मैं बड़ा नहीं हुआ
मैं बड़ा नहीं हुआ
जब तक माँ थी, तब तक इस वीरान घर में जैसे रोज़ ही त्यौहार जैसा लगता था। सारी उम्र ही उसके आँचल में बिता दी, पर कभी इस लायक बन ही नहीं सका कि उसे अपने साथ शहर में रख सकूँ, इतना बड़ा कभी माँ ने होने ही नहीं दिया। मैं ही उसके पास रहता था। आज मेरे बच्चे बड़े हो कर विदेश में आराम से रह रहे हैं। आज कल तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती, बच्चे बुलाते तो हैं पर मैं कहीं जाना नहीं चाहता। कुछ दिनों से माँ की बहुत याद आती है, मानो उसका वहाँ कोई नहीं और मैं भी यहाँ अकेला हूँ तो मुझे बुला रही हो।
बस अब अंतिम श्वास छोड़ दी मैंने, मे
रा मृत शव मेरी आँखों के सामने है, और मां की फोटो को सीने से दबाए विश्राम कर रहा है। किसी ने बच्चों को खबर कर दी होगी, बेचारे रो रहे हैं, पर इसका कोई फायदा नहीं। मैं तो बस इस बात से संतोष में हूँ कि मैंने अपनी माँ को मरने के लिए अकेला नहीं छोड़ा था, और अब सीधा उसी के पास जाऊँगा, इस दुनिया ने बड़े ज़ख्म दिए हैं, जिनकी दवा सिर्फ मां के पास है।
बहुत कोशिशों के बाद भी वो माँ की फोटो मेरी गिरफ्त से छुड़ा नहीं पाए तो हार कर उसे भी मेरे साथ ही स्वाहा कर दिया। सच में मैं कभी इतना बड़ा हुआ ही नहीं की माँ को छोड़ सकूँ।