Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama

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Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama

मैंने भी कहा होता

मैंने भी कहा होता

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"माँ हर दुःख में याद आती है, आपकी हर पल हर घड़ी आपकी याद आती हैं, जानती हूं मेरी गलती माफी के लायक तो नहींं...... लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मां "सजल आंखों से बेतहाशा रोती रूपा ने अपनी माँ सरिता जी की फ़ोटो को अपने सीने से लगा लिया।

और करती भी क्या? क्यूंकि कुछ भी उसके बस में नहीं था और वो कुछ कर भी नहीं सकती थी सरिता जी अब इस दुनिया मे नहीं थी और उनकी मौत की जिम्मेदार कहीं ना कहीं रूपा का लव मैरिज करने की जिद था जिसकी वजह से उनको करीबी रिश्तेदारों से लेकर समाज के लोगो तक हर किसी के ताने सुनने को मिले। रूपा अनिकेत के प्यार में इतनी अंधी थी कि उसको अच्छा बुरा कुछ भी समझ नहीं आ रहा था अनिकेत के लिए उसने सरिता जी को इतने कड़वे शब्द कहे थे कि किसी को भी वो शब्द तीर की तरह चुभ जाए।

सरिता जी ने हर सुख का त्याग रूपा के लिए कर दिया था बिना बाप की बेटी को अकेले पाल पोश कर के बड़ा करना इतना आसान नहींं था। लेकिन हर मुश्किल को पार करके उन्होंने रूपा को हर खुशी दी उसे पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया। लेकिन आज उसी बेटी ने सरिताजी को जब कहा "कि माँ आपने कभी प्यार किया ही नहीं तो आप क्या जाने प्यार का मतलब आप चाहती है कि मैं अरेंज मैरिज करुँ बिना लड़के को जाने पहचाने तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता।"

कितना समझाया था सरिताजी ने रूपा को की अनिकेत जैसा दिखता है वैसा है नहींं? वो और उसका परिवार दोनो ही दोहरेचरित्र के है उनसे रिश्ता नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उनसे रिश्ता जोड़ने का मतलब खुद को उम्र भर मुसीबत में डालना होगा। आखिर थी तो अनुभवी आंखे ही सरिताजी की तजुर्बा और समय इंसान की पहचान करना सीखा ही देता है और यही था सरिताजी के साथ।

लेकिन रूपा उनकी एक बात भी सुनने को तैयार नहीं थी उल्टा तो उसने सरिताजी पर ही लालची माँ होने का तमगा लगा दिया उसने साफ लफ्जो में कह दिया मुझे पता है माँ आपको घर जमाई चाहिए जो आपके जीवन मे बेटे की कमी को पूरा करें और अनिकेत ऐसा नहीं कर सकते सीधा सीधा ये क्यों नहीं कह देती की आपको मुझे पालने की कीमत चाहिए। लेकिन आप भी मत भूलिए की बच्चो को अच्छी परवरिश देना हर माता पिता का कर्तव्य होता है और आपने भी वही किया है जो हर मातापिता करते है क्या करेंगी बैंक बैलेंस रख कर आखिर मेरी जब अरेंज मैरिज करती तब तो आप दहेज देती ही ना तो आज अनिकेत को देने से क्यों मना कर रही है? माँ मेरी एक बात ध्यान से सुन लीजिए कि अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो आप मेरा मरा मुँह देखेंगी काश आज पापा जिंदा होते तो वो मेरी बार जरूर समझते और मानते।" कहकर पैर पटकते हुए रूपा ने अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

जड़वत सरिताजी वही खड़ी रह गयी सरिताजी का दिल दिमाग शून्य हो चुका था वो सोचने लगी कि आखिर कहां कमी रह गयी परवरिश में उनके।

उधर सभी रिश्तेदार रूपा की शादी किसी अन्य कास्ट में शादी करने के फैसले को सरिताजी के दिए संस्कार और कर्मों से जोड़कर देख रहे थे जिसके जो मन मे आया सबने कहा किसी ने दबी जुबान में तो किसी ने व्यंग्य करके " इसलिए तो कहते है लोग बेटियों को ज्यादा छूट नहीं देनी चाहिए जब कर्म ही ठीक ना होतो यही होता है " और ना जाने क्या क्या?

