चाय
चाय


आज रविवार है, रविवार यानी कि हमारा बहुत ही व्यस्त दिन क्योंकि हमारे यहां पतिदेव की रविवार को छुट्टी नहीं होती है शुक्रवार और शनिवार को होती है। उन दोनों दिन ज्यादातर सभी महिलाएं किचन में पति की आवभगत में उनकी मनमर्जी के खाने बनाने में इतना व्यस्त रहती है कि दो दिनों में घर बहुत अस्त-व्यस्त हो जाता है फिर रविवार पूरा निकल जाता है सब व्यवस्थित करने में।
हम अधिकतर महिला यहाँ यही करती हैं कि छः बजे सुबह पति के ऑफिस जाने के बाद फिर थोड़ा सा सो जाते हैं।
आजकल तो आराम है बच्चों की भी छुट्टियां चल रही है छोटे बच्चों का दोपहर से ऑनलाइन क्लास होता है इसलिए सुबह बहुत जल्दी नहीं रहती।
आज भी ऐसा ही हुआ मैं नौ बजे सो कर उठी और एक बड़ा सा कप भरकर चाय बनाई जिस से घर के काम करने के लिए एनर्जी इकठ्ठा कर सकूँ। चाय पीते-पीते साथ में मोबाइल भी देख रही थी ।
चाय का आखरी घूँट खत्म हुआ था कि मन में आया आज चाय कुछ ज्यादा ही बन गई थी, तभी बिल्डिंग में से ही एक फ्रेंड का फोन आ गया-
"उठ गई? क्या कर रही है?" उसने पूछा।
"कुछ नहीं तू बोल; क्या चाय पीनी थी?" मैंने पूछा क्योंकि हम दोनों अक्सर साथ में चाय पीते है।
"हाँ यार मैं अभी उठी हूँ; आज बहुत आलस आ रहा है, तूने पी ली क्या चाय?"
"हाँ पी ली, लेकिन कोई नहीं, थोड़ी सी पी है; आजा मैं बनाती हूँ; फिर से पीते हैं।"
"सुन मसालेदार पराठा भी बना लेना मैं आती हूँ।" उसने बोला।
"अरे मारी माँ तू अव तो पेल्ला........." मैं गुजराती में बोली ।
सारा वार्तालाप गुजराती में ही हो रहा था मैं ९०% समय गुजराती ही बोलती हूँ क्योकि गुजराती लोगो के बीच रहती हूँ।
मैंने फटाफट चाय बनाई, फ्रिज में आटा रखा हुआ था, उससे बढ़िया मोटे-मोटे दो लच्छा वाले पराठे अंदर मसाला डालकर बना लिए।
इन सब बातों में यह तो भूल ही गई कि मैं चाय पी चुकी हूँ, मुझे अब दोबारा ज्यादा पीने का मन नहीं है लेकिन फिर से दोनों के लिए कप भर-भर के चाय बना ली।अब ऐसे लग रहा है जैसे गले तक चाय भर गई है; लगता है अगले एक हफ्ते तक तो चाय बिल्कुल पीने का मन नहीं करेगा।
तो कभी भी दोबारा चाय बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आपने पहले चाय पी रखी है, उत्साह और बातों में यह बात बिलकुल भूल ना जाए।