माताजी की बहू
माताजी की बहू
मोबाइल के बिना संध्या बहुत परेशान हो रही थी। उसका मोबाइल विभा के पास एलआईसी के ऑफिस में ही रह गया था। वह दफ्तर में एलआईसी की किस्त जमा कराने के बाद समीप की मार्केट से कुछ सामान लेने चली गई। सामान लेते हुए उसे शाम हो गई और अब जब उसने कैब बुक करवाने के लिए पर्स में अपने मोबाइल को ढूंढा तो उसे याद आया कि मोबाइल तो विभा के पास ही रह गया था। अब तक तो ऑफिस की छुट्टी होने के कारण विभा भी अपने घर चली गई होगी। बैंगलोर जैसी जगह में बिना मोबाइल के ऑटो और कैब का भी मिलना बेहद मुश्किल काम था।
वह परेशान सी फुटपाथ पर खड़ी हुई थी कि तभी एक कार संध्या के पास आकर रुकी उसमें बैठी एक महिला ने कहा, आपको घर जाना है तो हमारे साथ चलिए ।आप माता जी की बहू हैं ना ? संध्या हैरानी से उन लोगों को देख रही थी ।तभी वह बोलीं अरे हम भी अलका एंक्लेव में ही रहते हैं आप की सासू मां मालती जी के साथ हमने आपको अक्सर देखा है । आप घर ही जा रही हैं तो बैठ जाइए। संध्या को वह महिलाएं कुछ जानी पहचानी तो लग रही थी इसलिए वह भी उनके साथ गाड़ी में ही बैठ गई।
गाड़ी में बैठी एक महिला ने संध्या के साथ बातचीत करते हुए उसे बताया हमारे बैंक की भी अभी छुट्टी हुई है और हम सब भी अलका एंक्लेव में रहते हैं। आपकी सासू मां के पास में हम अपने बच्चे छोड़ देते हैं और सिर्फ आप की सासू मां के कारण हम निश्चिंत होकर बैंक में जा पाते हैं। मेरा बच्चा तो उन्हें दादी ही समझता है, उनमें से बैठी एक महिला बोली।
संध्या उनकी बातों से बेहद हैरान थी और वह यूं ही उनकी बातें सुनकर अपनी पुरानी यादों में खो गई। उसकी सासू मां मालती जी दिल्ली में रहती थी और गगन शादी के कुछ समय बाद ही बेंगलुरु में शिफ्ट हो गया था। अपने दोनों जुड़वां बच्चों के समय संध्या दिल्ली मालती जी के पास तो गई थी। उसके बाद उसका अपने ससुराल में एक मेहमान की तरह ही आना जाना रहता था। अब उसके दोनों बच्चे 12वीं पास करके हैदराबाद के ही एक कॉलेज में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे।
उसके ससुर जी दिल्ली में ही सरकारी नौकरी करते थे इसलिए वह लोग कभी भी बंगलोर आकर सदा के लिए रह नहीं सकते थे। वैसे वो लोग भी आते जाते रहते थे। सासु मां का दिल्ली में बहुत बड़ा घर था। वर्मा जी की रिटायरमेंट के बाद भी मालती जी अपना घर छोड़कर बैंगलोर में रहना पसंद नहीं करती थीं।
पिछले साल वर्मा जी की हार्टअटैक के कारण जब मृत्यु हो गई तो गगन ने मां को अकेला छोड़ना ठीक नहीं समझा और कुछ सामान एक कमरे में रख कर और घर को किराए पर देकर वह अपनी मम्मी मालती जी को साथ लेकर बेंगलुरु आ गया। गगन के मना करने पर भी मालती जी घर का बहुत स सामान जो कि उन्हें जरूरी लग रहा था अपने साथ ही ले कर बंगलुरु आ गईं थी। गगन के पास बैंगलोर के उन 3 कमरों के फ्लैट में काफी सामान था। अब और भी सामान आने से संध्या को अपना घर बहुत भरा भरा सा लगता था। यूं भी संध्या ने अपने फ्लैट का इंटीरियर बहुत मन से करवाया था।
मालती जी को बंगलुरु के उस फ्लैट में खाली बैठे रहना बहुत अखरता था। घर का काम करने के लिए एक सहायिका भी आती थी और बाकि संध्या को बिल्कुल पसंद नहीं था कि माताजी उसकी रसोई में बिना वजह छेड़छाड़ करें। वैसे भी वहां पर हर तरह के आधुनिक उपकरण थे जो कि मालती जी को चलाने भी नहीं आते थे।संध्या माता जी को समय पर खाना, चाय इत्यादि बनवा कर दे देती थी। उनके दोनों पोते भी हॉस्टल में ही थे। बैंगलोर में एक तो वर्मा जी के बिना और दूसरा पूरा समय खाली बैठे रहने के कारण उन्हें जिंदगी बहुत नीरस लग रही थी।
