आई की सीख
आई की सीख
हितेश जी मुंबई के जाने माने बिल्डरों में से एक हैं, कितने ही मॉल , सोसायटियां और हॉस्पिटल बनवाएं हैं उन्होंने। सबकी गुणवत्ता भी बेमिसाल है, इसी वजह से उन्हें एक पुराने * मोहल्ले को हटवा कर वहां एक शानदार कॉलोनी बनवाने का प्रस्ताव मिला है, मुनाफा भी बहुत होगा। अपनी आई को हितेश जी बहुत प्रेम करते हैं उन्होंने अपनी आई को ये बात बताई और उनका आशीर्वाद मांगा।
उनकी आई ने कहा
" बेटा किसी का घर उजाड़ कर तू नए घर कैसे बना सकता है, तू भी तो उसी मोहल्ले में पैदा हुआ था, सभी आस पड़ोसी कितने खुश थे, सबके घर बारी बारी से बधावे बजे थे। ये वही लोग हैं जिन्होंने तेरे बाप के भाग जाने के बाद मुझे सहारा और हिम्मत दी जिससे मैं तुझे पाल पाई। बेटा इस मोहल्ले सिर्फ लोग नहीं बल्कि उनकी सच्ची भावनाएं बसती है। जब भी किसी की बेटी अपने मायके आती है तो हर घर उसका स्वा
गत करता है, सब उसे अपनी ही बेटी जान उसका सम्मान करते हैं, जब किसी के यहां कोई मर जाता है तो हर घर संबल बांधता है, एक दूसरे के साथ एकता से खड़े रहकर सब साथ में दुख का सामना करते हैं। तुझे सफतला का आशीर्वाद देने का मन है पर मैं तो बस इतना चाहती हूं कि तूने बहुत कमाया है और यदि तुझे नई कॉलोनी बनानी है तो उन सबको सस्ते में एक एक घर भी दे देना, तेरे व्यापार में उनके आशीर्वाद से और बरकत होगी देख लेना, और कभी मत भूलना की हमारी जड़ें कहां हैं, हमेशा सफल रहेगा।"
अपनी आई की सीख पाकर हितेश जी बहुत प्रेम से बोले
" आई मैंने तेरे संघर्ष देखे हैं, तेरी इस सीख को मरते दम तक याद रखूंगा, और वादा करता हूं सब अपनों को सस्ते में घर दे दूंगा"
हितेश जी ने अपना फैसला अपने पार्टनर को दृढ़ संकल्प के साथ सुनाते हुए फोन पर सूचित कर आत्मसंतुष्टि प्राप्त कर ली।