मेरा हुनर मेरी मौत भाग 3
मेरा हुनर मेरी मौत भाग 3
आपने दूसरे भाग में पढ़ा की मुझे मेरे मालिक के और मेरी माँ के पास से दूर और मेरी प्रेमिका से दूर न जाने कहा पर लाया गया जहां चारों तरफ रेत ही रेत थी और मेरे जैसे कही भाई और कही बहन जो मेरे जैसे ही सिर्फ लोगो को अपने ऊपर बिठा कर घुमा रहे थे और ऐसे ही घूमते और लोगों को घुमाते मेरी जिंदगी बीती जा रही थी और आखिर वो दिन आ गया
अब आप आगे पढ़िए ........
मेरी जिंदगी ऐसे ही बीत रही थी। हर रोज वो ही शाम और वही लोग घूमते मेरी पीठ ऊपर न किसी को मेरे ऊपर दया आती थी न कुछ भी उन्हें फर्क पड़ता था मेरी पीड़ा से। मैं जब बूढ़ा होता गया तो मेरी ताकत भी कम होती जा रही थी और मालिक को भी मेरे ऊपर गुस्सा आता था और मैं धीरे धीरे चलता और मेरे नाक में जो मालिक ने हुक डाले थे जिससे मेरी डोरी बंधी हुई थी उससे मालिक मुझे खींचता और मैं चलता था। जैसे ही मैं चलता तो मालिक मुझे खींचते तो मुझे उस हुक से मेरे नाक पे बहुत दर्द होता। मैं बहुत चिल्लाता मगर मेरे मालिक मुझे फिर भी में चलता रहता अपने दर्द को सहन करता रहता और एक दिन मेरे मालिक मुझे खींच रहे थे तो मैं रूक गया, फिर मुझे खींचते थे और आखिर मेरा नाक से वो हुक मेरा नाक तोड़कर निकल गया और मालिक ने मुझे आखिर वहीं छोड़ दिया और मैं प्यार और दर्द से कराहता, न कोई मेरी दुःख को समझता और ऐसे ही में वहाँ बैठा रहा और देखा की सामने एक और ऊंटनी मेरे जैसे ही वहाँ पर दर्द से कराहती हुई आ रही थी। मैंने देखा वो तो मेरा प्यार वही ऊंटनी थी जिसे बचपन से मेरे से दूर रही थी और मुझे वहाँ से लाया गया था। वो मेरे पास आई मेरी ओर उसने मुझे देखा मैंने उसे देखा हम दोनों अपने दर्द को भूल गए। हमारी आँख में दर्द के वो आंसू खुशी के आंसू बन गए और हम दोनों वहीं बैठ गए। एक दूसरे को देखते देखते शायद हमारे बिछड़ने से लेकर बाते कर दी और एक दूसरे के मुँह के पास मुँह रख के एक एहसास में खो गए देखते देखते न जाने कब हम दोनों के प्राण पंखेरू उड़ गए।
इसी के साथ इस कहानी का अंत होता है।

