अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Abstract Crime Inspirational

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Abstract Crime Inspirational

समर्थकतावाद के द्योतक

समर्थकतावाद के द्योतक

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हम देख रहे हैं की आज समाज की विचारधारा जाति धरम को लेकर फैली हुई है,बहुत से लोग संगठन पार्टी दल जाति धर्म के लिए साम्प्रदायिक नारे गढ़ रहे हैं अराजकता फैला रहे हैं, यह वो लोग हैं जिनकी न कोई जाति ना कोई धर्म न ही कोई बजूद और न ही उनका समाज है सिवाय समर्थकतावाद के जो हिंसा के द्योतक बनते जा रहे हैं सत्ता के लिये।

जैसा कि हम समाज में देख रहे हैं कि लोग आज ठेकेदारी प्रथा के चलन में हैं, जहां पर अभिव्यक्तियों का व्यवसाय अधिकार रुप में किया जा रहा है।

लोग आज समाज में अभिव्यक्तियों को गुमराह कर रहे हैं शायद आपको मालूम नहीं है कि यह नेता जो आज लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर आज हमारे बीच हमारे जनप्रतिनिधि बनकर आ रहे हैं क्या यह लोग हमें आज तक 70 साल से कुछ दे पाए हैं, नहीं ना , और ना ही यह कुछ दे पाएंगे। यह आपको वही दे रहे हैं और वहीं ले जा रहे हैं जहां पर 70 साल पहले गुलामी भुखमरी लाचारी बेबसी ने आदमी को लूटा ठगा और सताया है।जहां पर आदमी ने अपनों के बीच अपनों के लिए खून बहाया है सिर्फ इस लिए कि देश समाज में शांति समानता स्थापित करने के लिए हमारे पूर्वजों ने स्वराज का नारा दिया खून की होलियां खेल कर लोकतंत्र की स्थापना की खुशियां दीं सिर्फ इसलिये‌ नहीं कि तुम बर्बाद करो देश समाज और उसकेे धर्म को अपनी प्रभुसत्ता के लिये जातियता के आधार पर मिथ्या फैलाओ।

क्या आज वह स्वराज का नारा पूरा हुआ जैसा कि हम देख रहे हैं कि लोग आज भी जाति धर्म में उलझे हुए एक दूसरे को गलत ठहराते हिंसक हो जाते पूर्वजों पर उंगली उठाते जबकि ऐसा वैदिक काल में नहीं था और ना ही आज के वैश्वीकरण में होना चाहिये वरना उन्नावकांड या हैदराबादकांड होते रहेंगे 26/11 यादें भयावह बनती रहेंगी लेकिन फिर भी ना जाने क्यों लोग अपने मार्ग से भटक रहे हैं और भटकना आज आदमी की फितरत भी बन गई है क्योंकि आदमी बहुत चालाक चतुर और शारीरिक कमजोर हो गया है आक्सीटोसिन आदमी समाज में आज पतन की ओर चल पड़ा है, ना ही समाज स्वच्छ है नाही पर्यावरण सुरक्षित है,ना समाज में शांती है न उसकी विचारधारा है सिवाय स्टेट्स बनाने की मानसिकता के जो बेईमानी शिफारिशी ठेकेदारी प्रथा में तब्दील मूल अधिकारों का व्यापार करती जनप्रतिनिधित्व प्रभुसत्ता जो न्याय शिक्षा सुरक्षा स्वास्थ्य के नाम पर व्यवसायिक होते हुये उदर भर मात्र का सहारा बनती जा रही है।

समाज में इर्ष्या ग्लानी द्वेष की भावना झूठ पाखण्ड की बड़ोतरी ने देश को विसंगतियों से ढक दिया है।

विवेचना के नाम पर कालाधंधा आज पनप रहा है सरकारी निजी हर माहुल में समाज झुलसता जा रहा है। सुरक्षा को लेकर आंदोलन शिक्षा को लेकर आंदोलन स्वास्थ्य को लेकर आंदोलन रोजगार को लेकर आंदोलन एक भ्रष्ट सत्ता शासन की गवाही नहीं तो और क्या है, जिसके हालात देश को ग्रहयुद्ध का आगाज नहीं तो और क्या है ऊपर से जाति धर्म का सत्ता प्रभाव इस देश के सर्वनाश का मुख्यकारण और इनके ठेकेदार मुख्यालय बन जाते हैं।

यह सब इसलिये है क्योंकि आज समाज में आदमी अपने उदर भरने के अागे अपने मूल अधिकारों को गिरवीं रख चुका है सत्ता बीच दलालों में, यही बिंडम्बना समाज की अराजकता में भयावह त्रासदी की परिभाषा है।


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