Hoshiar Singh Yadav Writer

Abstract

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Hoshiar Singh Yadav Writer

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मां

मां

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सुदूर दक्षिण में बनों से आच्छादित छोटे से गांव नमकपुर में अति मेहनती किसान राघव रहता था जिसकी देवी मां पर अटूट विश्वास था। सुबह हल चलाने से पूर्व देवी के मंदिर में धोक लगाकर ही अपने आगे के काम पूरे करता था। गांव के तड़ाग के किनारे एक सुंदर मंदिर देवी का था। यहीं पर राघव का पूरा परिवार समय समय पर आता और घंटों प्रार्थना करने के बाद ही घर लौटता था।

किसान राघव की पत्नी राधा भी अति धार्मिक प्रवृति की थी। वो भी अपने पति के नक्षेकदमों पर चलने वाली थी। जब कभी उसे खेत में अपने पति के साथ काम करने जाना होता तो वो भी देवी की धोक लगाकर अपने जैसी सुंदर पुत्री देने की प्रार्थना करती थी। देवी मां की करनी ऐसी हुई कि राधा के एक के बाद एक चार पुत्रियों ने जन्म लिया। राधा अपनी चारों पुत्रियों को पाकर अति प्रसन्नचित हो उठा। राधा भी पुत्रियों को देख देखकर प्रसन्न होती।

  जब चारों पुत्रियां अभी छोटी ही थी तभी से वे अपने पिता के साथ खेतों में जाती और अपने पिता के कामों में हाथ बटाती। चारों पुत्रियों के नाम भी देवियों के नाम पर अंबा, संतोषी, दुर्गा और पार्वती रखा हुआ था। कभी राधा खाना बनाती तो बड़ी पुत्री अंबा पानी का घड़ा उठाकर लाती। कभी संतोषी कम खाना मिलने पर भी संतोष कर लेती। दुर्गा एवं पार्वती भी अपने माता पिता की सेवा में लगी रहती थी।

   समय ने अंगड़ाई ली और चारों पुत्रियों ने शिक्षा पानी शुरू कर दी। राघव और राधा उनको स्कूल जाने के लिए तैयार करते और मां के मंदिर में उनके सफल होने की कामना करते। दोनों बहुत प्रसन्न थे। समय बीतता गया और चारों पुत्रियां एक के बाद एक कक्षाएं पास करके आगे बढऩे लगी। एक दिन राघव ने अपनी पत्नी राधा से कहा-कल, खेत पर काम करने के लिए जल्दी जाना है। बच्चियों का स्कूल नहीं लग रहा है। ऐसे में हम दोनों दिनभर खेत में काम करेंगे। बच्चियों के लिए भोजन आदि का जल्दी प्रबंध कर देना। और हां अब जल्दी सो जा, सुबह जल्दी उठना है।

इतना कहकर राधा और राघव सो गए।

  सुबह जल्दी उठकर राधा ने बच्चियों के लिए खाना बनाकर रख दिया और पति पत्नी दोनों खेत की ओर बढ़ गए। दिनभर काम करते रहे और दोनों ने सोचा कि अब वर्षा होगी तो बेहतर फसल पैदावार से अपनी गरीबी दूर कर लेंगे। कुछ पैसे बच्चियों के भविष्य के लिए जमा कर लेंगे तो परिवार के सदस्यों के लिए सर्दी के कपड़े भी खरीद लेंगे। दोनों खुश होकर घर आ गए।

दिनभर अपनी बच्चियों से दूर रहने के कारण शाम को जब राघव व राधा घर आए तो चारों ही बच्चियां उनसे लिपट गई और खूब हंसी। समय बीतने लगा। फसल लहलहाने लगी। रात आई दिन आया और इंतजार बेहतर पैदावार का होने लगा।

एक सुबह जब राधा उठी तो राघव नहीं उठ पाया। जब राधा चाय लेकर आई और राघव को जगाने का प्रयास किया तो वो नहीं उठ पाया। जब उसे खदेड़ा गया तो वो चारपाई पर एक ओर लुढ़क गया। उस समय तक उनके प्राण पखेरू उड़ चुके थे। राधा के हाथ से चाय का कप गिरकर टूट गया। जब कप के टूटने की आवाज आई तो चारों पुत्रियां दौड़कर आई और पूछा-मां, क्या बात है? पिता जी उठ क्यों नहीं रहे?

राधा की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। चारों पुत्रियां एवं राधा बुरी तरह से चिल्लाने लगी। परंतु अब राघव कभी नहीं आने वाले थे। रात रो रोकर बीत गई और सुबह हो गई। दाह संस्कार की तैयारियां शुरू हो गई। चूंकि चारों बहनों का कोई भाई न होने के कारण चारों ही पुत्रियों ने अश्रुपूरित नेत्रों से अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया और श्मशान तक ले गई। मुखाग्नि भी सबसे बड़ी बेटी अंबा ने दी।

 अब तो घर आने पर सब कुछ सूना सूना नजर आने लगा। अंबा, संतोषी, दुर्गा व पार्वती अपनी मां से चिपटकर खूब रोई। अब तो मां ही चारों बेटियों का एकमात्र सहारा बची। किंतु अब तो राधा के सामने दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। अकेली औरत कैसे खेत में काम करें? बिन पैसों के बच्चियों की शिक्षा का काम कैसे पूरा करें?

