*दूर दृष्टि*
*दूर दृष्टि*
"रोहन बेटा क्या हुआ, इतने उदास क्यों बैठे हो। बाहर जाकर खेलो ना...", कोमल ने अपने 6 साल के बेटे से कहा।
" बाहर जाकर खेलूँ किसके साथ, मेरे सारे दोस्त छुट्टियों में घूमने चले गए हैं। पापा हम क्यों कभी एक साथ छुट्टियों में नहीं जाते। बस मैं मम्मी के साथ नानी के घर ही जाता रहता हूँ,और वहां भी कोई नहीं है खेलने के लिये। चलो पापा इस बार ही कहीं घूमने चलते हैं, नहीं तो वेकेशन खत्म हो जायेंगी", रोहन ने मासूमियत से कहा।
यूँ तो आशीष बहुत अच्छा पिता है, पर एक अच्छा और संस्कारी बेटा भी है। अपनी बूढ़ी अंधी माँ को अकेला छोड़ कर जाना उसे कभी गवारा नहीं, पर आज उसे जैसे टीस सी चुभ गयी रोहन की बातों से, इनसब में उस मासूम का क्या कसूर, बच्चा है, सिर्फ अपने माता पिता के साथ कुछ समय ही तो बिताना चाहता है।
दूसरे ही पल आशीष अपने बचपन की बगिया में पहुंच गया।
" रोहन बेटा, तुम्हें पता है ना, कि दादी को हम अकेला नहीं छोड़ कर जा सकते। बस यही वजह है कि हम कहीं बाहर नहीं जा सकते", कोमल ने प्यार से रोहन को समझाया।
" तो क्या जब तक दादी ज़िंदा हैं तब तक हम कहीं घूमने नहीं जा सकते ?"
" रोहन, ऐसा नहीं कहते बेटा, दादी पापा की माँ हैं ना, जैसे मैं तुम्हारी माँ हूँ। अच्छा एक बात बताओ जब मैं भी बूढ़ी और बीमार हो जाऊँगी तो क्या तुम मुझे छोड़ कर घूमने चले जाया करोगे?"
" माँ आप क्यों बूढ़ी होगी, आप कभी बीमार भी नहीं होगी। मैं आपको कभी छोड़ कर नहीं जाऊँगा।"
" जितना प्यार तुम मुझसे करते हो, उतना ही प्यार पापा भी अपनी माँ से करते हैं बेटा, उन्हें अकेला छोड़ कर जाना ठीक नहीं है ना। तुम और हम अगले संडे नानी के घर जाएंगे, देखना इस बार तुम्हें बहुत मज़ा आएगा"
" अरे क्या खाक मज़ा आएगा उसे नानी के घर, आशीष बेटा तू मुझे छोटे के पास छोड़ आ, फिर रोहन और बहू को लेकर कहीं घूम के आ जा। रोहन मेरा प्यारा बच्चा है, तुम दोनों उसे बहुत अच्छे संस्कार दे रहे हो। जैसे मेरा बुढा़पा शांति से कट रहा है, तुम दोनों का भी वैसा ही कटेगा देख लेना। अंधी ज़रूर हो गयी हूँ, लेकिन अनुभवी दूर दृष्टि अभी ठीक ठाक है। कोमल बेटी मेरा बैग सम्भाल दे, अब छोटी बहू की बारी है मेरी देख भाल करने की", आशीष की माँ ने कहा।
रोहन ने अपनी दादी से लिपट कर उन्हें प्यार से थैंक्यू कहा और ख़ुशी से खेलने लगा।