एक आवारा मुसाफिर
एक आवारा मुसाफिर
यह बात उन दिनों की जब कोई भी इस दुनिया में गाड़ियों और अन्य संसाधनों का आविष्कार नहीं हूँ आ था। चारों और शांति का वातावरण था न कोई प्रदूषण और न कोई दूषित वातावरण था सिर्फ चारों और हरियाली, शांति मय वातावरण था शीतल जल और सूर्य की शीतल किरणें थी
जो की मन को बहुत अच्छी और तन को बहुत अच्छी लगती थी और पशु पक्षी चहचहाहटबहुत ही मधुर वाणी की साथ पूरे वातावरण में गूंजती थी। उस समय एक आदमी जिसकी लम्बी दाढ़ी और मूसे और ऐसा लग रहा था जैसे उसका कोई सहारा नहीं था बे सहारा, उसकी आँखों में एक तरह की आशा की जो की किसी वृद्ध आदमी की होती हो, हाथों में लकड़ी लिए जंगल में जा रहा था न उसको किसी जंगली जानवर का भय और न ही किसी का देर बस अकेला चल ही रहा था शाम का समय हो गया था। उसको बहुत ही भूख और बहुत ही प्यास लगी थी तभी उसकी नज़र एक सामने नदी की तरफ पड़ी वो उस नदी के किनारे जाके बैठ और सुकून से सांस लेने लगा और अपने दोनों पाँव चलती हूँ ई नदी में पानी में रख दिए। जैसे उसको लग रहा था की उसकी बैठी उसके पाँव सहला रही और वो सोया हूँ आ हो किसी आराम दायक बिस्तर पर वो ऐसा अपने मन में सोचता। उसे अपने घर की याद आ गयी और उसकी आँखों में आंसू आ गए और अचानक उसने अपने आंसू पोंछे और उठ कर उसने कुछ फल फूल खाके अपनी भूख मिटाई।
२.
वो आदमी चलता चलता जा रहा था की वो जंगल के पार एक नगर में पहुँचा और वो इतना अपने आप से हार चूका था की वो कहाँ जा रहा है और कैसे जा रहा है उसको कुछ पता ही नहीं चल रहा था। तभी उसकी नज़र एक बहुत बड़े मकान की तरफ पड़ी ये वही मकान था जहां पर उसकी बेटी का ससुराल हूँ आ करता था और वो अपनी बेटी का वहाँ पे किसी कठोर हृदय वाले आदमी से उसका विवाह कराया था। जिसने उसकी बेटी को बड़ी बेरहमी से मार डाला और उसने अपने स्वार्थ के लिए उसकी बेटी का घर उजाड़ डाला और ये सब करने में उसका सगा बेटा भी साथ में था, जिसने इतना सब होने पर भी सब कसूर अपने बाप पर डाला और उसके बाप को उसकी जायदाद हड़पने के लिए घर से बहार निकाल डाला। ये वो ही बाप था जो जो बे सहारा होकर जंगल जंगल एक गांव से दूसरे गांव तक फिरता था लोगों की रूखी सूखी खाता था और ऐसे ही कहीं भी सो जाता था। ये आज फिरता फिरता अपनी बेटी के ससुराल के सामने अपनी बेटी के खुशियों की विचित्र परछाई वो बाप अपनी आँखों में लिए उस मकान को देख रहा था।
३.
तभी उसने देखा की २-४ आदमी उस मकान के अंदर हथियार लिए जा रहे है। वो उन लोगों को चुपके से देखने लगा और वहां वो ही उसकी बेटी का पति और उसका बाप और उसकी बहन जो मिलकर उसके बेटे के बारे में बात कर रहे थे तभी वो वहाँ से चलने लगा और रात दिन चलते चलते सीधा अपने घर के सामने पहुँचा। उसने देखा की उसके बेटे की पत्नी उससे पहले वहाँ पहुँच गयी घोड़ा गाड़ी से उतर रही है और वो अंदर चली गयी और तभी वो अपने मकान के सामने पहुँचा और वो कुछ भीख मांगने का बहाना बना कर उसके बेटे के घर के आगे
बोला - कुछ खाने को दे दो भगवन आपका भला करेगा।
ऐसा उसने ३-४ बार बोला मगर उसके बेटे ने सोचा कोई भिखारी होगा तो उसने सुनकर भी अनसुना कर दिया और और उसका बाप बोलते बोलते वही सो गया।
४.
