जंगल में खज़ाना भाग - 2
जंगल में खज़ाना भाग - 2
सुबह के 6 बजे थे चारों दोस्त रेलवे स्टेशन पर खड़े खड़े ट्रैन का इंतज़ार कर रहे थे।
राजन - यार कब तक आएगी ट्रैन में तो बोर हो रहा हूँ।
राहुल - यार आती होगी थोड़ी देर इंतज़ार कर ले ना।
विक्रम - आ जाएगी यारों मैं तो जा रहा हूँ सोने यही पर तुम लोग ट्रैन आ जाये तो बता देना ठीक है।
रोहित - लो आ गयी ट्रैन।
चारों दोस्त ट्रैन में चढ़ते है और अपनी अपनी सीट पर सो जाते है थोड़ी देर बाद रोहित को सपने में कुछ अजीब अजीब से पुराने कुछ चित्र दिखाई देते है और वो जाग जाता है और विक्रम को बोलता है।
रोहित - यार विक्रम मुझे कुछ अजीब अजीब दिखाई दे रहा ये न जाने क्यूं हो रहा ह आज मेरे साथ ऐसा !
विक्रम - रोहित मेरे दादाजी भी कुछ ऐसा ही मुझे कुछ कह रहे थे की ये किताब जिसके पास रहेगी उसको कुछ अजीब से चित्र और आकृति दिखाई देगी जो उसकी ख़ज़ाने को ढूंढ़ने में मदद करेगी मुझे भी ऐसा ही लगता है रोहित की ये चित्र तुम्हें इस वजह से ही दिखाई दे रहे है ये हमारी शायद आगे कुछ काम आये तुम इसको हो सके तो याद रखना।
रोहित- अगर ऐसा है तो यार में इसको याद रखने की कोशिश करूंगा।
राहुल - यारों सो जाओ हमारा सफर बहूँ त लम्बा है अभी तो पूरा दिन और पूरी रात तक हमें इसी ट्रैन में सफर करना है तब जाके हमारा ग्वालियर आएगा।
रोहित - यार तुझे तो हर बार बस सोना ही आता है चल यार साथ में बैठ के सफर का मजा लेते है।
चारो पास बैठ के सफर का मजा लेते है और आनंद उठाते है और अपनी मंजिल के आने की प्रतीक्षा करते है।
जैसे तैसे करके के समय बीत जाता है और रात को करीब 2 बजे ट्रैन उनको ग्वालियर रेलवे स्टेशन पे छोड़ देती है और वो चारों टैक्सी लेके ग्वालियर फोर्ट की तरफ चल देते है।
रेलवे स्टेशन से तानसेन रोड से ग्वालियर किले का रास्ता करीब 15 मिनट का है और वो किले की तरफ चले जाते है।
रोहित - यार अभी हम लोगों को शायद होटल का कमरा बुक करके होटल में जाते है और वही रहकर हम लोग आगे की अपनी प्लानिंग करेंगे और इतना कहकर चारों दोस्त सहमत होकर होटल की तरफ चल देते है और कमरा बुक करके वही रह जाते है
सुबह रोहित सबसे पहले उठ के सभी दोस्तों को एक एक करके उठाता है और सभी 7 बजे उठ के तैयार हो जाते है और सभी नाश्ता करने के लिए बहार एक होटल में जाते है और एकांत में बैठकर अपनी आगे की योजना बनाते है।
रोहित - यार अब हमें आगे के लिए मेरे हिसाब से सबसे पहले हम उस किले का मुआयना करना चाहिए और इससे हमें किले की जानकारी मिल जाएगी और हमें आगे लिए कुछ कुछ रास्ता मिल जायेगा की हमें खज़ाना कहा मिलेगा।
राहुल - हां भाई बात तो तुम सही कर रहे हो मगर हमें इसके लिए हमें जल्दी जल्दी किले की तरफ चलना होगा और देखना होगा।
राजन और विक्रम - तो चलो यारों देर किस बात की है अभी चलते है वैसे भी हम तो एक्साइटेड है ये मिस्ट्री सुलझाने के लिए और ख़ज़ाने को ढूंढ़ने के लिए
रोहित- हां यार ये खज़ाना अगर हमें मिल गया तो इससे हमारे देश का कितना भला होगा और गरीब जनता का भी कितना भला होगा।
इसी के साथ सभी दोस्त किले की तरफ चलते है और अंदर जाते है।
GWALIOR FORT
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था। तीन वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है।।। यह किला मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूनों में से एक है। यह ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है जो गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह किला देश के सबसे बड़े किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है।
इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने किया जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है। किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इसपर पाल वंश ने राज किया। इसके बाद इसपर प्रतिहार वंश ने राज किया। 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। 1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा। फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया।
