Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Shalini Dikshit

Romance

4  

Shalini Dikshit

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साथी

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360


आज तीन दिन हो गए, सिद्धार्थ की कोई खबर नहीं मिल रही है, न कोई फोन न ही मैसेज सिया बहुत चिंतित है। मन ही मन गुस्सा भी आ रहा की भले परिवार के साथ घूमने गया है वह इसका मतलब यह नहीं कि कुशल क्षेम का एक मैसेज भी नहीं कर सकता। 

सिया को लग रहा मानो कल की हि बात हो जब वह निशा के साथ कॉफी पीने गई थी और वहीं दोनों की मुलाकात सिद्धार्थ से हो गई थी। पुराने सहपाठी से मिलकर दोनों बहुत ही खुश थी फोन नंबर्स का आदान-प्रदान हुआ फिर संपर्क बना रहा। 

साथ पढ़ते हुए कभी सिया की उस से कोई खास दोस्ती नहीं थी, लेकिन अब दोबारा मिलने पर अक्सर बात हो जाती थी। कॉलेज की बातें याद करते करते, एक दूसरे की पसंद नापसंद घर परिवार सभी बातें होने लगीं । आदत में इतनी समानताएँ की अब अच्छी मित्रता हो गई थी। 

अगर एक-दो दिन कोई खोज खबर ना मिले तो चिंता भी होने लगती थी क्योंकि एक आदत सी बन गई थी कि दिन में कम से कम एक बार फोन या मैसेज तो हो ही जाता था। 

सिया सोच रही है आपकी बार फोन आने दो उसके दिमाग ठीक कर देगी कि वह कितनी चिंतित थी उसकी कोई खबर ना मिलने से और उसको परवाह भी नही। 

यह सब सोचते वो ऑफिस के लिए निकलने ही वाली थी, वैसे भी आज उसको कुछ देर हो गई है; तभी दरवाजे की घंटी बजी। 

"अरे तुम! वह भी बिना बताए।" सिया आश्चर्य से बोली। 

"अब तुम इतनी बार बुला चुकी थी तो हमने भी सोचा वापसी में तुम्हारे घर होते हुए चलें तुमको श्रीमती जी से मिलना था तो यह सरप्राइज भी दे दे।" 

"हेलो!" नंदिनी ने सिया से विनम्रता से बोला। 

 सिया ने ऑफिस फोन करके छुट्टी ले ली और साथ ही प्रकाश को भी फोन किया— "हो सके तो आप अभी आ जाइए; या फिर जल्दी आ जाइएगा सिद्धार्थ परिवार के साथ आया है।" 

सिद्धार्थ का फोन न आने से जितनी चिंता थी सिया के चेहरे पर वह काफूर हो चुकी थी। वह मन ही मन यह सोच रही शायद ऐसे ही मित्र को सोलमेट का नाम दिया जा सकता है।


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