मेरा हुनर मेरी मौत भाग 2
मेरा हुनर मेरी मौत भाग 2
आपने भाग 1 में पढ़ा की वो लोग मुझे वहाँ से लेकर मेरी माँ से दूर ले जा रहे थे तो थोड़ी ही दूर जाते उन लोगों ने मुझे जिस गाड़ी में ले जा रहे थे
जैसे ही वो मुझे लेकर थोड़ी ही दूर निकले तो एक जोर से आवाज आयी और हमारी गाड़ी रुकी और वो 2 बहार निकले तो देखा की उनकी गाड़ी का टायर फट गया और वो गाड़ी के टायर को बदलने लगे, वो गाड़ी को टायर बदलने के लिए उनको गाड़ी को थोड़ा ऊपर उठाना था। गाड़ी उनसे ऊपर हो नहीं रही थी तो उन्होंने मुझे गाड़ी से बहार निकाला और रास्ते में ही पेड़ के नीचे बांध दिया और वो दोनों गाड़ी ठीक करने लगे और मैं वहीं खड़ा था और मेरी नजर तभी सामने पड़ी क्यूँ की ये वही खेत था जहां मैं और वो ऊंटनी चरने के लिए आते थे और तभी मेरी नजर दूर खड़ी ऊंटनी की तरफ वो मुझे देख रही थी और मुझे बुला रही थी मगर उस समय मेरे ऊपर जो बीत रही थी वो भगवान करे किसी के साथ न बीते। मैं जाना चाहता था मेरी आँखों में पानी आ रहा था मैं एक ऐसी विवशता में फंस गया था जिसका मैं विस्तार ही नहीं कर सकता था। मुझे बस घुटन हो रही थी मैं मरना चाहता था मैं जाना चाहता था उसकी बाहो में वो भी बस मुझे देख रही थी बहुत करीब आना चाहती थी मगर उन दोनों राक्षस को देख कर वो डर रही थी। इसलिए वो आ न सकी मेरे पास मैं बहुत जोर जोर से चिल्ला रहा था उन दोनों राक्षस से बोल रहा था जाने दो मुझे मेरे प्यार के पास मगर वो कहाँ मेरी बात सुनने वाले थे उन्होंने गाड़ी ठीक कर ली और जबरदस्ती मुझे वापिस गाड़ी में डाला और बंद कर दिया फाटक और चलने लगे बस मुझे सिर्फ मेरी ऊंटनी की आवाज सुनाई दे रही थी, न कोई उसका चेहरा बस जो था उसकी दर्द भरी आवाज में था वो क्या कहना चाहती थी मैं अच्छे से समझ रहा था, उसका भाव जो भी था बस मुझे उसने छोड़ा नहीं और गाड़ी चलती रही मुझे उस काले डिब्बे में बंद करके न जाने कहाँ ले के जा रहे थे ऐसे ही पूरी रात बीत गयी और गाड़ी चलती रही।
सुबह हो चुकी थी मुझे थोड़ी थोड़ी धूप आ गयी थी और मौसम बहुत अच्छा था मुझे उन लोगों ने गाड़ी में से उतरा हो एक गहरी पेड़ की छाया के नीचे बिठा दिया और मुझे बहुत हरी हरी घास दी और मैं रात का भूखा था तो उसे खाने लगा और तभी मैंने देखा की मेरे चारों और एक जैसी झोंपड़ियाँ है और मेरे जैसे कई ऊँट है जो देख रहे है मेरी तरफ शायद उन्हें में नया लगा इसलिये और सभी बैठे थे और कोई ऊँट तो अपने मालिक के साथ घूम रहा था और मुझे फिर उन झोंपड़ियों से दूर लाया और वहाँ पर सिर्फ रेत ही रेत थी उसके अलावा कुछ नहीं और चारों तरफ मेरे भाई मेरे जैसे इधर उधर घूम रहे थे लोगों को अपने कंधे पैर बिठाये। मैंने देखा की मुझे इसलिये ही लाया गया था की मैं वहाँ पर अपने पीठ पर लोगों को बिठा के घूमूँ और मुझे वहाँ पर अभ्यास दिया जाने लगा 10 - 15 बाद में भी अपने भाई जैसा बन गया मुझे भी हर रोज या लाते और दिन भर में लोगों को घुमाता और शाम को वापिस मुझे ले के जाते और बाहर हरी हरी घास देते और सुला देते कोई लोग मेरे साथ फोटो खींचते तो कोई मेरी सेल्फी लेता ऐसे करते करते बहुत दिन क्या बहुत साल हो गए और आखिर वो भी दिन आ गया।
आगे भाग 3 में पढ़े