KHAZANA KA RAHESHYE
ग्वालियर किले में छुपे खजाने की सच्ची कहानी अद्भुत और रहस्य से भरपूर है। सिंधिया राजघराना के इस खजाने का जिक्र M. M. Kaye की किताब The Far Pavilions में किया गया है। इस बुक के लेखक M. M. Kaye के पिता Cecil Kaye सर माधवराव सिंधिया के खास मित्र थे और यह सच्ची कहानी खुद सर माधवराव सिंधिया ने उन्हें बताई थी।
17-18वीं शताब्दी में सिंधिया राजवंश अपने शीर्ष पर था और ग्वालियर के किले से लगभग पूरे उत्तर भारत पर शासन कर रही थी। ग्वालियर का किला इस राजपरिवार के खजाने और हथियार, गोले-बारूद रखने का स्थान था।
पीढ़ियों से ग्वालियर किले में खजाने का कुछ हिस्सा जमीन के नीचे बने गुप्त तहखानो में रखा जाता था जिसका पता सिर्फ राजदरबार के कुछ खास लोगों को था। यह रहस्यमयी खज़ाना गंगाजली के नाम से जाना जाता था।
गंगाजली का खजाना रखने का मुख्य उद्देश्य युद्ध, अकाल और संकट के समय में उपयोग करने के लिए था। सिंधिया राजघराना एक सफल, समृद्ध राजवंश था और उसके खजाने में निरंतर वृद्धि होती रही।
जब खजाने से कोई तहखाना भर जाता तो उसे बंद करके एक खास कूट-शब्द (कोड वर्ड) से सील कर दिया जाता और नए बने तहखाने में खजाने का संग्रह किया जाता। यह खास कूट-शब्द जिसे बीजक कहा जाता था, सिर्फ महाराजा को मालूम होता था।
यह बीजक यानि कोड वर्ड महाराजा अपने उत्तराधिकारी को बताया करते थे। सिंधिया परिवार में यही परम्परा चली आ रही थी। ग्वालियर किले में ऐसे कई गुप्त तहखाने थे, जिन्हें बड़ी ही चालाकी से बनाया गया था और बिना बीजक के इन्हें खोजना और खोलना असंभव था।
सन 1843 में सर माधवराव के पिता जयाजीराव सिंधिया महाराजा बने जिससे तहखानों और बीजक का उत्तराधिकार भी उन्हें मिला। सन 1857 में कुछ समय के लिए किले पर विद्रोहियों ने कब्ज़ा कर लिया जिसे बाद में अंग्रेजों ने अपने कब्ज़े में ले लिया।
महाराज जयाजीराव अपने खजाने के प्रति निश्चिंत थे क्योंकि वो जानते थे, खजाने को खोज पाना विद्रोहियों के लिए असंभव था। यही हूँ आ भी, लाख प्रयासों के बावजूद उन्हें खजाने का नामोनिशान नहीं मिला।
जब किले का अधिकार अंग्रेजों को मिला तो ‘जीवाजीराव’ को बड़ी चिंता हुई कि संभवतः अँगरेज़ कहीं खजाने तक न पहुँच जाएँ। सन 1886 में जब अंग्रजों ने किले का अधिकार पुनः सिंधिया परिवार को सौंप दिया और महाराज जयाजीराव ने चैन की साँस ली।
नोट - ये ग्वालियर किले को थोड़ी जानकारी थी जो मैंने इंटरनेट की मदद से आपको इस किले के बारे में बताने के लिए इसमें लिखी है इस जानकारी का इस कहानी से कोई मतलब नहीं है और ऐसी घटना होना मात्रक एक सहयोग होगा।
धन्यवाद
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चारों दोस्त अंदर जाते है और किले की भव्य इमारत को देखकर दांग रह जाते है और रोहित एक गलियारे से गुजरता है वह उसे देख कर अचंभित हो जाता है और बाकी दोस्तों को बुलाता है।
रोहित - यार ये निशाना मुझे कल रात सपने में देखा था इससे कुछ तो रहस्य जुड़ा है लगता है ख़ज़ाने का आगे का रास्ता यही से मिलेगा और वो चारों एक कोने में चले जाते है और
उस बुक को खोलते है और जैसे ही बुक को खोलते है अचंभित हो जाते है राहुल बोलता है।
राहुल - यार ये पेज तो सब खाली है
राजन - हां यार सब खाली है
विक्रम - ऐसा कुछ नहीं ये किताब में जो भी है सिर्फ रोहित को ही दिखेगा
रोहित - यार दिख तो रहा है मगर जो भी है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है इसकी भाषा मुझे समझ नहीं आ रही है इसके लिए मुझे मोबाइल का इस्तेमाल करके समझना पड़ेगा।
रोहित मोबाइल निकाल के आगे उस भाषा की जानकारी लेने का प्रयास करता है और उससे सफलता मिलती है।
आगे का भाग जल्द ही
क्रमशः