनी हवस मिटाने के लिए गुमराह शब्दों के साथ अपनी शारीरिक शक्ति का हमला कर दिया और पीरियड्स में चल रही मीरज़ा के द्वारा लाख दुहाई देने पर भी बाबू समीरउद्दीन ने मीरज़ा के साथ जबरदस्ती अप्राकृतिक योन सम्बंध बनाये और किसी से कहने पर मार डालने की धमकी के साथ चेक न बनाकर देने की धमकी दी।

जब पहली बार बाबू ने मीरज़ा का बलात्कार किया तो मीरज़ा ने बिना डरे बाबू की हरकतों को अपने वकील को बताया मगर वकील ने मीरज़ा की बात को न समझते हुए चेक मिल जाने के बाद कार्यवाही को कहा और ये किसी दूसरे वकील को करने के लिए कहा क्योंकि वकील क्लेम का काम देखता है जोकि बहुत सारे क्लेम करवाता है और बाबू के खिलाफ खड़ा होकर उससे बुराई होने की बात कहकर मीरज़ा को गुमरह करता है और मीरज़ा को चेक दिलाने के बाद उसे उसके हाल पर छोड़ देता है । मगर मीरज़ा के वकील ने कोई मदद नहीं की सिवाय दो बार बाबू के द्वारा बलात्कार करके चेक दिलवाने के।

इस तरह जब मीरज़ा अपना चेक डाकखाने में जमा करवाने गई तो मीरज़ा के देवर ने अपना रुहाब दिखाते हुए कहा कि भाभी देखो हमने कितना अच्छा वकील किया जिसने समय से पहले क्लेम दिला दिया है। इसपर मीरज़ा बिफर गई और रोते हुए बोली की जहरुद्दीन यह पैसा तुम्हारे वकील के माध्यम से नहीं बल्कि हमे अपनी दो बार आबरू लूटने के बाद मिला है। इस तरह जहरुद्दीन अपनी विधवा भाभी की मदद को गर्व महसूसकर रहा था मगर जब उसे हकीकत पता चली जो मीरज़ा ने कही तो बिना पढ़ा लिखा जहरुद्दीन बहुत कायल हुआ और मीरज़ा को न्याय दिलाने के लिए एक नया वकील ढूढ़ने लगा। तभी अचानक वह अपने गांव के वकील से मिला जो बुर्जुग होने की बजह से जिनका स्वास्थ्य साथी न होने की बजह से वकील साहब ने अपने सामाजिक कार्यकर्ता जो यह तहकीकात कर जो यह आपके लिये स्क्रिपट लिख रहा है, उससे संपर्क करने को कहा। जब जहरुद्दीन मीरज़ा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता के कार्यालय में पहुंचा और मीरज़ा को न्याय दिलाने की बात कही।

तब मीरज़ा के साथ हुये बलात्कार की प्रथम सूचना कोतवाली बरेली में दी गई जहां पर मीरज़ा से पूछा गया कि आपने जब जुल्म हो रहा था तब आवाज़ क्यों नहीं उठाई तो मीरज़ा ने बताया कि बाबू ने उसे जान से मरने की धमकी के साथ क्लेम चेक न देने की बात कहकर गुमराह किया मगर फिर जब हिम्मत करके मीरज़ा ने बाबू की हरकतों की शिकायत अपने वकील से कही तो वकील ने भी मीरज़ा को गुमराह किया यह कहकर कि मैं बुराई नहीं ले सकता और क्लेम मिलने तक चुप रहना ही ठीक है। जिससे मीरज़ा को चुप रहना पढ़ा। लेकिन आज मीरज़ा खुद को न्याय दिलाना चाहती है तो उसका कोई साथी नहीं सिवाय इस दर्द के जो मीरज़ा को वास्तविकताओं में धरातल पर न्याय दिलाने के उद्देश्य से आप शासनिक प्रशासनिक व आमजन के प्रति उकेरा गया है। सिर्फ इसलिये कि हैं बाबू जैसे अपराधी से लड़ने के लिये बिना चेहरा छुपाये और अपने असली नाम के साथ न्याय को लड़ना चाहती है वो भी समाज के बिना किसी ताने बाने या शर्म ए हया के डर से।

आज मीरजा को १ माह हो गए बरेली कोतवाली में अपनी शिकायत दर्ज कराने को प्रार्थना पत्र दिए मगर अबतक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। इसी बीच मीरजा ने समाज के लिए न्याय पाने की उम्मीद को एक समाज सेवी लेखक की लेखनी के सहारे छोड़ दिया है जो मीरजा को न्याय दिलाने के लिए समाज को जगाने के लिए अपनी लेखनी को मीरज़ा के गमों की स्याही में डुबा कर न्याय के लिये लिख रहा है और तबतक लिखता रहेगा जबतक कि मीरज़ा को न्याय न मिले जाये, यह सोचकर कि जहां कलम लिखती है, वहां तस्वीर बदलती है शायद कोई आवाज़ सुने।

