रेगिस्तान का ज़हर
रेगिस्तान का ज़हर
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ये बात सच है की जब हम लोग कहीं घूमने जाते है तो वह जगह हमको बहुत खूबसूरत लगती है पर दरअसल ये सब होता नहीं है क्यूंकि वह सिर्फ एक दिन या ज्यादा से ज्यादा ३-४ दिन जाते है तो हमको वो घड़ियां बहुत आनंद दायक लगती हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ मैं फरवरी २०२१ महीने मैं घूमने गया था जैसलमेर राजस्थान के रेगिस्तान इलाके मैं वह पर जाने के लिए मैं बहुत उत्त्साहित था।मैं और मेरे भाई और और मेरे एक अध्यापक के साथ मैं थे हम सभी रात को रवाना हुए जैसलमेर के लिए हम सभी जाने के लिए बहुत उत्त्साहित थे। मैं तो उससे पहले गया हुआ था इसलिए मेरा ये सफर दूसरी बार था हम रात को निकले और पूरी रात मेरे अध्यापक जी ने गाडी चलाई मैं साथ मैं उनके पास आगे वाली सीट पर बैठा था पीछे सभी नींद ले रहे थे और नींद तो मुझे भी आ रही थी पर मुझे डर था की मैं नींद लूँ कहीं मेरे अध्यापक जी को नींद न आ जाये इसलिए मैं उनके पास बैठा बैठा बाते कर रहा था और इतने मै होटल आया हम सभी वहाँ पे उतरे और चाये और पानी पीया। करीब १.०० बज चुका था फिर हम आगे बढे और हमारा सफर बातो ही बातो मै पूरा हुआ बाकी सारे पीछे सो रहे थे हम सुबह ४.३० बजे जैसलमेर पहुचे फिर हमने वह पे होटल का कमरा किराये पे लिया और वह आराम किया मेरी तो नींद भी पूरी नहीं हुई थी फिर भी मुझे उठा दिया और १ घंटा भी नींद नहीं लेने दी मै नींद। मै नहा के बाहर आ गया और वहा से सबसे पहले हम कुलधरा गांव देखने गए जो की बहुत अच्छा स्थल है. कुलधरा गांव का तो आप सभी लोगो को मालूम ही होगा उसके इतिहास के बारे मै वहा पे क्या हुआ था क्या नहीं कुलधरा के बारे मै आपको जानकारी यूट्यूब से भी और गूगल से भी सर्च करने पैर मिल जाएगी। अगर मै आपको ये बताने के लिए या लिखू तो शायद बहुत समय मुझे देना पड़े इसलिए आप उसे यूट्यूब से और भी बेहतरीन तरीके से समज पाओगे फिर हम सभी वह पैर घूमे और हमने देखा की वो गांव बहुत अच्छा था मगर शायद वह पर लोग होते तो और भी अच्छा दिखता वह की घरो की बनावट एक दम मोहनजोद्दो और हड़पा सभ्यता से मिलता जुलता एक दम कतार मै बने हुए घर जैसे किसी इंजिनियर के द्वारा बनाया हुआ या डिजाइन किया हुआ हो मतलब बहुत ही सुंदर , अगर आप भी कभी जाकर देखे आपको वहा पे बहुत अच्छा लगेगा
फिर हम वहा से निकले सैम के लिए को की बहुत ही अच्छा घूमने लायक जगह है. लोग वहाँ पर दूसरे देश से भी आते है और बहुत ही अच्छी जगह है वह पर हम सभी घूमे और वह से हम सभी "लोंगेवाला पोस्ट" के लिए निकले जहां पर जाते ही हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है मगर मेरी इस कहानी का जो शीर्षक है इसका आशय तो यही से ही शुरू होता है जब मै सैम से थोड़ी दूरी पर निकला तो देखा की चारो और सिर्फ रेत ही रेत और कुछ था ही नहीं और दूर दूर तक कोई लोग या मकान तक नहीं दिख रहा था शायद वह पर हमारी गाडी ख़राब हो जाती तो वही पर मर जाते प्यासे प्यासे और कुछ तो मुझे समझ ही नहीं आता की वहा पर क्या लिखू उस दृश्ये के बारे मैं फिर ऐसे ही हम आगे बढ़ते जा रहे थे।
तभी मेरी नज़र एक झोपड़ी की तरफ पड़ी वह पर एक वृद्धा कपडे धो रही थी ऊपर तो बहुत गर्मी और सूर्ये का ताप जो की उसके माथे पैर पढ़ रहा था वो अकेली कैसे न जाने कहा से उस वीरान जंगल मेसे पानी लाती होगी और कैसे अभी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति करती होगी कैसे जहा पर न तो कोई सहारा और न कोई किसी की मदद करने के लिए कोई पास रहता हो चाहे कुछ भी हो जाये वही मरे न कोई बचाने वाला और न कोई पानी पिलाने वाला न मोबाइल का कोई सिंग्नल कुछ भी नहीं चारो तरफ सिर्फ रेत ही रेत और कुछ भी नहीं था और मन मै ऐसी बहुत सोच के साथ मै आगे बढ़ा तभी देखा की एक गाय का बछड़ा रोड के ऊपर चल रहा है न जाने कहा जा रहा था वो न कोई छाव न कही पानी और न कोई उसके दोस्त खड़े जहा पर वो जा रहा हो कुछ भी मुझे वहा पर गर्मी के अलावा कुछ न था ऊपर से जाड़े के दिन थे फिर भी मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मार्च या अप्रैल का महीना चल रहा हो गाडी मै एयर कंडीशनर भी चालू तो भी इतनी गर्मी लग रही थी सोच तो रहा था कही से पानी ला टैंकर लेके आके उन प्यासे जानवरो को पानी पिलाओ और खाना अपने हाथो से खिलाऊ मगर मेरे पास उस वक्त मन मैं इन सब बातो को सोचने के अलावा कुछ न था और मै आगे बढ़ता रहा रस्ते मैं कुछ भेड़े झुंड मै खडी एक दूसरे से सर को लगाए थी शायद इससे उनको गर्मी का एहसास कम होता होगा और तो मुझे कुछ न लगता होगा
ये तो थी मेने जो आँखों से देखा वो दर्श्ये मगर उन फौजी भाइयो का क्या जो इतनी गर्मी मै डटकर हमारे देख की रक्षा करते है सलाम करता हु उन फौजी भाइयो को और उन माँ के लाल को जो हर पल हमारी रक्षा करते हैं।
इसी के साथ मै आगे बड़ा और लोंगेवाला पोस्ट मै हमने यात्रा का आनंद उठाया और हमने अपने देश से जुडी उन निशानी को देखा जिसे देख क्र हम अपने आप को भारतीय कहने पर गर्व होता हो इसी के साथ हम आगे बढे और तनोट माता के मंदिर और उनका आशीर्वाद लिया और आगे बड़े और हम घर के लिए रवाना हुए और हम वापिस शाम को घर पहूचे।
इसी के साथ हमारी यात्रा भी पूरी हुई हमे तो वो जगह के जन्नत से कम नहीं लगतीं मगर जो रहते है. वह पर उनके लिए तो ज़हर है इसी लिए मेने अपनी कहानी और इस यात्रा का नाम रेगिस्तान का ज़हर रखा।
