मालदीव
मालदीव
पिछले सात दिनों से मैं मालदीव की यात्रा पर हूँ। आज गुरुवार विशेष में मैं आपने साथ आप को भी इसके सुंदर दृश्यों की सैर कराने ले चलती हूँ।
अपने भारत की सीमाओं को पार कर के हवाई जहाज जैसे ही सागर के ऊपर आता है, कुछ ही देर में छोटे छोटे द्वीप हमे दिखने लगते। मेरी यात्रा का रोमांच तो तभी से शुरू हो गया साथ ही शुरू हो गई फोटोग्राफी।
द्वीप, पानी पर काई के जैसे तैरते प्रतीत हो रहे थे।
एयर पोर्ट पर उतर के बाहर आने के बाद ऐसा नजारा मैंने पहली बार देखा कि सामने ही सड़क पार करते ही समुद्र है। हमें होटल ले जाने के लिए कार आई थी पर कुछ लोग तो नाव की टैक्सी से अपने ठहरने के स्थान पे जा रहे थे।
हमारा होटल मुख्य द्वीप माले में ही है तो हमे नाव से जाने की आवश्यकता नहीं थी।
सागर मुझे हमेशा से पसंद है। मैं भारत मे आरब सागर के तटों पर घूमी हूं और अरब में भी और भी बहुत से सागर देखे जैसे काला सागर , लाल सागर लेकिन मुझे बचपन से ही जितना रोमांचित हिंदमहासागर ने किया उतना किसी ने नही किया एक अलग सी भव्यता दिमाग मे आती है । पहले पहल मुझे लगा कि मैंने हिंदमहासागर को मालदीव में पहली बार देखा बिल्कुल मेरे सपनों के जैसा नीला पानी, जो हमेशा से सोच था फिर याद आया कि नही दो साल पहले मैं थाईलैंड यात्रा के दौरान देख चुकी हूं इंडियन ओशियन लेकिन वहाँ इस का रंग इतना जादुई नीला नही है जितना यहाँ है।
मेरे कमरे की बालकनी के ठीक सामने समुद्र है दिन रात समुद्र का साथ बहुत सुहाना है मेरे लिए।
मेरा एक सपना था रात का अंधेरा हो और जोर दार उफनते समुद्र की आवाज आ रही हो मैं अकेले तट पर बैठी हूँ। वो सपना भी लगभग पूरा हो गया पिछली रात; मैं रात के एक बजे तट पर तो नही लेकिन अपनी बालकनी में बैठी थी सब तरफ सुनसान और कल मौसम भी बारिश वाला था तो समुद्र में उफान बहुत अधिक था। बस आंख बंद कर के उसकी आवाज को लहरों को महसूस करती रही और धीमी आवाज में गाना भी बजता रहा " आये हो मेरी जिंदगी में तुक बाहर बन के"।
मुझे नही पता कितनी देर तक और कितनी बार मैं गीत सुनते हुए बस समुद्र की लहरों को महसूस करती रही।
अभी उसी बालकनी में बैठ लिख रही हूँ। धूप की किरणें पेड़ो के पीछे से झांकते हुए मुझ पे पड़ने लगी है शायद बहुत देर बैठने न दे हमें यहाँ ये धूप।
यहाँ की मुद्रा को रूफिया कहते है एक रूफिया मे लगभग पांच रुपये होते है।
हम ने पूरे द्वीप का गूगल मैप डाउन लोड कर लिया ताकि पैदल घूमने में आसानी रहे।
उस मे ही दिखा एक रेस्टोरेंट बॉम्बे दरबार नाम से है।
शाम को ही हम वहॉं पहुँच गए बात कर के पता करने लगे यहाँ शाकाहारी खाने में क्या क्या मिलता है चाय मिलती है क्या ? इतने में ही हिंदी बोली कान में पड़ी मैंने पूछा- "हिंदी बोल लेते ?" उस लड़के ने जिसका नाम हर्षित है कहा यहाँ बॉम्बे दरबार मे सब हिंदी बोलते फिर क्या था हम ने भी अंग्रेजी से किनारा कर लिया।
वहाँ के खाने में स्वाद है ऐसा लग रहा कि अगर ये रेस्टोरेंट न होता तो हम शायद अपनी यात्रा के दौरान सूख के कांटा हो जाते क्योकि जो खाना हमे मिल रहा वो बिल्कुल बे स्वाद है।
बीते रविवार को हम ने पूरे दिन का टूर बुक किया उसके तीन मुख्य आकर्षण थे। पहले में समुद्र के अंदर एक घंटे की यात्रा मोटर बोट से कर के एक बहुत ही छोटे रेत के टापू पर जाना टापू पर पहुँच के हमारी बड़ी सी बोट को रोका गया लेकिन फिर भी काफी पानी था जो कि मेरे सर से काफी ऊपर तक था उस मे से हो कर ही टापू पर जा सकते थे मुझे तो बहुत डर भी लगा चारो ओर पानी वो भी गहरा समंदर उस मे ऐसे पानी मे से हो कर जाना।
हम सब दो तीन घंटे टापू पर घूमे बोटिंग करी। संचालक के सदस्य जो कि बहुत बेहतरीन तैराक है उन लोगो ने स्नोर्कलिंग की ट्रेनिग दी लोगो को। कुछ लोगो ने बोट पर ही हमारे लिए दोपहर का खाना बनाया करीब सात लोग शाकाहारी थे बाकी सब मांसाहारी थे हम हर चीज को दो तीन बार पूछ के पक्का कर लेते है कि वेज है तभी खाते है।
वहाँ से दूसरे पॉइंट की तरफ निकले अब हम ऐसी जगह गए जहाँ गहराई तीस से पैतीस मीटर रही होगी वहाँ उन तैराकों ने तीन की टोकी बना के हमे सतह पर तैरते हुए चेहरा पानी के अंदर रखने को कहा और हिदायत दी किसी भी पानी के जानवर को टच नही करना है भले ही एकदम पास आ जाये। इस मे बहुत सारी मछलियां साथ ही स्टिंग रे मछली भी देखने का अवसर मिला। पता है न स्टिंग रे जो अगर अपना पंख जोर से मार दे तो आदमी मर भी सकता।
अब तीसरा बिंदु था डॉल्फिन अगले एरिया में गए तो बहुत सारी डॉल्फिन को एक साथ कला बाजी करते देखा इस मे अधिक रोमांचित करने वाली बात ये थी कि ये कोई डॉल्फिन शो नही था वो स्वतः विचरण कर रही थी। तालियों की आवाज से वो आकर्षित होती है ऐसा हमे बताया गया फिर सब ने तालियां बजा बजा के बहुत आनंद लिया।
शाम छः बजे हम वापस आ गए खूब सारे सन बर्न के साथ। अगले पूरे दिन सिर्फ आराम किया।