यह भी हो सकता है कि मीरज़ा के न्याय की दास्तान शायद यह समझ कर नकार दी जाए कि मीरजा की दास्तान एक हकीकत है परन्तु गरीबी अशिक्षा तंगहाली की वेबसी में न्याय नहीं मिल सकता क्योंकि बाबू एक सरकारी बड़ा नौकर है।

मीरजा अपने बच्चो के साथ गरीबी में संघर्ष कर रही है और उसके साथ जो हुआ उसके लिए भी लड़ रही है, लेकिन यह लड़ाई तभी सफल होगी जब बाबू समीरउददीन जेल में होगा।

मीरजा इसी आस में जी रही है और एक लेखनी के सहारे मीरजा न्याय चाहती है और यह लेखनी मीरजा के टूटते जज्बातों को फिर से नया करते हुए शासन प्रशासन और प्रजा तक अवगत कराने को संघर्ष कर रही है, साथ ही उन सामाजिक संगठनों की भीड़ में मीरजा की आवाज उठाने की कोशिशें तहरीक बन रही है, जिनके लिए यह संगठन उददेश्य बनकर आमजन की आवाज बनने के लिए स्थापित्व की परिकल्पना हैं जो समाज की आवाज को उठाने का बीड़ा उठा रहे हैं।

आज मीरजा धरातल पर न्याय चहती है न कि मंचो पर कोई अफसाना बनना चाहती है। मीरजा की दास्तान सच्ची है और समाज की वो पहेली है जिसे सुलझाने के लिए स्वार्थपरता का दौर छोड़कर समाज को आगे आना होगा। क्योंकि आजकल हर कोई मोबाइल चार्ज कर ने से लेकर नई जरूरत पर विद्युत इस्तेमाल को स्विच आन आफ करना पढ़ता है यदि ऐसी स्थिती में कोई हादसा होता है तो यकीनन फिर वह मुआवजा पाने के लिए बाबू समीरउद्दीन जैसे भेड़िए की हवस का शिकार होगी , तब कोई और मीरजा जैसी बहिन बेटी या बहू होगी।

धिक्कार है ऐसे प्रशासन पर जो प्रशासन एक तरफ महिला सशक्तिकरण पर प्रोग्राम रखता हो और बात आने पर वह अपनी मानसिकता में लोभ लालच और विभाग के स्टेट्स को देखकर न्याय की बात पर बदलता हो। अपराधी को बचाने के लिए पीड़ित को गुमराह करता हो।

मीरजा को जहां एक ओर बाबू ने गुमराह करके अमानवीयता दिखाई वहीं दूसरी ओर पुलिस प्रशासन बरेली ने गुमराह कर मीरजा को हारने थकने के लिए मजबूर किया जिसकी कोई जांच नहीं की अब तक और मीरज़ा को अनेकों सवालों के बीच झकझोर कर घर भेज दिया गया जोकि सिर्फ एक बलात्कारी बाबू की तबलमंजनी करके। जोकि बहुतायत दुखी कर देने बाला व्यवहार हो रहा है। मीरजा को न्याय दिलाने में, जिसके जिम्मेदार वो अधिकारी है जिनके पास 30 सेकंड का समय नहीं था। मीरजा की बात सुनने को सिवाय प्रार्थना पत्र लेने के और उनके लिए बहुतयात समय है जो अपने दबंद स्टेट्स के साथ आते हैं। शायद उसकी यह स्क्रिप्ट समाज के हर जिम्मेदार व्यक्ति संस्था सरकार के पास होगी और बाबू सलाखों के पीछे होगा।

जिसकी सजा मीरजा के दर्द को बयां करती , यह हकीकत भरी दास्तान जो मीरजा के साथ समाज को न्याय को एक नया मुकाम हासिल करने के लिए लिखी जा रही है कि बलात्कारी बाबू समीर उद्दीन को सजा मिले जिससे कोई अन्य मीरजा जैसी महिला मजबूर गुमराह न की जा सके । समाज के उन भेड़िओं के द्वारा जो समाज में समाज के संचालन के भागीदारी करते हैं।

मीरजा आज अपना मुंह ढंक्कर नहीं मुंह दिखाकर समाज के तानों से परे न्याय के लिए लड़ रही है यही मीरजा के जज़्बात को सलाम करती लेखनी न्याय के अंत तक लिखती ही रहेगी, जब तक की वेदना न्याय को लथपथ है।

इसी लिये राज्य, देश और समाज के उन सभी जिम्मेदार नागरिकों के लिए मीरजा की न्याय मांगती आवाज़ है जो इंसाफ चाहती है।

मीरजा अपने अंत समय तक लड़ती रहेगी जबतक कि उसे न्याय नहीं मिल जाता और यह न्याय अब शासन प्रशासन के उन सभी ईमानदार अधिकारियों की जांच करके कार्यवाही में तय होगा की आखिर मीरजा की इस आवाज़ की सच्चाई क्या है और यह आवाज़ समाज में क्यों एक नया परिवर्तन बन रही है उस भ्रष्टाचार के खिलाफ जो वासनाओ में पल रहा है।

यह वासनाओं का खेल अब मीरजा के दर्द के साथ ही खत्म होना चाहिए जो समाज में जिम्मेदार पदों पर होकर बाबू ऐसा गंदा काम करते हैं।


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