मेरा पहला प्यार
मेरा पहला प्यार
एकटक उसके कपड़ों और उसके हावभाव को देखता रहा। लगा कि सचमुच कोई परी धरती पर उतर आई है। बोलने का ढंग, आवाज की धनी, चेहरे पर चमक इस कद्र लुभाया कि मैं मौन सा रह गया। परंतु पहली दृष्टि में ही उनके प्रति कुछ दिल में जगह बन गई और लगा किस लड़की से कहीं प्यार ना हो जाए। रात को घर आकर भी सो न सका, रजनी की चंचल हरकतें, उसकी यादें जेहन में घर कर गई थी। अब तो ऐसा लगता था कि उससे जरूर मिलूंगा और अगले दिन फिर से बस द्वारा कालेज में पहुंच जाता। अपने साथियों सहित थोड़ा पहले पहुंचता और उसका इंतजार करता। उसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता। समय बीतता गया वह भी मुझसे हेलो, हाय कर आगे बढ़ जाती और मैं बस ख्यालों में डूब जाता। उसकी पोशाक इतनी सुंदर थी कि मन एक झलक पाने को लालायित रहता। पर यह क्या? अचानक एक दिन उन्होंने कक्षा में आकर कहा कि अब मुझे स्कूल छोडऩा है काले छोडऩा है। मेरे माता.पिता की बदली हो गई है मुझे उनके साथ जाना है। बस फिर क्या था आंखों से आंसू टपकने लगे। जब आंसू टपके तो उसकी नजर मुझ पर पड़ी। वह भी दुखी हो गई थी और मेरे पास आकर कहा -अब मैं चलती हूं किसी चीज की जरूरत हो तो बता दो। इतना कहकर उसने मुझे फोन नंबर दिया। उस जमाने में बेसिक फोन के जरिए बात होती थी। जब वह चली गई चंद दिन बीते, बेचैनी में बीते तो एक दिन फोन करके हालचाल पूछा। अपना पता बताया उनका पता जान लिया। रजनी ने सारा भेद खोल दिया कि कब उसके माता.पिता घर पर होते हैं और कब बाहर होते हैं। मैंने हिम्मत जुटाई और उनसे एक पत्र भेजने के लिए कहा। रजनी ने कहा तुम पहले अपना पत्र भेजो, मैं देखना चाहती हूं कि तुम्हारे अंदर कितनी काबिलियत है, तुम पढ़ लिख कर महान बन पाओगे या नहीं देखना चाहती हूं।
बस फिर क्या था शाम होते ही अंतर्देशीय पत्र लेकर आया और अपने सारे विचार खयालात उड़ेल दिये। सचमुच लिखते वक्त कभी-कभी हाथ कांप रहा था, मन घबरा रहा था कि कहीं यह पत्र उसके मां-बाप ने पढ़ लिया तो? परंतु सारा कुछ हाल पर लिखते लिखते अंत में एक शब्द कहा कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं। इससे ज्यादा लिखना मेरे लिए नामुमकिन था। खैर यह मेरा पहला पत्र था जो मैंने रजनी को भेजा। 3 दिन पश्चात उनका फोन आया और कहा- क्या गजब की लिखाई है मोती पिरो रखें है। तुमने जो बात लिखी हर एक बात अनमोल लगती है परंतु अंत में जो लाइन लिखी है- मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं इसका कोई अर्थ नहीं है। चाहने वालों के लिए इस प्रकार की बातें लिखना उचित नहीं। इस बात से मैं खुश नहीं हूं परंतु तुम पहले शख्स हो जिनसे मिलकर कुछ प्रभावित हुई। इसलिए जरूर हम दोनों एक दिन शादी के बंधन में बंध सकते हैं परंतु लाखों अड़चनें है। माता-पिता से बात करूंगी तब जाकर तुम्हें समझा पाऊंगी। इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया। 3-4 दिन उसके फोन के आने का इंतजार करता रहा। आखिर एक शाम को का फोन आया और उसने कहा कि माता-पिता आज घर पर नहीं है। मैं जल्दी में यह बात कहना चाहूंगी कि माता-पिता यही कहते कि अभी शादी नहीं करेंगे। अभी तुम्हें पढ़ लिखकर महान बनना है। तत्पश्चात तुम्हारी धूमधाम से शादी करेंगे।
काफी सोच.विचार में पड़ा रहा और आखिरकार कई दिनों तक उसका कोई पत्र नहीं मिला। घर में बेचैन हो चला। उधर रजनी का क्या हाल है वह जाने परंतु जब एक महीने तक पत्र नहीं आया तो फोन भी करना चाहा फोन भी किया परंतु किसी ने फोन का जवाब नहीं दिया। बहुत निराशा हाथ लगी कि कहीं मेरे प्रेम पत्र का बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ा है। धीरे-धीरे समय बीता गया। 2 महीने बीत गए तब एक दिन हिम्मत जुटाकर फोन किया उधर से फोन उठाया,सोचा कि रजनी का होगा लेकिन उसके पिता बोल रहे थे। रजनी के पिता रमन ने पूछा- आप कौन बोल रहे हैं। मैंने अपना सारा हाल बताया और यह भी बताया कि मैं रजनी के साथ कॉलेज में पढ़ता था। रजनी का क्या हाल है? इतना कहकर रमन रोने लग गया और कहा बेटा- अब वह इस दुनिया में नहीं है। वह बीमार हो गई थी, लंबा इलाज चला किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। इतना सुनकर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे कि जीवन में पहली बार किसी से कुछ प्रेम हुआ था और वह भी चल बसी। अफसोस मेरा पहला प्रेम ही असफल हो गया। मैंने जैसे-तैसे दो शब्द बोले और फोन काट दिया। उस दिन के बाद कभी मैंने फोन नहीं किया परंतु आज भी वह मेरा पहला पत्र मेरे जेहन में बसा हुआ है।
