Swapnil Ranjan Vaish

Tragedy

4.0  

Swapnil Ranjan Vaish

Tragedy

*अतीत की परछाई*

*अतीत की परछाई*

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"साहब मैं जेल से छूट तो गई हूँ, पर बाहर निकल कर मैं करूँगी क्या? मेरी बेटी भी अब मुझसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहेगी, जियूँगी भी तो किसके लिए साहब। आप मुझे यहीं रहने दो ना" हाथ जोड़कर क्रांति ने जेलर से गुज़ारिश करी। 14 साल उम्रकैद की सज़ा काट चुकि क्रांति का एक जुर्म यही था कि उसने अपने पति की हत्या करी थी, अपनी 10 साल की बेटी कुसुम को बिकने से बचाने के लिए उसने अपने पति के सर पर हथौड़ा दे मारा था। क्रांति को उम्रकैद हो गयी और कुसुम को एक एनजीओ( NGO) को सौंप दिया गया।


आज क्रांति की रिहाई का दिन है, लेकिन वो अपने काले अतित की छाया से कुसुम को दूर रखना चाहती है। जेल में भी कभी उसको नहीं बुलवाया मिलने को। उसे कुसुम की पढ़ाई, नौकरी और शादी की खबरें जेल में मिलती रहीं, शायद इसलिए घबराती थी कि कहीं उसका आज उसकी बेटी का भविष्य ना निगल जाए।


अपनी बेटी के बारे में सोच ही रही थी कि जेलर ने क्रांति को बुलवाया।

" क्या हुआ साहब, आपने सरकारी अफ़सर से मेरी नौकरी की बात कर ली ना?"

" क्रांति पहले इनसे मिलो ये हैं कपिल और कुसुम तुम्हारी बेटी और दामाद। दोनों एक ही जगह काम करते हैं, और तुम्हें भूले नहीं हैं, घर ले जाने आए हैं। "

क्रांति मानों खड़े खड़े मूर्ती बन दोनों को निहारने लगी, आँखें सजल हो मानों आशीर्वाद की बारिश कर दोनों की बलियाँ ले रहीं हों।

" अपने घर चलो माँ, अब सब साथ रहेंगे ", कुसुम ने क्रांति का हाथ थामते हुए कहा।

क्रांति ने ज़ोर से अपना हाथ छुड़ाया मानों कोई सन्यासी मोह के पाश को छुड़ा रहा हो, " पगला गई है क्या कुसुम? पता है ना मैं एक दोषी हूँ, अरे हत्यारिन हूँ अपने ही पति की। मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती, तुम्हारी खुशियों में आग कैसे लगा दूँ बिटिया। दुनिया वाले किसी को जीने नहीं देंगे। तुम दोनों को देख लिया बस अब और कोई चाहत नहीं, जाओ यहाँ से "

" मम्मी जी हम आपको लिए बिना नहीं जायेंगे, पक्का इरादा करके आये हैं ", कपिल ने क्रांति की तरफ देख कर कहा।


कुसुम ने धीरे से क्रांति का हाथ अपने पेट पर रखते हुए कहा, हमारे लिए नहीं तो अपने आने वाले नाति या नातिन के लिए ही चलो प्लिज़ माँ और दुनिया की चिंता आपको कब से होने लगी, वो आप ही थीं जो बचपन में मुझे कहा करती थीं की चिरैया, दुनिया चाहें कुछ भी कहे तू वही करना जो तेरा मन करे। माँ आपने मुझे बचाने के लिए अपनी पूरी उम्र यहाँ काट दी। आपकी बेटी आपके प्रेम और दुलार के लिए हर पल तड़पी है, जब भी कोई सफलता मिलती तो मन ही मन आपको उसका श्रेय दे दिया करती थी। जब कपिल से शादी हुई तब भी बस आपकी बात का मान रखकर जेल नहीं आई, मन में ही आशीर्वाद ले लिया। जानती हूँ आपको संकोच होगा लेकिन माँ अब मैं आपकी ममता की छाँव के लिए और नहीं रुक सकती, आप हमारे साथ आ रही हो बस ", और वो बिलकते हुए क्रांति के गले लग गयी।

इस बार क्रांति ने उसे हटाया नहीं बल्कि अपनी बाँहों में कस कर प्रेम का आलिंगन दिया। वो समझ गई थी कि उसकी बेटी भी उसके बिना उतनी ही अकेली थी जितनी वो खुद।


अपने अतीत को अलविदा कह क्रांति जेलर साहब से बोली " जा रही हूँ साहब, पर आपकी सिखाई बातें सदा याद रहेंगी "



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