एक किन्नर माँ
एक किन्नर माँ
" अरी रेखा... जल्दी जल्दी हाथ चला। बहू की मुंह दिखाई के लिए सब रिश्तेदार और पड़ोसी आते ही होंगे", उर्मिला जी ने अपनी नौकरानी से कहा।
" कर तो रही हूँ जिज्जी... आप परेशान ना हो, सबके आने से पहले ही सारी तैयारी हो जायेगी... आप तो बहू जी की तैयारी देखो बस "
" अंजलि... अरे बेटा जो गहने तुम्हारे घर से आये हैं वही पहनना... ठीक है ना "
" जी मम्मी जी "
" अरे उर्मिला... आज मुझे चाय नाश्ता मिलेगा? या भूखा बैठा रहूँ। काम है जानता हूँ... लेकिन मुझे दवाई भी तो खानी होती है ", हरीश जी ने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाते हुए कहा
" माफ़ करियेगा... मैं अंजली के पास थी, इसलिए देर हो गई "
" कोई बात नहीं... अच्छा सुनों मैंने आज कुछ खास मेहमानों को बुलाया है, उनकी मेहमान नवाज़ी में कोई कमी ना आये... ठीक है ना। वो खास रौनक और अंजली को आशीष देने आयेंगे। "
" जी बिल्कुल... "
थोड़ी देर में सभी रिश्तेदार और मेहमान भी आ गए। खूब गाना बजाना हुआ, सभी ने अंजली की बहुत तारीफ़ करी और उसे आशीर्वाद भी दिया।
इतने में ही कुछ किन्नर समाज के लोग ताली बजाते हुए घर में आए।
" बस इन्हीं की कमी थी ", उर्मिला जी ने अपना सर पकड़ लिया। तभी उनमें से एक बोली
" क्यों नई नई सासू जी क्या हुआ? क्या सोचा था कि चुपके से बेटे की शादी कर लोगी और हमें खबर तक ना होगी?"
मेहमानों में से किसी ने कहा " जो चाहती हो मिल जायेगा, पर कुछ नाच गाना तो दिखाओ "
इसपर हरीश जी को गुस्सा
आ गया और वो तमतमाते हुए बोले " मैंने बुलवाया है, इन सभी को यहाँ। यही मेरे खास मेहमान हैं, मैं इनका आदर करता हूँ और इनमें से कोई नहीं नाचेगा, समझे आप लोग "
उर्मिला जी सब समझ गयीं और उन्होंने रेखा से आरती की थाली लाने को कहा।
उन किन्नरों में जो सबसे बड़ी थीं, उनके पैर छू कर उर्मिला जी , हरीश जी और उनकी माँ ने उनको कुमकुम लगाया। अपने बेटा बहू को भी ऐसा ही करने को कहा।
अंजली के सर पर प्रेम भरा हाथ फेर कर उन बड़ी किन्नर ने उसे सोने की चूड़ियाँ आशीष के तौर पर भेंट कर दीं और नाश्ता पानी कर वो सब चले गए। हरीश जी ने सभी को बड़े सम्मान के साथ एक एक साड़ी और 5 5 हज़ार रुपए देकर संतुष्ट किया।
ये सब देख कर सभी असमंजस में थे कि हुआ क्या। हरीश जी ने सबके सवालों के जवाब में बस इतना कहा
" जब मैं 20 साल का था, तो एक रात फैक्टरी से लौटते समय मेरा बहुत बड़ा एसिडेंट हो गया था। सारी रात मैं यूँ ही पड़ा रहा। सुबह कुछ किन्नर वहाँ से गुज़रे और उन्होंने मुझे हॉस्पिटल पहुँचाया। रात भर खून बहने की वजह से मेरे अंदर खून की बहुत कमी हो गई थी, तब बड़ी दीदी ने मुझे अपना खून देकर मेरी जान बचाई थी। तभी से मेरी माँ यानी रौनक की दादी भी उन्हें मानने लगीं और उन्होंने मुझे कहा ये भी तेरी माँ की ही जगह हैं बेटा, उन्होंने तुझे दूसरा जन्म दिया है। उनकी सदा पूछ करना", और वो रोने लगे।
सभी ये बात सुनकर भाव विभोर हो गए और सभी के मन में किन्नरों के प्रति सम्मान जग गया।