वो तेरे पापा थोड़े ही हैं
वो तेरे पापा थोड़े ही हैं
प्रिया की शादी को मात्र दो साल ही हुए थे, पर परिवार में सभी उसको बहुत प्रेम और आदर देते थे। वो हमेशा ईश्वर का धन्यवाद करती कि उसको इतना अच्छा ससुराल मिला।
ससुर जी तो उसको सर आँखो पर रखते, नदें, नंदोई भी खूब लाड़ लड़ाते।
अभिषेक के तो कहने ही क्या, वो तो किसी सपनों के राजकुमार से कम नहीं था, प्रिया के कुछ बोलने से पहले ही उसकी पसंद की चीज़ उसके सामने होती, घर के काम हों या उसका बेकरी का बिजनेस...अभिषेक उसका प्रेम से पूरा साथ देता था।
सब कुछ इतना अच्छा चल रहा था, शायद ये बात विधाता को रास नहीं आई और प्रिया के ससुर की तबियत कुछ खराब रहने लगी, खाना ठीक से ना पच पाने की वजह से उन्हें कमज़ोरी रहने लगी।
डॉक्टर को दिखाया तो कुछ टेस्ट करवाने के बाद पता चला कि उनका लिवर 80% से अधिक ख़राब हो चुका है, यदि जीवन बचाना चाहते हैं तो ट्रांसप्लांट ही एक उपाय है। सभी परिवार वाले ये सुन सन्न रह गए, प्रिया ने डॉक्टर से फ़ौरन कहा, " मैं दूँगी अपना लिवर पापा जी को, मुझे उन्हें जल्द से जल्द ठीक देखना है "
प्रिया की नंद ने कहा " सोच समझ के बोल प्रिया... तेरी पूरी ज़िंदगी पड़ी है, अभी नई शादी हुई है... कोई बच्चा भी नहीं है... तेरे घर वाले क्या सोचेंगे, अभिषेक तू समझाता क्यों नहीं इसे...मैं करूँगी ये काम।"
डॉक्टर ने सभी को शांत कराते हुए कहा " देखिये पहले डोनर का टेस्ट होगा, जिसका लिवर पेशंट से मैच होगा, वही डोनेट कर सकेगा। दूसरी बात जो बहुत ज़रूरी है जानना...कि हमारे शरीर में मात्र लिवर ही एक ऐसा अंग है जो क्षति होने पर अपने आप अपना पूर्ण रूप ले लेता है, लेकिन आपके पिताजी का लिवर अब उस स्टेज में नहीं है। तो लिवर डोनर की जान को कोई खतरा नहीं है, लेकिन हाँ उसे ठीक होने में कुछ साल लग जायेंगे।"
डॉक्टर की बात सुनकर सबने चैन की साँस ली, और उन्होंने टेस्ट की त्यारी करने को नर्स से कहा।
टेस्ट मे सिर्फ प्रिया का ही लिवर उसके ससुर से मैच हुआ, मानों ये पुण्य ईश्वर ने उसकी ही किस्मत में लिखा हो।
ट्रांसप्लांट की डेट, 15 दिन बाद की मिली।
जब ये खबर प्रिया के घर वालों
और दोस्तों को मिली तो सभी घबरा गए। उसकी माँ उससे मिलने आईं और अपनी बेटी के प्रति अपनी चिंता जताई प्रिया ने उन्हें आश्वस्त किया कि उसे कुछ नहीं होगा,उसे बस सबकी दुआएं और साथ चाहिए।
प्रिया का माथा चूमते हुए उसकी माँ ने कहा " बेटा तू बचपन से ही ऐसी है, हमेशा दूसरों के दर्द को अपना बना लेती है। मुझे तुझपर गर्व है, और मेरा आशीर्वाद और साथ हमेशा तेरे साथ है... लेकिन एक माँ के मन की चिंता का क्या करूँ जो कोई लॉजिक कोई तर्क नहीं मानता"
" ओह माँ... आप बिल्कुल मत डरिये भगवान सब अच्छा करेंगे ", प्रिया ने माँ को गले लगाते हुए कहा।
तभी एक करीबी सहेली का फ़ोन आ गया।
वो उधर से दंदनाते हुए बोली " ओ हीरो क्या बात है, ये क्या पागलपन है, हैव यू लॉस्ट इट।"
" अरे हुआ क्या है तुझे... कुछ बता तो? बस शुरू हो गई।"
" प्रिया, तू मेरी पक्की सहेली है। तुझे लिवर देने के बाद कुछ हो गया तो क्या होगा हम सब का, और वैसे भी वो तेरे पापा थोड़े ही हैं... छोड़ ना यार।"
" शीना, मुझे कुछ नहीं होगा। और भले वो मेरे पापा नहीं हैं, लेकिन अभिषेक के तो हैं, और मेरे लिए भी पापा से कहीं ज्यादा हैं। तू अपने घर पर ध्यान दे, और इतनी कैरिंग होने के लिए थैंक्स। बस दुआ कर मेरे ससुर जी ठीक हो जाएं। बिचारे हॉस्पिटल से घर भी नहीं आ सकते। चल बाय। "
" ओक बाय... लेकिन अपना पूरा ध्यान रखना और दवाई टाईम पर लेना... बाय ", शीना ने अपने आँसू पोछते हुए कहा।
ट्रांसप्लांट ओपरेशन का भी दिन आ गया, सबने अपने अपने इष्ट से प्रिया और ससुर जी की सलामती के लिए प्राथना शुरू कर दी।
प्रिया को एक बार फिर एहसास हुआ कि वो कितनी किस्मत वाली है।खैर सब अच्छे से हो गया और धीरे धीरे प्रिया और ससुर जी दोनों ठीक होने लगे।
ससुर जी को जब पता चला कि प्रिया ने उन्हें अपना लिवर दिया है तो वह सिसक सिसक कर रोने लगे, प्रिया ने उन्हें फौरन गले से लगा लिया और कहा " आप मेरे ससुर नहीं मेरे पापा हैं "
कभी कभी अपनों की तरफ़ बढ़ाया हुआ मदद का हाथ सच में मन को संतोष से सराबोर कर देता है...है ना।