 राधा ने अपनी बच्चियों को लिखा पढ़ाकर महान बनाने का निर्णय लिया। खेत को बटाई पर देने लग गई। कुछ पैसे खेत की बटाई से आने लगे तो स्वयं एक धनवान सेठ धन्ना के घर बर्तन साफ करने तथा झाड़ू लगाने के काम में लग गई। जो भी पैसे आते उनसे चारों बेटियों की बेहतर शिक्षा का प्रबंध करती। अपना खाना पीना कम कर दिया किंतु शिक्षा बेहतर से बेहतर दिलाने में लग गई। अंबा ने सबसे पहले बारहवीं कक्षा पूरे जिला में प्रथम रहकर पास की ओर अब उनका डाक्टरी कक्षा में प्रवेश हो गया। छात्रवृत्ति मिलने लगी और उनकी फीस का भार कम होने लगा। उधर संतोषी एवं दुर्गा ने भी दसवीं कक्षा में बेहतर अंक पाने के चलते वजीफा मिलने लगा। पार्वती अभी नौंवी कक्षा में चल रही थी किंतु पढऩे में सभी एक से बढ़कर एक थी। जो भी चारों बहनों के बारे में सुनता बस मुह से निकलता-काश, ऐसी बच्चियां सभी को मिले। ये तो सचमुच देवी का अवतार हैं।

 हर रविवार को राधा और उसकी चारों पुत्रियां गांव के देवी मंदिर में जाती और बैठकर खूब प्रार्थना करके घर लौटती। इस बार पार्वती ने भी दसवीं की परीक्षा पास कर ली और वो भी पूरे जिले में नाम रोशन किया। उसे भी वजीफा मिलने लगा। अब तो मां राधा अति प्रसन्न रहने लगी। उधर संतोषी ने बारहवीं की परीक्षा बेहतर अंकों से पास करके इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू कर दी। समय बीतता गया और अंबा डाक्टर बनकर घर पर आ गई। उन्होंने अब घर पर ही मरीजों के लिए क्लिनिक खोल दिया जहां गरीबों की दिनरात सेवा होने लगी। थोड़ा बहुत पैसा बचता वो अपनी मां को तथा अपनी बहनों की पढ़ाई में खर्च करने लगी। उधर फिर संतोषी इंजीनियर बन गई तो फिर दुर्गा प्राध्यापिका बन गई। पार्वती पाक शास्त्र की ज्ञाता बन गई। अब तो राधा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। चारों ही बहने अपने अपने पैरों पर खड़ी हो गई और अपनी मां की धन्ना सेठ के घर से नौकरी हटवा दी। मां की चारों ही बहने सेवा करने लगी।

तीनों बड़ी बहने अपने अपने काम पर चली जाती और उन सभी का बेहतर खाना पार्वती बनाकर देती थी। शाम को फिर लौटती तो उनका खाना पार्वती ही बनाती। बड़ी बहने दुर्गा, संतोषी एवं अंबा अपनी सबसे छोटी बहन को जी जान से चाहती। 

 एक शाम को राधा की तबियत बिगडऩे लगी तो उसने चारों ही पुत्रियों को बुलाया। राधा ने उनसे कहा-तुम्हारे पिता की इच्छा थी कि तुम्हें लिखा पढ़ाकर महान बनाऊं और उस काम में मैं सफल हो गई। अब तुम अपने अपने पैरों पर खड़ी हो गई हो। सभी मिलकर रहना और कोई भी मुसीबत सामने आए तो उसका डटकर मुकाबला करना।

चारों ही बहनों ने अपनी मां से आश्चर्य से पूछा-मां आज फिर तुम कैसी कैसी बातें कर रही हो?

मां ने जवाब दिया-अब मेरा अंतिम समय आ गया है।

मां जब इतना कह रही थी तो अंबा ने मां के मुंह पर हाथ रखकर कहा-मां ऐसा मत कहो। पहले ही पिता साथ छोड़ गए और अब जब हम कमाने लगी हैं तो आप ऐसा भद्दा शब्द कह रही हो। इतना अंबा कह ही रही थी कि राधा ने तेज हिचकी ली और उनके भी प्राण पखेरू उड़ गए। रातभर चारों बेटी अपनी मां की मौत पर चिल्लाती रही। सुबी फिर से वहीं समय आ गया जब उन्होंने अपने पिता को कंधा दिया था। इस बार अपनी मां को अपने कंधों पर उठाकर श्मशान की ओर ले चली तो जिसने भी देखा बस यहीं कहा-मां हो तो ऐसी, जिसने अपनी चार पुत्रियों को महान बनाया। सभी जन बेटियों और मां की चर्चा कर रहे थे।


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