अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Inspirational

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

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जाति

जाति

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जब मैं इंटरमीडिएट कर रहा था तो पास के ही गांव भगवानपुर कुन्दन निबड़िया में एक छोटे से स्कूल में पढ़ाने जाता था। एक दिन मैं और मेरे एक सहपाठी मित्र गांव में बच्चों की संख्या बढाने के लिये गांव का घर घर भ्रमण कर रहा था। अचानक हम गांव के बहार दो चार घर रहे गये थे हमने कहा "मित्र चलो वहीं पर पेड़ की छाया भी है और हम लोग भी कुछ देर बैठते हैं।" मित्र जो जाति के जाटव थे बोले "बाबा वहां मत चलो वह तो मेहतर हैं।" हमने कहा "चलो तो क्या हुआ।" हम लोग गये हमने बात की उन लोगों ने बढ़ा सम्मान दिया हमने पानी मांगा पीने के लिये तो वह तुरन्त नये बरतन को मांज कर पानी पिलाया। हमारे मित्र ने जातिगत मना कर दिया। कोई बात नहीं फिर उनके बच्चे पढ़ने आये हमने लगभग छ:माह तक स्कूल की सेवा की। हम कभी जातिवाद नहीं मानते आज भी हमें देश में कहीं भी जाने पर कभी किसी होटल या फुटपाथ का सहारा नहीं लेना होता है हमें हमारी मानवता सहारा देती है अतिथि देवो भव: कहकर। हमारे देश की संस्कृति बहुत अच्छी है। इसलिये हम समाज की अच्छाईयों के लिये लड़ रहे हैं सनातन की विजय हो। 



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