माताजी ने एक दिन कॉलोनी में नीचे घूमने जाने की सोची। संध्या को उन्हें अकेले भेजने में बहुत डर लग रहा था कि कहीं वह रास्ता ना भूल जाए और वहां पर लोगों को इतनी अच्छी हिंदी आती भी नहीं थी। लेकिन वह माता जी को रोक नहीं पाई। माताजी थोड़ी ही देर नीचे पार्क में अकेले बैठी रही और फिर उन्होंने रोजाना शाम को पार्क जाने का नियम बना लिया। दो-तीन दिन में उनके पास एक हिंदी भाषी औरत ही अपने बच्चे को लेकर उनसे बात करने आने लगी। माताजी ने जब उसके बच्चे को रोते देख कर कुछ घरेलू उपचार बच्चे के लिए बताए तो बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हो गया था। बातों ही बातों में उसी हिंदीभाषी औरत ने माताजी को बताया कि वह बैंक में नौकरी करती है और अब इस बच्चे के कारण ज्वाइन नहीं कर पा रही है। क्योंकि वह भी उसी कॉलोनी में रहती थी इसलिए माताजी ने उससे कहा कि तुम भले ही नौकरी पर चली जाया करो मैं तुम्हारे इस बच्चे को रख लूंगी वैसे भी वह बच्चा अब माताजी को दादी दादी कहकर उनके साथ बहुत खुश रहता था।
माताजी ने उसी कॉलोनी में में दो कमरे नीचे अलग किराए पर ले लिये। वैसे भी माताजी के पास में बहुत सारा सामान था जो कि वह अपने साथ लाई थी और संध्या ने उसे स्टोर में रखवा दिया था। माताजी ने सारा सामान नीचे वाले फ्लैट के कमरों में जमवा दिया। धीरे-धीरे माता जी के पास और भी हिंदी भाषी महिलाएं अपने बच्चों को छोड़कर दफ्तर जाने लगी। माता जी ने उन कमरों को एक क्रैच का रूप देकर अपने पास एक सहायिका भी रखली थी। सुबह से शाम तक माताजी नीचे ही रहती थी और रात को सोने के लिए संध्या और गगन के पास चली जाती थी।
धीरे-धीरे आसपास की और हिंदी भाषी महिलाएं भी माता जी के पास आकर बैठने लगी और बच्चों से खेलती रहती थी। हालांकि माता जी को बच्चे संभालने के लिए लिए पैसे भी मिलते थे लेकिन उन्हें पैसों से ज्यादा बच्चों का साथ पसंद था सब बच्चे उन्हें दादी कहते थे।
क्योंकि माताजी ने नीचे ही अपना गैस स्टोव और सिलाई की मशीन भी रखी थी तो उनके पास आने वाली और भी महिलाएं अपने बहुत से कपड़े उनसे बातें करते हुए मशीन पर सिल भी लेती थी। वह जरूरतमंद लड़कियों को सिलाई सिखा भी देती थी। मालती जी का मन अब बैंगलोर में भी लग रहा था और अब वह अपनी कॉलोनी में भी काफी जानी-मानी व्यक्तित्व बन चुकी थी।
आज गाड़ी में बैठकर रह-रहकर संध्या को अपनी कही बात याद आ रही थी जब उसने गगन को कहा था कि माता जी अगर बाहर कहीं खो गई तो लोग क्या कहेंगे ? लोग तो यही कहेंगे कि संध्या अपनी सासू मां का ख्याल नहीं रखती। यहां इन्हें कौन जाने भला ? सब कोई तो मुझे ही जानते हैं ना! लेकिन आज------ यहां भी सब मुझे माता जी की बहू कह कर पूछ रहे हैं। तभी उनका घर आ गया। गाड़ी रुकने के बाद वह महिलाएं भी अपने बच्चों को लेने के लिए माता जी के फ्लैट् में गई । आज संध्या भी सीधा ऊपर अपने फ्लैट में जाने की बजाए नीचे कमरे में माता जी के पास गई। माताजी वहां बैठकर एक लड़की को सिलाई भी सिखा रही थी। आज संध्या ने अनायास ही बहुत मन से माताजी का चरण स्पर्श करा। आज उसे अपने माता जी की बहू होने पर भी गर्व हो रहा था।