रूपा ने अनिकेत से अपनी माँ को बिना बताए कोर्ट मैरिज कर लिया। जिस खबर को सुनकर सरिता जी को ब्रेन स्ट्रोक आया और वो जिंदगी की जंग हमेशा हमेशा के लिए हार गयी। आसपास के पड़ोसी मित्र नजदीकी सभी रिश्तेदारों ने रूपा से अपना नाता तोड़ लिया।

ठीक एक साल बाद उनकी बरखी के दिन रूपा उनको याद करके रो रही थी क्योंकि उनकी अनुभवी आंखों ने अनिकेत को बिल्कुल सही पहचाना था अनिकेत के साथ साथ उसका पूरा परिवार सिर्फ पैसों का लालची था अब पैसों के लिए अनिकेत रूपा के साथ मारपीट भी करने लगा रूपा की तनख्वाह से लेकर उसके प्रॉपर्टी तक हर चीज पर अनिकेत और उसके परिवार का कब्जा था। विद्रोह करने पर उसके साथ मारपीट गाली गलौज की जाती। और रूपा रो कर रह जाती। वो अपनी जिंदगी घुट घुट कर जी रही थी क्योंकि ये गलती उसने खुद ही कि थी और अब वो किसी से मदद भी नहीं मांग सकती थी ना कोई उसका शुद बूद लेने वाला था अब रूपा जब भी रोती उसको अपनी मां की कहीं बात याद आती " बेटा प्यार करने और शादी करके निभाने में जमीन आसमान का फर्क होता है। मैं नहीं चाहती कि तू ये गलती करें और जिंदगी भर पछताती रहे।"

आज एक कोने में मां की तस्वीर हाथ में लिए अपने सीने से चिपकाए बैठी थी थप्पड़ और चप्पल की मार और गाली गलौज ने उसके तन मन औऱ आत्मसम्मान को छन्नि कर रखा था वो रो रही थी कि तभी जैसे उसे आवाज आयी।" मेरी बेटी इतनी भी कमजोर नहीं जो इतने जुल्म चुपचाप सहे तू गलत के प्रति अपनी आवाज उठा नारी कभी कमजोर नहीं होती।"

रूपा ने अपने आंसुओं को पोछा और खड़ी हो गयी विद्रोह का बिगुल बजाने के लिए उसने अनिकेत से तलाक ले लिया। और अकेली ही अपनी नवजात बेटी को पालने का निर्णय लिया।

लेकिन आज पूरे 24 साल बाद रूपा वहीं खड़ी थी जहाँ कभी उसकी माँ सरिताजी खड़ी थी आज रूपा को उसकी बेटी ने अपने प्यार से मिलवाया। तब रूपा सोचने लगी कि अगर मैंने मना किया तो कहीं मेरी बेटी भी मेरी वाली गलती ही ना कर दे। तबाह रूपा की बेटी(खुशी) ने उसके गले लगते हुए कहा "माँ क्या सोच रही हो जो भी आपके मन मे है वो मुझे बता दो आपका हर फैसला मुझे मंजूर है मेरे लिए आपकी खुशी से बढ़कर कुछ भी नहींं "

तभी लड़के ने कहा "आंटी!बिना आपकी परमिशन और आशीर्वाद के हम शादी नहीं करेंगे मुझे खुशी ने पहले ही बोल दिया था कि जब तक आप नहीं राजी होगी तब तक वो मुझसे शादी नहीं करेगी और अगर आपने मना किया तो मैं उसे हमेशा के लिए भूल जाऊं।"

रूपा के आंखों में एकतरफ खुशी के तो एक तरफ आत्मग्लानि में आंसू झर झर गिरने लगे उसने अपनी बेटी को गले से लगाते हुए कहा "मुझे ये रिश्ता मंजूर है।" और मन ही मन सोचने लगी कि काश मैंने भी अपनी मां से और उनके लिए ये शब्द कहे होते।


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