बेटी
बेटी
पढ़ने में अति होशियार रीना को देखकर शिक्षक बहुत प्रसन्न हुआ परंतु जब उसके कपड़ों और जूतों की ओर देखा तो एकदम दर्द में डूब गया। बेचारी रीना फटे पुराने कपड़े पहने हुए थी, पैरों में चप्पल थी और ठंड में बदन में कंपन आ रही थी। शिक्षक ने पूछा- रीना, तुम्हारे माता पिता क्या करते हैं? इतना सुनकर रीना की आंखों में आंसू आ गए। कहा- गुरु जी, मेरी मां मुझे बचपन में छोड़ कर भगवान को प्यारी हो गई। पिता शराब में डूबा रहता है, खाने को दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती। ऊपर से मारता पीटता भी है। यह देखो मेरे हाथों पर आज भी मार के निशान हैं। घर में और कोई भाई बहन नहीं है। खाना भी मुझे बनाना पड़ता है। शिक्षक ने कहा-बस करो रीना। मुझसे नहीं सुना जाता और कुछ ना कहो। छोटी सी बच्ची को अपने कलेजे से लगाते हुए कहा आज से तुम मेरी बेटी के समान हो। में तुम्हारी हर संभव सहायता करूंगा। शिक्षक ने तुरंत प्रभाव से एक जोड़ी जूता, कपड़े ,पढ़ने के लिए पेन और पेंसिल ला कर दिए और कहा- बेटी, तुम इसी प्रकार पढ़कर अपनी उस दिवंगत मां का नाम रोशन करो। यही मेरी हार्दिक इच्छा है। रीना ने सारा सामान ग्रहण करते हुए कहा- ठीक है, गुरु जी। मैं अब दिन-रात पढ़कर अपनी मां का नाम रोशन करूंगी। इतना कहकर कांपते हुए रीना घर की ओर रवाना हो गई शिक्षक की आंखों में आंसू थे। शिक्षक बच्ची को देखता ही रह गया कि बेटियां कितनी मेहनत से काम करती हैं।