अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Inspirational

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

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मेरा परिचय

मेरा परिचय

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मेरा नाम संजीव रामपाल मिश्रा है‌।मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर शहीदो की नगरी में एक छोट से गांव बेहटामुरादपुर में 8 जुलाई 1990 में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मैं पिता की सात संतानों में पांचवें नम्बर का हूं। मेरे जन्म के दो साल बाद मेरे जीवन के साथ ऐसा हादसा हुआ जिसके बदले में मुझे उम्र भर की विकलांगता मिली। हादसा होने के बाद पिता जी गांव से पलायन करके पास ही कस्बा फतेहगंज पूर्वी में आ गये जो हमारी शिक्षा दीक्षाभूमि बनी। इसी कस्बे में एक पार्ट टाईम पान की दुकान चलाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने लगा। एक दिन पान खाने आये एक फौजी से मुलाकात हुई जिनसे देशभक्ति की प्रेरणा मिली और शिक्षा को जारी रखने का संकल्प बना यह सोच कर कि संजीव अगर आज हमने पढ़ाई न कि तो हमसे कोई मेहनत का काम नहीं होगा पुटपाथ पर रखा पान का खोखा भी उम्र भर साथ नहीं देगा इसलिये जीवनयापन और अपनी विकलांगता की मायूसी से निकलने के लिये पढ़ना होगा सो आगे अपनी मेहनत से आगे बढ़ा और आठवां पास करने के बाद पान का खोखा बंद करके मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन देना शुरु किया और कक्षा एक से लेकर बी ए,एलएलबी,पॉलिटेक्निक डिप्लोमा सरकारी विद्यालयों से करने के बाद पीडब्लूडी में संविदा पर एक साल जाब करने के बाद समय पर पैसा न मिलने की बजह से छोड़ दिया।

शिक्षित होने के बाद कभी खुद को विकलांग घोषित नहीं किया क्योंकि मैं पैर से विकलांग हूं माइंड से नहीं और कभी सरकारी योजना विकलांग पेशन या अन्य किसी प्रकार का लाभ नहीं लिया सिवाय जरुरतमंदों को दिलाने के। बचपन से मां दुर्गा का भक्त होने और उनकी शक्ति से चलने की क्ृपा का पात्र रहा,रोजाना दुर्गासप्तशती का पाठ मेरे जीवन का हिस्सा है जो हमें शक्ति प्रदान करता है,क्योंकि अास्था में मेरा अटूट विश्वास है।

2014 में पारिवारिक जीवन से सन्यास की घोषणा कर दी परिवार को यह समझाते हुये‌ कि हम चार भाई में यदि एक भाई समाज सेवा करे समाज के‌लिये जिये तो परिवार पे कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन समाज पर जरुर पड़ेगा और मां बाप की सेवा व उनका वंश चलाने के लिये तीन भाई हैं,और मैं समाज सेवा पर उतर आया । कई राज्य घूमें अनुभव जुटाया फिर अपने ब्लाक जैतीपुर में एक स्कूल खोला जिसमें तीन सौ पचास बच्चों को निशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया और अपने जीवन की सारी जमा पूंजी लगा दी,यह सोच कर कि यदि मैं बीस साल जिंदा रहा और जाब करके दस बीस लाख ही पैदा कर पाउंगा यदि यही बीस साल हमने गरीब अनाथ बच्चों को इकट्ठा करके बीस साल में सौ दो सौ बच्चों की शिक्षा पर मेहनत की तो दो चार भी आईएएस पीसीएस अधिकारी बने तो मेरा जीवन सफल हो जायेगा समाज परिवर्तन को लेकर और इतिहास में नाम अमर हो जायेगा जिसके लिये आज भी जीता हूं और इसके लिये स्कूल जैतीपुर ब्लाक के पूर्व प्रधान के द्वारा दान किया गया था‌। साथ ही गांव गांव घूमा लोगों को विकास की राजनीति करने के लिये जागरुक किया। माहुल बना लोगों ने सराहा तो चुनाव बाद मुझे कमजोर करने के लिये विरोधाभासियों ने स्कूल की दान की गई जगह वापस दिलवा दी। बहुत नुकसान हुआ तन मन धन तीनों से तोड़ा गया बर्बाद हुआ।लेकिन हार नहीं मानी 2017 का विधानसभा चुनाव स्वतंत्र लड़ा चौथे नम्बर का प्रत्याशी रहा फिर 2022 स्वतंत्र लड़ने की तैयारी में गांव गांव लोगों के बीच अपनी पहचान बना रहा हूं।

बचपन से कविता गजल शायरी लिखने का शौक आज आदत बन चुका है लेकिन कभी मंच साझा नहीं किया सिवाय आन लाईन सोशलमीडिया पर लिखने के किन्तु अमर उजाला काव्य आनलाईन न्यूज पोर्टल पर 350 से ऊपर कविता गजल शायरी पब्लिश हो चुकी हैं जिनकी बुक ई बुक जल्द ही पब्लिश कराने की सोच रहा हूं कोई पार्टनर यदि मिल जाये पैसा लगाने वाला जिसके लिये मैं लिखता रहूं। आज मेरी विचारधारा सिर्फ समाज की है न कि मेरी है।

मेरा एक ऐसे फार्मूले पर सोध चल रहा है जो देश के पैदा होने वाले हर बच्चे को निशुल्क शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की प्रत्याभूति दे सके। जिसकी दम पर हम हजारों वर्ष की गुलामी झेलने वाले हम एकबार विश्व पर काबिज हो सकें ऐसी अभिलाषा मेरा संकल्प बन चुकी है।



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