अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Horror

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Horror

खेत का धोखा और मेरा डर

खेत का धोखा और मेरा डर

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एक बार बचपन में की बात है पिता जी के साथ शाम को गेहूं काटने खेत पर गया। उजाली रात में और ठंडे मौसम में गेहूं कि कटाई अच्छी और आसान होती है। सो पिता जी के साथ खेत पर शाम को गेहूं काटने के लिये गांव से दूर लगभग दो किलोमीटर हार में खेत जहां गेहूं काटना था पिता जी के साथ पहुंच गये। पिता जी आल्हा सुनने के बहुतायत शकीन हैं सो गांव में शाम को बुखार आ जाने पर एक एंटिकबाइटिक गोली लेने के लिये गांव में मुझे खेत पर अकेला छोड़ कर यह कर चले गये कि "बेटा यहीं खेत पर पड़ी चारपाई पर बैठना डरना मत हम अभी जल्दी लौट आयेगे" और इधर मैं गेहूं काटने में मस्त हो गया और ऐसा कि बड़ा मजा आ रहा था! गेहूं काटते हुये अपने खेत में जो पिता जी ने गरीबी के हालात में बटाई पर ना देकर स्वयं किया था और जिसे अब सब चार भाईयों को पिता जी के साथ मिलकर काटना था मगर उस दिन रात में पिता जी के साथ मैं अकेला था और बांकी भाइयों को गेहूं काटने सुबह आना था। अब रात में अकेले खेत पर काफी देर गेहूं काटते काटते जब मैं थक गया और पिता जी भी नहीं लौटे तो मैं थक हार कर खेत में पड़ी चारपाई पर पानी पीने के लिये दरांती छोड़ बैठ गया जाकर। चारपाई पर बैठने के बाद जैसे ही मैने पानी की बोतल थैले से निकाली और पीने के लिये ढक्कन खोल कर ऊपर करके मूंह में पानी डाला कि सामने खेत में कोई खड़ा दिखाई दिया जिसने मेरी हवा खराब कर दी और मैं पानी पीना भूल गया प्यास व्यास सब गायब और सोचने समझने की शक्ती गायब आंखें फटी की फटी रह गईं तथा धड़कनें ऐसे चलने लगीं जैसे कोई पीछे पड़ गया हो और हांफने लगा हो। डर की बजह से दिमाग काम नहीं कर रहा था और पानी की बोतल कंपकंपी होठों से यह पूंछते हुये कि तुम कौन हो की आवाज के साथ जमीन पर गिर कर फैल चुकी थी और मैं बार बार यही पूंछ रहा था कि भाई तुम कौन हो और वो बोल नहीं रहा था जो अपनी दोनों बाहें फैलाकर चुपचाप एक ही जगह पर खड़ा और मैले कुचैले कपड़े हवा में फड़फड़ाते हुये दिल की धड़कनें बड़ा कर होश उड़ा रहे थे।अब पैर से विकलांग होने की बजह से भाग भी नहीं सकता था लड़ भी नहीं सकता था सो हिम्मत करके हनुमान जी को याद कर उनका नाम आंखें बंद करके जपने लगा और हमने अंजाम की परवाह छोड़ दी। डर एक भयभीत कर देने वाली वस्तु से पैदा होता जब वह हमारे दिमाग में अचानक से जब कोई बात महसूस होती है जिसका हमें आभास नहीं होता हैं। मगर कुछ ऐसा ही जब हमारे साथ हुआ तो हमें भगवान ही दिखे जब पिता जी को बार याद कर उनके दो चार मिनट में आने इंतजार भी बहुत भारी पड़ रहा था जो गांव में गये तो अपनी दवा लेने थे मगर जब गांव आल्हा होते देखी और अल्हैतों की आल्हा में पिता जी ऐसे खोये कि फिर पूरी रात न लौटे और भूल गये कि हमारा दस बारह साल का लड़का जंगल हार में अकेला है और भोर हुये जब चार बजे तो याद आया पिता जी को कि अरे मेरा संजीव तो खेत पर गेहूं काट रहा है मैं तो भूल गया आल्हा में व्यस्त होकर मालूम ही न पड़ा दिन निकल आया और चल पड़े खेत की ओर लम्बे पांव जल्दी जल्दी मेरा हाल जानने को।

इधर रात में मैं अपने पिता और ईश्वर का नाम आंखें बंद किये चारपाई पर बैठा जपते जपते सो गया और जब सुबह नौ बजे तक खूब जमकर सोया और जब धूप ने तेजी पकड़ी तब चादर हटाकर उठा जो पिता जी ने ही आकर उड़ाई थी तो देखा कि वह रात का भयानक मटमैले हवा में फड़फड़ाते कपड़े वाला आदमी नहीं धोखा था जो फसल को जानवरों से बचाने के लिये पिता जी ने दो डंडो को क्रास बनाकर प्याल से बने पुतले को कपड़े पहना कर खेत में खड़ा किया गया था जो मेरे द्वारा गेहूं काटने काटते ध्यान न देने पर बिल्कुल पास आ गया था जो कि मैं दरातीं वहीं छोड़ पीछे मुड़ कर उठा और चला आया था मगर पानी पीते समय मेरे लिये जब वह अचानक दिखा तो दिमाग से उतर गया कि जानवरों के लिये धोखा देने को बनाया गया पुतला आज हमें ही धोखा दे रहा है और ऐसा जो अगर भगवान पर भरोसा न करते होते तो शायद अचानक दिल दिमाग में पैदा हुये भय से लड़ने की शक्ती पैदा होती। इस तरह यह मेरे जीवन की अब तक की सबसे डरावनी घटना थी जिसे मैं लिख रहा हूं।


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