Shalini Dikshit

Comedy

4  

Shalini Dikshit

Comedy

उमड़-घुमड़

उमड़-घुमड़

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हाथ मे पेन -पेपर, मोबाइल ले कर सोफे पर पैर चढ़ा कर, कम्बल ओढ़ के, गोद मे तकिया रख कर स्वाति ने सारा सेटअप तैयार किया। अंदर कमरे से आकाश की आवाज आई-

"स्वाति यहाँ आओ।"

स्वाति कमरे में पहुँच आकाश से बोली, "क्या है जी?"

आकाश- "यार वो ब्लू डेनिम शर्ट नही मिल रही।"

स्वाति- "कल लॉन्ड्री में दी है ना?''

आकाश- "वो नई वाली जो उस दिन लाये है?"

स्वाति- "हटो पीछे मैं देखती हूं।"

स्वाति अलमारी में देखने लगी, फिर शर्ट निकाल के आकाश को दे दी; वापस अपनी जगह जा के फिर से पेन उठाया |

हम्म ! तो कहाँ से शुरुआत करने वाली थी सोच में पड़ गई। 

जैसे सारे विचार ब्लेंड हो गये हों, अलमारी और शर्ट में मिल गए हों। 

 ऐसा बिल्कुल भी नही है कि आकाश स्वाति को लिखने नही देना चाहता,अगर स्वाति कह दे कि मुझे डिस्टर्ब मत करना तो वह नही करेगा और अगर गुस्से से कह दे तब तो पूरे दिन नही करेगा। वह चाहती है अगर छुट्टी के दिन आकाश घर मे है तो उसका पूरा ध्यान रखे किसी बात की कमी न होने दे।

वह तल्लीनता से अपने विचार पेपर पर उकेरने में लगी हुई है कि मोबाइल में मैसेज फ़्लैश हुआ सैड इमोजी के साथ। 

माम् एग्जाम डन, इट्स टू हार्ड !

अब बेटे को दुखी देख कैसे मन मानेगा तुरन्त फोन किया-

हार्ड था! कोई बात नही परेशान न हो.. वैगरह वगैरह.....

उसका दिमाग भी कुछ भारी सा लगा तो पानी पिया उठ के और फिर से शुरू हो गई। उसको पढ़ने का शौक बचपन से था, ख्वाबों में विचरण करने की आदत ने लिखने के लिए प्रेरित किया। 

कई बार लोग कहते तुम क्या और कैसे लिखोगी यह सब गणित के विद्यार्थियों के लिए नही होता। 

लोग यह भूल जाते है जितनी कल्पना की शक्ति मैथ्स में होती किसी मे नही होती है। 

 पूरा सवाल माना यह ये है, तो ऐसा होगा कर के हल किया जाता है। कल्पना का अथाह भंडार है गणित।

लगता है आकाश सो गए है, तभी कोई आवाज नही आई इतनी देर से... वह पूरे मन से अपने काम मे लगी हुई है।

साहित्यिक समूह से जुड़ने के बाद अपनी कहानियों को या यूं कहे अपने विचारों को लोगो तक पहुँचाने का मौका मिला, पहले तो जो भी लिखती खुद ही पढ़ लेती थी। 

इस सब ने उसके अंदर लिखने की नई ऊर्जा भर दी है। जब लोग कहानी पढ़ते है तो अच्छा लगता है, पसंद करें या बुरा बोले दोनो ही बातें उत्साहित करती है।

एक बार किसी ने अपनी रचना में बोला साहित्यिक समूहों के कारण कुकुरमुत्ते की तरह लेखक उत्पन्न हो गए है, तब स्वाति को महसूस हुआ उसके शरीर पर सैकड़ो कुकुरमुत्ते उग आए हैं। वह अपना सफर ताउम्र जारी रखेगी निखार लाने की कोशिश के साथ।

आकाश की आवाज अंदर कमरे से आई- "स्वाति शाम को गुप्ता जी आ रहे परिवार के साथ, कुछ गर्म नाश्ता बना लेना।"

"हाँ ठीक है बना लुंगी।"

कह के वह थोड़ी देर लेखन में लगी रही फिर उठना पड़ा मेहमान जो आ रहे है। दिमाग भी कैसी चीज बनाई है भगवान ने क्या-क्या एक साथ चलता रहता है। अब नाश्ता क्या बनेगा यह घूम रहा।

कॉर्न के पकोड़े ध्यान में आये चलो यू ट्यूब में देखा जाये एक बार, शायद जैसा वह बनाती उस से अच्छा बन जाये सोच के उसने यू ट्यूब ऑन किया।

देखने लगी यह लें वह लें... इतने में मैसेज दिखा किसी ने उसकी कहानी पर प्रतिक्रिया पोस्ट करी थी। पाठक तो सर्वोपरि है तो कॉमेंट देखने लगी, उसके बाद फिर यू ट्यूब।

अब थोड़ी देर तो समझ ही नही आ रहा करना क्या है ? विचारों को गर्म तेल में तलना है या पकोड़ो को। 

उसको अकेले में भी हँसी आ गई जो कि आज के युग मे बहुत बड़ी बात है हंसना सबसे जरूरी है।

खैर इन सब के बाद कहानी बन के तैयार है अब उसको पोस्ट करने का इम्पोर्टेन्ट काम रात तक के लिए स्थगित कर के वह किचेन में लग गई। 


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