Swapnil Ranjan Vaish

Inspirational

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Swapnil Ranjan Vaish

Inspirational

*ज़री के धागे*

*ज़री के धागे*

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वो अमूमन उस दराज़ को बंद ही रखती थीं, पूछने पर कहतीं की इससे गुज़रे कल की बू आती है। 

घर में किसी को भी वो दराज़ खोलने की इजाज़त नहीं है।

नई नवेली बहू मेघा बहुत अच्छी है, उसने कुछ ही दिनों में सबका दिल जीत लिया। पर उसे उस दराज़ के बारे में किसी ने नहीं बताया और एक दिन वो दराज़ खुल ही गई।

खोलते ही हवा के तेज़ झोंके के साथ ज़री के धागे उड़ कर पूरे कमरे में फैल गए। मेघा उन्हें समेटती पर वो ऐसे चंचल कि मानो हाथों की कैद में आना ही ना चाहते हों।

मेघा धागे समेट ही रही थी कि तभी उनकी कांपती आवाज़ आयी

" किससे पूछ कर तुमने वो दराज़ खोली मेघा?"

उनकी कांपती आवाज़ और सजल हुई आँखों से मेघा घबरा गई थी।

उसने उन्हें आराम से सोफे पर बिठाया और पानी देते हुए पूछा

" मम्मी जी, ये ज़री यहाँ ऐसे क्यों रखी है, क्या आपको ज़री की कढ़ाई आती है?"

" वो सिर्फ 22 साल की थी, क्या कसूर था उसका, क्या कसूर था मेरा जो वो देश पर कुर्बान हो मुझे शादी के दुपट्टे और अधूरी ज़री के साथ अकेला छोड़ गई", वो फूट फूट कर रोने लगीं।

उन्हीं कांपते हाथों से उन्होंने उसकी तस्वीर मेघा को दिखाई, जिसमें उसने एयर फोर्स पायलट की यूनिफार्म पहनी हुई थी और देशभक्ति उसकी आँखों से अविरल बह रही थी।

मेघा की आँखें भी भीग गयीं और जिससे वो कभी ना मिली थी, उसके लिये उसके मन में बेहद सम्मान भर गया था।

उस दिन के बाद से वो तस्वीर कभी दराज़ में बंद नहीं रही बल्कि लाल चूनर में लिपट कर घर की दीवार पर टंग सबको निहारने लगी।



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