शाम हो गयी मगर उसका बेटा बहार नहीं आया और वो वही बैठा रहा शरद ऋतु थी और बहुत ठण्ड थी उसका बाप ऐसे ही सो गया और उसके ना कोई ओढ़ने के लिए चादर थी और न ही कोई उसके पास ऐसे कोई कपड़े थे जो की उसके जाड़े में काम आ सकते थे और वो वोही फटे आध नंगे कपड़े पहने हूँ ए थे वोही पहनकर सो गया।
और जब सुबह हुई तो उसका बेटा सुबह अपने मुँह धोने के लिए जैसे ही बहार आया तो उसने दरवाजा खोला तो उसका बाप सीधा उसके कदमों में गिर गया क्योंकि वो रात को बहुत ठण्ड की वजह से मर गया था जैसे उसके बाप उसके कदमों में गिरा तो उसके हाथ से वो लोटा गिर गया और उसका पानी उसके बाप के चेहरे पे गिर गया और उसके बाप के चेहरे का मैल पूरा उतर गया और उसके बेटे ने पहचान लिया की जो रात को को कुछ खाने के लिए मांग रहा था वो उसका बाप ही था उसके बाप के मरने का उसका कोई दुख नहीं हूँ आ उसने तुरंत अपनी पत्नी की बुलाया और उसको सब बात बताई मगर उसके बाप के हाथ में सोने की अंगूठी को देख उसकी पत्नी
बोली - आपके पिता तो मर गए, अगर इस बुड्ढे के हाथ में ये अंगूठी है ये तो निकल लीजिये।
पति - मैं इसको कैसे निकालूँ मेरे पिता के हाथों पर और अंगुलि पर इतना मेल है की मेरे हाथ गंदे हो जायेंगे जरा पानी ले के आओ।
पत्नी - अभी ले के आती हूँ जरा आप और देख लीजिये इनके हाथों में या अंग पर और कुछ तो सोने की चीज़ नहीं है।
वो आप देख ले मैं पानी ले के आती हूँ।
जैसे ही उस बेटे ने अपने बाप को अंग को देखने के लिए उल्टा तो उसके बाप की मुट्ठी में कुछ था उसने मुट्ठी को देखा तो उसमें कागज था
उसमें लिखा था..
" बेटे मैं तेरा पिता हूँ मुझे पता है तुमने मुझे घर से बाहर निकाल दिया और इस बात को बरसों हो गए और तुम मुझे नहीं पहचान सकोगे इसलिए मैं ये कागज लिखा है, मैं घर से निकलते ही बहुत दिनों तक मैं जंगलों में रहा और मैं अपनी बेटी को याद करते करते उसके ससुराल पहुँचा वहाँ मैं देखा की तेरी पत्नी और उसका भाई और उसका बाप तुझे मारने और तेरी जायदाद हड़पने के लिए षड़यंत्र रच रहे है तेरी पत्नी आज वहाँ से आई है और वो तुझे मारने के लिए २ आदमी भी लाई जो की यहाँ से दूर पर किसी के यहाँ रुके है वो कल रात तुझे मारने के लिए आएंगे तू होशियार रहना।"
ये सब पढ़ने के बाद बेटे के आँख में आंसू आ गए और वो रोने लगा उसको अपने आप से घृणा होने लगी और उसने सर नीचे कर लिया, की अपने इस पाप को धोकर रहेगा और उसने अपने बाप का अग्नि संस्कार कर दिया और शाम को उसने अपने पत्नी को बुलाकर उसको सबसे पहले उसको बोला की मैंने तुम्हारे लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया मगर तुमने मेरा संसार उजाड़ दिया और ये कहते कहते उसने छुरी से सबसे पहले उसकी पत्नी को मारा और खुद भी बाद में मर गया !
